Gian Chand Gupta: 1996 का PM मोदी का वो किस्सा क्या? पूर्व स्पीकर ज्ञान चंद गुप्ता का Exclusive इंटरव्यू

1996 का PM मोदी का वो किस्सा क्या? पूर्व हरियाणा विधानसभा स्पीकर ज्ञान चंद गुप्ता का Exclusive इंटरव्यू, यहां पढ़िए

Exclusive Panchkula Former MLA Gian Chand Gupta Interview with Arth   Prakash

Exclusive Panchkula Former MLA Gian Chand Gupta Interview with Arth Prakash

Gian Chand Gupta Interview: 'दैनिक अर्थ प्रकाश डिजिटल' लगातार विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े लोगों से बातचीत का सिलसिला जारी रखे हुए है। इसी कड़ी में अब पंचकूला के पूर्व विधायक और पूर्व हरियाणा विधानसभा स्पीकर ज्ञान चंद गुप्ता का खास इंटरव्यू में हमने किया है। जिसमें अर्थ प्रकाश समूह के सीईओ अक्षित जैन ने उनसे कई अहम सवालात किए।

सवालों के सिलसिले में ज्ञान चंद गुप्ता से उनके चंडीगढ़ मेयर से हरियाणा विधानसभा स्पीकर तक की राजनीतिक जर्नी, एक विधायक और स्पीकर के तौर पर चैलेंजेस, पक्ष-विपक्ष के बीच समान व्यवहार की भूमिका और पंचकूला की समस्याओं व यहां के विकास कार्य के बारे में पूछे गए मुद्दे शामिल रहे।

इसके अलावा ज्ञान चंद गुप्ता ने पीएम मोदी को बीजेपी के और नेताओं से अलग कैसे बताया और उनका वो दिलचस्प किस्सा भी सुनाया, जो आपने अब तक नहीं सुना होगा. तो आइए अर्थ प्रकाश पर हरियाणा विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता का Exclusive इंटरव्यू सिलसिलेवार पढ़ते हैं।

सवाल

अक्षित जैन- आप चंडीगढ़ के मेयर रहे और इसके बाद आपने हरियाणा विधानसभा स्पीकर के पद तक सफर तय किया, एक मेयर से इतनी बड़ी पोजीशन तक पहुंचने तक का आपका कैसा अनुभव रहा और इस दरमियान किनका सहयोग आपको मिला, आप किससे मोटिवेट हुए?

जवाब-

ज्ञान चंद गुप्ता कहते हैं, ''मेरी राजनीतिक जर्नी चंडीगढ़ से शुरू हुई। 6 अप्रैल 1980 को बीजेपी की स्थापना हुई थी। तबसे मैं बीजेपी के साथ रहकर काम कर रहा हूं और मैं चंडीगढ़ का 3 बार प्रदेश अध्यक्ष रहा। इस दौरान मुझे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सानिध्य प्राप्त हुआ। वह 1995 के अंदर हरियाणा समेत चार प्रदेशों के प्रभारी बनकर आए थे. लगातार 5 वर्षों तक उनके मार्गदर्शन और नेतृत्व में हमने चंडीगढ़ के अंदर बीजेपी की खोई हुई प्रतिष्ठा हासिल की।''

''पीएम मोदी के प्रभारी कार्यकाल में ही पहली बार चंडीगढ़ में नगर निगम का चुनाव 1996 में हुआ और उस चुनाव में उनके नेतृत्व में बीजेपी ने तीन-चौथाई बहुमत हासिल किया। वहीं 30-32 सालों के बाद बीजेपी का चंडीगढ़ में सांसद भी बना। पहले 96 में और फिर 98 में। वहीं नगर निगम बनने के बाद पीएम मोदी द्वारा ही मुझे चंडीगढ़ नगर निगम मेयर की ज़िम्मेदारी के लिए आगे किया गया और मुझे जो ज़िम्मेदारी दी गई। मैंने वो ज़िम्मेदारी अच्छे ढंग से निभाई।''

''इसके बाद जब दोबारा नगर निगम चुनाव हुआ तो मैं दूसरी बार पार्षद बना। लेकिन इस बीच संगठन का मुझे निर्देश मिला कि मुझे चंडीगढ़ से अब हरियाणा की राजनीति में शिफ्ट हो जाना चाहिए। इसके बाद मैं 2002 के अंदर हरियाणा की राजनीति जॉइन कर गया और चंडीगढ़ में पार्षद के पद से इस्तीफा दे दिया। जब मैंने हरियाणा बीजेपी में प्रवेश किया तो मुझे सबसे पहली ज़िम्मेदारी प्रदेश कोषाध्यक्ष की मिली और इसके बाद मैं प्रदेश का उपाध्यक्ष भी बना।''

''इसके बाद मुझे पार्टी का निर्देश हुआ कि मैं 2009 का विधानसभा चुनाव पंचकूला से लड़ूँ लेकिन इस चुनाव में मुझे सफलता नहीं मिली। इसके बाद पार्टी ने 2014 में मुझपर फिर से भरोसा जताया और मैंने 48000 वोटों के अंतर से जीत हासिल की। उस कार्यकाल में पार्टी ने मुझे चीफ व्हिफ की ज़िम्मेदारी भी दी। 2014 से 2019 तक मैं पार्टी का चीफ व्हिफ रहा। वहीं 2019 का चुनाव जब दोबारा जीतकर आया तो मुझे हरियाणा विधानसभा का स्पीकर बनाया गया। मैंने प्रयास किया की मुझे जो जिम्मेदारी मिली है मैं उसे अपनी बुद्धिमत्ता और मेहनत से बखूबी निभाऊं।''

सवाल

अक्षित जैन- आपके पास अवसर आते गए और आप उन पर आगे भी बढ़े, लेकिन चंडीगढ़ की राजनीति छोड़ हरियाणा जाना, ये आपके लिए आसान रहा या कठिन?

जवाब

ज्ञान चंद गुप्ता कहते हैं, ''मेरे लिए ये आसान नहीं था बल्कि मेरे लिए ये चुनौती थी। क्योंकि मेरी शुरुवात से राजनीतिक जर्नी चंडीगढ़ से ही रही। चंडीगढ़ में ही परवरिश हुई, यहां मैं पढ़ा-लिखा। यहीं संघ के संपर्क में आया और संघ के साथ सालों काम किया। लगभग 40 सालों की चंडीगढ़ की एसोसिएशन को छोड़कर के हरियाणा में शिफ्ट करना मेरे लिए एक बहुत बड़ा चैलेंज था। लेकिन संगठन की इच्छा थी और मैंने अपना निवास उस समय पंचकूला शिफ्ट कर लिया था तो मुझे हरियाणा में काम करने का मौका मिला।''

''मैं 1962 में संघ की शाखा में पहली बार गया और आज भी मैं संघ और संगठन से जुड़ा हुआ हूं। जब जब संगठन की तरफ से मुझे कोई भी आदेश आया मैंने उसका पालन किया। मुझे संगठन से बहुत कुछ मिला है और आज मैं जो कुछ भी हूं, संगठन की वजह से ही हूं।''

सवाल

अक्षित जैन- आप पंचकूला के विधायक भी रहे और आपने विधानसभा स्पीकर जैसा अहम पद भी संभाला, दोनों के बीच क्या चैलेंज देखते हैं आप?

जवाब

ज्ञान चंद गुप्ता कहते हैं, ''एक विधायक के तौर पर आपका एक काम रहता है एक फोकस रहता है। जनता के लिए और जनता के विकास कार्यों को लेकर आप काम करते हैं। क्योंकि जनता चाहती है कि हमने जिसे चुना है वो हमारे काम करे। मैंने 2014 के अपने पहले कार्यकाल में पंचकूला में विकास के वो कार्य किए और जो बहुत जरूरी थे। इसके पहले पंचकूला विधानसभा को काँग्रेस द्वारा पूरी तरह से नजरअंदाज किया जाता रहा।''

''हो सकता है कि काँग्रेस की आपसी गुटबाजी के चलते पंचकूला की जनता को सफर करना पड़ा। लेकिन जब जनता ने मुझपर भरोसा किया तो पंचकूला के विकास के लिए पहले 5 साल और उसके बाद के 5 साल में जो विकास के कार्य किए। उससे पंचकूला सिर्फ हरियाणा में ही नहीं उभरा बल्कि पूरे देश के नक्शे में उभरकर आया। 10 सालों में 5 हजार करोड़ के विकास कार्य पंचकूला में किए गए।''

''जिस पंचकूला को कभी नजरअंदाज किया जाता था वो डेवलप्ड पंचकूला बना। यहां एजूकेशन, हेल्थ से लेकर रोड कनेक्टिविटी तक हर सेक्टर में इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम किया। सबसे अहम काम पंचकूला टू सहारनपुर नेशनल हाइवे बनाने का किया गया। जिसके बाद से पंचकूला की तस्वीर बदली। क्योंकि इसके बनने से पंचकूला के सारे गांव मुख्य धारा में इससे जुड़ गए।''

'इसी तरह पार्कों के काम, राउंड अबाउटस के काम या पंचकूला में मेडिकल कॉलेज की बात हो या इसके अलावा 100 बेड के सरकारी अस्पताल को 500 बेड का बनाना हो, इस सब पर काम किया गया। वहीं जहां तक स्पीकर की बात है तो मैंने बहुत से नवाचार किए और नए बदलाव किए। सबसे बड़ी उपलब्धि ये रही कि विधानसभा को ई-विधानसभा बनाया गया। ई-विधानसभा बनने के बाद सारी जानकारी ऑनलाइन आ गई। इसके लिए हमने विधायकों और कर्मियों की ट्रेनिंग भी करवाई।''

''इसके अलावा विधानसभा की कार्यवाही में सवाल लगाने को लेकर ब्लेम लगता था कि सत्ता पक्ष के सवाल लगते हैं। विपक्ष को मौका नहीं दिया जाता। इसे दूर करने और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए मैंने व्यवस्था की जो भी प्रश्न लगेंगे वो बिना किसी सिफ़ारिश और आपसी व्यवहार के ही लगेंगे और ड्रॉ प्रक्रिया से लगेंगे। ताकि सबको समान अवसर मिले।''

''इसके अलावा मुझे यह महसूस हुआ कि विधानसभा के अंदर वर्क कल्चर कम था। जो अधिकारी और कर्मचारी अपनी सीट पर नहीं बैठते थे तो हमने एक सिस्टम शुरू किया की जो परजेंस है वो फेस से लगेगी। इसके अलावा मूवेमेंट की एंट्री की शुरुवात मैंने की। इस प्रकार से विधानसभा के अंदर पारदर्शिता से काम किया और विपक्ष ने भी इसे सराहा। मैंने किसी के साथ पक्षपात नहीं किया और सबको बोलने का समान मौका दिया।''

सवाल

अक्षित जैन- स्पीकर के तौर पर न्यूट्रल रह पाने की परीक्षा का कोई वाकया रहा हो, उसके बारे में बताएं

जवाब

ज्ञान चंद गुप्ता कहते हैं, ''विधानसभा के अंदर कई बार ऐसे मौके आए जब मेरे न्यूट्रल रह पाने की परीक्षा हुई। विधानसभा के अंदर एक बार विपक्ष के विधायक ने प्रश्न किया लेकिन सामने से सत्ता पक्ष के मंत्री की तरफ से जो जवाब आना चाहिए था वो नहीं आया। तो मैंने न्यूट्रल रहते हुए मंत्री जी से कहा कि विधायक का जो सवाल है, उसका जवाब दीजिए। इधर-उधर की बात मत कीजिये। ये एक सत्ता पक्ष के मंत्री को जो टोकना था, मुझे लगा की मेरी ड्यूटी है, मुझे ऐसा लगा की मुझे ऐसा करना चाहिए।''

''इसी तरह से विधानसभा सेशन एक दिन बढ़ाए जाने की मांग जब सामने आई तो वो भी एक दिन बढ़ाया गया। मेरे अंदर कोई ऐसी बात नहीं थी कि मुझे विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच अंतर करना है क्योंकि लोकतंत्र में सत्ता पक्ष से ज्यादा विपक्ष की भूमिका है और ये सार्थक तौर पर होनी चाहिए।''

सवाल

अक्षित जैन- पंचकूला में कुछ मूल समस्याएं अभी भी लगातार बनी हुई हैं, लोग इस पर सवाल करते हैं, आप क्या कहेंगे?

जवाब

ज्ञान चंद गुप्ता कहते हैं, ''जो विकास 2014 से पहले पूरे हरियाणा का हुआ, वो पंचकूला का नहीं हुआ। लेकिन जब बीजेपी की सरकार आई तो यहां का कायाकाल्प किया गया। बीजेपी सरकार ने प्रयास किया की पंचकूला को स्वच्छ, सुंदर और हरा-भरा बनाया जाए। लेकिन एक प्रैक्टिकल डिफिकल्टी यह है की पंचकूला के अंदर 5 अलग-अलग विभाग हैं जो विकास की द्रष्टि से पंचकूला में काम करते हैं।''

''इन अलग-अलग विभाग की वजह से कई बार ये दिक्कत हो जाती है कि किसी सड़क पर अगर काम होना है तो ये किस विभाग की है। हालांकि प्रयास चल रहा है कि पंचकूला डेवलपमेंट अथॉरिटी के गठन के बाद इसके अंतर्गत ये सब विभाग मिलकर के काम करें।''

सवाल

अक्षित जैन-  पंचकूला विधायक रहकर आपने किस काम को प्राथमिकता दी, इसके साथ ही वो कौन सा काम है जो आप करना तो चाहते थे लेकिन समय रहते कर नहीं पाये?

जवाब

ज्ञान चंद गुप्ता कहते हैं, ''जहां तक पंचकूला के विकास की बात है, यह बहुत मुश्किल था। खासकर मेडिकल को लेकर. मैं चाहता था पंचकूला के अंदर एक अच्छा सरकारी अस्पताल हो। पंचकूला के अंदर 100 बेड का जो सरकारी अस्पताल था, उसे हमने फोकस करके सरकारी अधिकारियों पर प्रेशर करके उसे पहले 300 बेड का अस्पताल और बाद में 500 बेड का अस्पताल बनवाया। 2014 से पहले पंचकूला में न तो मेडिकल कॉलेज था, न तो इंजीनियरिंग कॉलेज था और न ही पॉलिटेक्निक व आईटीआई कॉलेज और न ही और कोई महत्वपूर्ण संस्थान।''

''मैं चाहता था कि पंचकूला हेल्थ और एजुकेशन की द्रष्टि से आगे बढ़े और यहां के लोगों को काम मिले। यहां के युवाओं को यहीं सारी सुविधाएं मिल सकें। मैंने उसके लिए यहां काम किया। और रही बात कुछ नहीं कर पाने की तो इमप्रूवमेंट का स्कोप तो हमेशा ही रहता है। लेकिन एक चीज का जो मैंने शुरू में प्रयास किया वो आज सिरे चढ्ने वाला है लेकिन उसे टाइम ज्यादा लगा। वो था की जो झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोग हैं। उनका पुनर्वास हो, उन्हें पक्की छत मिले. उसके लिए मैंने सीएम को ले जाकर जगह चिन्हित करवाई।''

''अभी कुछ दिन पहले लगभग साढ़े 17 एकड़ जमीन उन झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों के लिए फ्लैट बनाने के लिए चिन्हित की गई है उसका काम अगले एक महीने में शुरू हो जाएगा और हम पंचकूला को स्लम फ्री बनाएंगे।''

सवाल

अक्षित जैन- पंचकूला में मेयर की सीट बीजेपी के पास है और विधायक की सीट काँग्रेस के पास, ऐसे में एक ही शहर में दो अलग-अलग पार्टियों के पास पावर हो तो काम करने में कितनी दिक्कत आती है?

जवाब

ज्ञान चंद गुप्ता कहते हैं, ''यह तो अपने ऊपर निर्भर करता है, चाहें वह मेयर हो या विधायक। दोनों को ही जनता ने चुनकर भेजा है। उनकी ज़िम्मेदारी है कि जनता की जो तकलीफ़ें हैं उन्हें दूर करने का प्रयास करे। चाहें वो नगर निगम के स्तर पर हो या सरकार के स्तर पर। अगर वो ज़िम्मेदारी समझ के काम करेगा तो निश्चित काम हो पाएगा। लेकिन अगर एक दूसरे पर दोषारोपण किया जाता रहा तो काम में भी दिक्कत आएगी और जनता का भरोसा भी उठ जाएगा।''

सवाल

अक्षित जैन- लोग किसी उम्मीदवार को व्यक्तिगत देखते हुए वोट करते हैं या पार्टी को देखते हुए?

जवाब

ज्ञान चंद गुप्ता कहते हैं, ''उम्मीदवार और पार्टी दोनों चीजे हैं। प्राथमिकता पार्टी की वर्किंग, पार्टी की परफ़ोर्मेंस और वह पार्टी जहां भी सत्ता में आई उसने वहां क्या किया। पार्टी की क्या पॉलिसी रहीं। क्या पार्टी ने इलाके के लिए काम किए। यह सब देखकर लोग वोट करते हैं। और दूसरा जो व्यक्ति चुनाव लड़ रहा है उसे भी कहीं न कहीं देखकर वोटर अपना मन बनाता है। लोग उसके बैकग्राउंड को भी देखते हैं।''

''लेकिन चुनाव के अंदर कई बार नरेटिव भी बड़ा काम करता है जैसे 'इसकी सरकार आ रही है, उसकी सरकार आ रही है।' लोग इसी से भ्रमित हो जाते हैं। इस बार पूरे हरियाणा में काँग्रेस की सरकार आने का नरेटिव चला और इसी का असर पंचकूला की सीट पर पड़ा। लोग इससे भ्रमित हो गए।''

सवाल

अक्षित जैन- पंचकूला में नगर निगम चुनाव आने वाले हैं। किसी उम्मीदवार के लिए 3 मुख्य मुद्दे क्या रहने चाहिए?

जवाब

ज्ञान चंद गुप्ता कहते हैं, ''आज पंचकूला एक वेल प्लांड सिटी है और ट्राईसिटी के पार्ट रूप में चंडीगढ़ के साथ सटा हुआ है। जब हम पंचकूला की बात करते हैं तो चंडीगढ़ और मोहाली का नाम भी आता है। लेकिन पंचकूला उतना वेल प्लांड सिटी नहीं है जितना चंडीगढ़ है। क्योंकि चंडीगढ़ टोटली वेल प्लांड सिटी है। पंचकूला के अंदर पहले गांव थे। लेकिन पंचकूला शहर हरियाणा प्रदेश के लिए एक मॉडल सिटी बने। ये प्राथमिकता हर व्यक्ति की रहनी चाहिए।''

''क्योंकि राज्य और प्रदेश सरकार के 90% कार्यालय पंचकूला में हैं, यहीं छोटी सरकार बैठी हुई है। इस शहर के बारे में हमें उदाहरण सेट करना चाहिए। मेरे कार्यकाल में मैंने पंचकूला के लिए 7 सरोकार रखे थे। मैंने कहा था कि पंचकूला ड्रग फ्री हो, स्लम फ्री हो, डस्ट फ्री हो, प्रदूषण फ्री हो, स्ट्रे डॉग फ्री हो। इस पर हम सबको काम करना होगा। सरकार अकेले इस पर कुछ नहीं कर सकती। सरकार के साथ-साथ लोगों को इसके लिए सहयोग करना चाहिए।''

सवाल

अक्षित जैन- राजनीति के अपने शुरुवाती दौर में आपने पीएम मोदी के साथ निकटतम सहयोगी के रूप में काम किया। उनमें और पार्टी के अन्य नेताओं में आपको क्या अंतर दिखा?

जवाब

ज्ञान चंद गुप्ता कहते हैं, ''पीएम मोदी और पार्टी के अन्य नेताओं में बहुत अंतर दिखता है। मैंने उनसे 5 साल में बहुत कुछ सीखा। वो शुरू से ही अनुशासन प्रिय रहे हैं और जितनी मेहनत वो उस समय प्रभारी रहते हुए करते थे, आज भी प्रधानमंत्री बनने के बाद वो उतनी ही मेहनत कर रहे हैं। सुबह 5 बजे से लेकर रात 12 बजे तक कोई भी मामला हो, वो उस पर सफल होने तक काम करते रहते हैं। इसक अलावा उनमें एक और खासियत ये है कि वो कोई भी काम वो एक समयसीमा तय करके ही करते हैं। चाहें जैसे भी करना पड़े।''

''मैं 1996 लोकसभा चुनाव के दौरान का एक किस्सा बताता हूं। उससे पहले पार्टी का कोई कार्यालय नहीं था। जब मोदी जी यहां आए तो उन्होंने चुनाव से लगभग ढेढ महीने पहले कहा कि आपने चुनाव कार्यालय के लिए क्या किया तो हमने कहा कुछ नहीं। उन्होंने वहीं कहा कि अगला चुनाव हम अपने चुनाव कार्यालय से ही लड़ेंगे। 30 दिन का समय है। तो हमने कहा कि हमारे पास तो कोई चीज नहीं है फिर 30 दिन में कैसे होगा। इस पर वो बोले की जरूर होगा. उन्होंने सब लोगों के बीच अलग-अलग काम बांट दिया।''

''उन्होंने केवल आदेश ही नहीं किया बल्कि वह लगातार निगरानी करते रहे। आप मानेंगे नहीं कि उन्होंने जो 30 दिन का समय दिया था उसमें उन्होंने यह भी कह दिया था कि चुनाव से पहले इस दिन हवन भी होगा। उस समय हमारे पास जमीन पर कुछ भी नहीं था लेकिन उनकी दूरदर्शी सोच से 30 दिन के अंदर 5 कमरे बनकर तैयार हुए।''

''जिस तारीख को उन्होंने कहा था कि हवन होगा, उसी तारीख को हवन हुआ और उसी दिन या अगले दिन चुनाव की घोषणा हो गई। मतलब उन्होंने जो कहा था कि अगला चुनाव अपने कार्यालय से लड़ेंगे तो उन्होंने वो कर दिखाया। उनमें मेहनत करने की गज़ब क्षमता है और जैसी एनर्जी उनमें हैं वो शायद ही किसी और में हो।''

''चंडीगढ़ में जब बीजेपी जीत नहीं पा रही थी तो उन्होंने आते ही हमसे पूछा कि आप गांव में जाते हो, लेबर कॉलोनी में जाते हो। जब तक आप गरीब आदमी के घर पर जाकर चाय नहीं पियोगे, उसके साथ खाना नहीं खाओगे। उसे अपनापन नहीं लगेगा। तब नहीं जीत पाओगे। जब हमने ऐसा किया तो अगली बार बीजेपी के लिए परिणाम बदल गए। उन्होंने काम को लेकर हमेशा से ही हमारी हिम्मत बढ़ाई है। काम गलत होने पर ही उन्होंने हौंसला दिया।''

सवाल

अक्षित जैन- ज्ञान चंद गुप्ता को एक नेता के रूप में लोग कैसे याद रखें?

जवाब

''ज्ञान चंद गुप्ता कहते हैं, मैं अपने आप को नेता नहीं मानता। मैं एक कार्यकर्ता हूं और एक सेवक हूं। लोग अगर मुझे याद करें तो बस इसलिए की मेरे द्वारा कभी किसी की मदद हो पाई हो और किसी गरीब को उसका लाभ हुआ हो।''