पंजाबी कल्चरल कौंसिल ने पंजाब विश्वविद्यालय के पुराने ढांचे के तहत सीनेट और सिंडिकेट चुनावों को तत्काल बहाल करने की माँग की
Punjabi Cultural Council Demands Immediate Restoration of Senate and Syndicate Elections
केंद्र के इस कदम को पंजाब की शैक्षणिक विरासत पर हमला बताया; 142 साल पुराने शैक्षणिक संस्थान में लोकतंत्र को पुनर्जीवित करने की अपील
चंडीगढ़, 5 नवंबर, 2025: Punjabi Cultural Council Demands Immediate Restoration of Senate and Syndicate Elections: पंजाबी कल्चरल कौंसिल ने पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ की सीनेट और सिंडिकेट को निष्प्रभावी करने और पंजाब के कॉलेजों को प्रतिनिधित्व से वंचित करने के केंद्र सरकार के फैसले की कड़ी निंदा करते हुए इस कदम को पंजाब के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों में से एक पर पंजाब के दावे को कमज़ोर करने की एक बेहद आपत्तिजनक और जानबूझकर की गई साजिश करार दिया है।
कौंसिल के अध्यक्ष एडवोकेट हरजीत सिंह ग्रेवाल ने कहा कि केंद्र के इस फैसले से विश्वविद्यालय की 142 साल पुरानी विरासत पर गर्व करने वाले पंजाबियों की भावनाओं को गहरी ठेस पहुँची है और विश्वविद्यालय को पंजाब से अलग करने की साजिश रची गई है। उन्होंने मांग की कि विश्वविद्यालय के मूल लोकतांत्रिक ढांचे को तुरंत बहाल किया जाए और शिक्षकों, छात्रों और अन्य लोगों के जनहित अधिकारों के लिए लोकतांत्रिक ढांचे को बनाए रखने के लिए सीनेट और सिंडिकेट के चुनाव पहले की तरह कराए जाएँ।
राज्य पुरस्कार विजेता ग्रेवाल ने कहा कि 1882 में लाहौर में अंग्रेजों द्वारा स्थापित यह विश्वविद्यालय पंजाब राज्य की बौद्धिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। उन्होंने सरकार के वर्तमान कदम और 1 नवंबर, 1966 की घटनाओं को एक जैसा बताते हुए कहा कि यह कदम भी उस मौके पर उठाया गया था जब लगभग 69 साल पहले, 1966 में पंजाब के विभाजन के परिणामस्वरूप कई पंजाबी भाषी इलाके पड़ोसी राज्यों को दे दिए गए थे और चंडीगढ़ को पंजाब से अलग करके केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था।
उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र ने अब विश्वविद्यालय पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए वही प्रतीकात्मक समय चुनकर पुरानी यादों को ताजा कर दिया है जब पंजाब का विभाजन करके राज्य को उसके मूल अधिकारों से वंचित किया गया था।
ग्कौंसिल के रेवाल ने कहा कि इस विश्वविद्यालय में छह दशक पुरानी लोकतांत्रिक व्यवस्था को समाप्त करके और अपने प्रतिनिधियों को नामित करके, केंद्र ने न केवल एक प्राचीन परंपरा को समाप्त किया है, बल्कि इस शैक्षणिक संस्थान के प्रति पंजाबियों के लोकतांत्रिक अधिकारों को भी छीन लिया है।
चंडीगढ़ के सांसद, मुख्य सचिव और शिक्षा सचिव को सीनेट में पदेन सदस्य के रूप में शामिल करने के फैसले की आलोचना करते हुए एडवोकेट ग्रेवाल ने कहा कि यह कदम पंजाब की अपनी राजधानी को एक बाहरी क्षेत्र के रूप में प्रस्तुत करता है।
उन्होंने याद दिलाया कि कैसे पंजाब राज्य के पुनर्गठन के समय पंजाब को अपनी राजधानी, नदी जल और हेडवर्क्स पर नियंत्रण से वंचित कर दिया गया और नवीनतम कदम भी चंडीगढ़ से व्यवस्थित रूप से अधिकार छीनने का वही पुराना तरीका है।
कौंसिल के अध्यक्ष ने आगे बताया कि पुनर्गठित सीनेट 90 सदस्यों से घटकर केवल 31 सदस्य की ही रह गई है जिनमें से अब केवल 18 सदस्य ही निर्वाचित होंगे। पहले, पंजाब के कॉलेजों से चुने गए 47 सदस्य मजबूत प्रतिनिधित्व के कारण विश्वविद्यालय प्रशासन के समक्ष अपने शैक्षणिक मुद्दों को बेहतर तरीके से उठा पाते थे लेकिन अब केंद्र के पूर्ण नियंत्रण के साथ मनमाने फैसलों पर सवाल उठाने वाला कोई नहीं बचेगा।
ग्रेवाल ने सभी राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों, कॉलेज अध्यापकों और विद्यार्थी संगठनों से अपील की है कि वे इस मुद्दे पर एकजुट होकर सीनेट-सिंडिकेट की तत्काल बहाली के लिए प्रयास करें क्योंकि यह न केवल विश्वविद्यालय प्रशासन के लिए बल्कि पंजाब की शैक्षणिक गरिमा और लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए भी जरूरी है।