जन्माष्टमी व्रत: महत्व, नियम और परंपराएँ
- By Aradhya --
- Tuesday, 12 Aug, 2025

Janmashtami Fast: Significance, Rules, and Rituals for Lord Krishna’s Birthday
जन्माष्टमी व्रत: महत्व, नियम और परंपराएँ
भगवान कृष्ण के जन्म का प्रतीक जन्माष्टमी, हिंदू धर्म के सबसे पूजनीय त्योहारों में से एक है, जिसे भक्ति, प्रार्थना और उपवास के साथ मनाया जाता है। भाद्रपद (अगस्त-सितंबर) माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाने वाला यह व्रत एक आध्यात्मिक अनुशासन माना जाता है, जिसके बारे में माना जाता है कि यह कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त करते हुए मन और आत्मा को शुद्ध करता है।
व्रत का महत्व
हिंदू परंपरा के अनुसार, जन्माष्टमी पर उपवास करना कृष्ण के दिव्य जन्म का सम्मान करने और उनके साथ अपने संबंध को गहरा करने का एक तरीका है। भक्तों का मानना है कि ईमानदारी से व्रत रखने से पापों का नाश होता है और आध्यात्मिक विकास होता है। यह व्रत इंद्रियों पर नियंत्रण का भी प्रतीक है, एक सिद्धांत जो कृष्ण ने अक्सर भगवद गीता में सिखाया था।
जन्माष्टमी व्रत के प्रकार
निर्जल व्रत: कृष्ण के जन्मोत्सव के दिन मध्यरात्रि तक अन्न और जल का पूर्ण त्याग।
फलाहार व्रत: दिन में केवल फल, दूध और जल का सेवन।
सात्विक व्रत: प्याज या लहसुन रहित हल्का, बिना अनाज वाला शाकाहारी भोजन।
नियम और अनुष्ठान
दिन की शुरुआत स्नान, प्रार्थना और घर या मंदिर को फूलों और दीपों से सजाने से होती है। भक्त कृष्ण भजन गाते हैं, भगवद गीता पढ़ते हैं और पूजा करते हैं। कृष्ण को छप्पन भोग या अन्य प्रसाद अर्पित करने के बाद आधी रात को व्रत तोड़ा जाता है, जो उनके दिव्य जन्म के क्षण का प्रतीक है।
जन्माष्टमी का व्रत केवल आहार संबंधी संयम के बारे में नहीं है, बल्कि भक्ति, आत्म-अनुशासन और आध्यात्मिक चिंतन के बारे में है, जो इसे दुनिया भर के लाखों भक्तों के लिए एक प्रिय अभ्यास बनाता है।