आओ चलें खुशहाली की ओर… विश्वास, प्रेम और जीवन निर्माण के मंत्र

आओ चलें खुशहाली की ओर… विश्वास, प्रेम और जीवन निर्माण के मंत्र

Mantras of Trust, Love and Life Building

Mantras of Trust, Love and Life Building

 (राष्ट्र संत उपाध्याय डॉ. गुप्ति सागर महाराज के दिव्य विचारों पर आधारित)

नरेद्र शर्मा परवाना 
Mantras of Trust, Love and Life Building:
यह लेख श्रंखला राष्ट्र संत उपाध्याय गुप्ति सागर महाराज के साथ 24 वर्ष तक हुई चर्चा पर आधारित है, उनके साथ हुई वार्ता उनकी ज्ञान वर्धक दिव्यवाणी को लेख श्रंखला के रुप प्रस्तुत किया गया है इसमें तनाव से मुक्त मिलेगी, सफलता की राह आसान होगी, आत्मिक शांति प्राप्त होगी। बस इसको पढिए और उसके अनुसार जीवन में कार्य कीजिए और आपको औलौकिक आनंद मिलेगा।
मानव जीवन की दिशा और दशा उसके विचारों और मूल्यों पर निर्भर करती है। राष्ट्र संत उपाध्याय डॉ. गुप्ति सागर महाराज का जीवन और उनके विचार न केवल प्रेरणास्रोत हैं, बल्कि जीवन को सुंदर, सुलझा हुआ और सार्थक बनाने की राह दिखाते हैं। यह लेख श्रंखला उनके साथ हुई एक गहन संवाद और उनके अमूल्य विचारों पर आधारित है, जिसमें उन्होंने विश्वास, प्रेम, मैत्री और जीवन निर्माण के सिद्धांतों को सहज, सरल लेकिन अत्यंत प्रभावी रूप में प्रस्तुत किया।

विश्वास ही व्यक्तित्व को ऊँचाई देता है 

डॉ. गुप्ति सागर महाराज कहते हैं कि विश्वास पर विश्वास करो, विश्वास ही व्यक्तित्व की अंतिम ऊंचाई है। ज्ञान, धन और शब्दों का प्रभाव तब तक है जब तक विश्वास साथ है। विश्वास के बिना सब कुछ निरर्थक हो जाता है।
एक प्रेरक कथा के माध्यम से वे समझाते हैं कि ज्ञान, धन और विश्वास तीन मित्र थे। जब उन्हें बिछुड़ना पड़ा, तो ज्ञान ने कहा वह मंदिरों, मस्जिदों और विद्यालयों में मिलेगा, धन ने कहा वह अमीरों के पास होगा। लेकिन विश्वास चुप था। जब उससे पूछा गया तो उसने उत्तर दिया कि मैं एक बार चला गया तो फिर कभी नहीं लौटूंगा। 

विश्वासघात विष के समान है 

आज का युग स्वार्थपरता से भरा है। ऐसे में लोग भौतिक चीज़ों को महत्व देकर विश्वास को खोते जा रहे हैं। महाराज जी चेताते हैं विश्वासघात विषघात के समान है। जो व्यक्ति विश्वासघात करता है, उसका चरित्र गिर जाता है।

प्रेम और विश्वास का गहरा संबंध 

विश्वास प्रेम की पहली सीढ़ी है, वे कहते हैं। विश्वास से ही प्रेम उपजता है, और प्रेम संयम एवं तप का फल है। कबीरदास की पंक्तियां जो घट प्रेम संचरै, सोघाट जान मसान  इसी सत्य को दर्शाती हैं।

प्रेम: आनंद की अभिव्यक्ति 

डॉ. गुप्ति सागर प्रेम को आनंद की स्वाभाविक अभिव्यक्ति मानते हैं। स्वार्थ और शरीर प्रधानता से प्रेम और विश्वास दोनों पर आघात होता है। एक बार जो विश्वास टूट गया, उस पर फिर विश्वास करना उचित नहीं।

विश्वास की शक्ति से होती है उन्नति 

विश्वास मैत्री का मूल है। विश्वास के बल पर व्यक्ति बड़ी से बड़ी विपत्ति को पार कर सकता है। श्रीराम और सुग्रीव की मैत्री इसका उत्कृष्ट उदाहरण है। राष्ट्रों और समाजों के बीच भी विश्वास से ही मैत्री और प्रगति संभव है।

संकल्प, सदाचार और आत्मविश्वास ही हैं मार्ग के सहायक 

महाराज श्री सिखाते हैं कि दोष ढूंढने से समाधान नहीं निकलता। जीवन में चाटुकारिता से बचना, अंधविश्वास नहीं करना, और आत्मविश्वास से अच्छे कार्यों की ओर बढ़ना ही जीवन को सफल बनाता है। विश्वास हिमालय की तरह अडिग होता है वह कोमल पुष्प नहीं जो झोंके से गिर जाए, बल्कि वह शक्ति है जो सागर पार करवा दे और पर्वत हिला दे।

विश्वास ही जीवन का आधार है। दोष ढूंढने से कुछ नहीं होता। हमें चाटुकारों से सावधान रहना चाहिए, अंधविश्वास से बचना चाहिए और अच्छे कार्यों के लिए संकल्प के साथ आत्मविश्वास विकसित करना चाहिए। विश्वासहीनता विनाश की ओर ले जाती है, जबकि सच्चा विश्वास जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाता है। विश्वास प्रेम की जड़ है, आत्मविश्वास ही सच्ची श्रद्धा है,विश्वास मैत्री का मूल तत्व है, सच्चा विश्वास हिमालय की तरह अडिग होता है।

निष्कर्ष : दोष बताकर कोई अच्छा काम नहीं होता। चाटूकारों से बचना, अंधविश्वास नहीं करना, अच्छे कार्य के लिए संकल्प करना
सूत्र : अच्छे कार्य के लिए संकल्प कर मन में विश्वास उत्पन्न कर