Debate on population report in India, politicians and experts gave reactions

बहुसंख्यक घटे, अल्पसंख्यक बढ़े : भारत में आबादी की रिपोर्ट पर छिड़ी बहस, राजनेताओं और विशेषज्ञों ने दी प्रतिक्रियाएं

Debate on population report in India, politicians and experts gave reactions

Debate on population report in India, politicians and experts gave reactions

Debate on population report in India, politicians and experts gave reactions- नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) द्वारा जारी एक रिपोर्ट ने देश में एक नई बहस को जन्म दे दिया है।

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में साल 1950 से 2015 के बीच हिंदुओं की आबादी 7.82 प्रतिशत कम हो गई है। जबकि, मुस्लिमों की आबादी में 43.15 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी दर्ज की गई है। अब इस रिपोर्ट को लेकर देश में सियासत गरमा गई है। ईएसी-पीएम की रिपोर्ट पर अलग-अलग दलों के नेताओं की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही है।

केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा, ''1947 में हिंदुओं की आबादी 88 फीसद और मुस्लिमों की 8 फीसद थी। आज हिंदुओं की आबादी जहां 70 फीसद के आसपास पहुंच चुकी है। वहीं, मुस्लिमों की आबादी 7 फीसद से बढ़कर 12 फीसद के आसपास पहुंच चुकी है। लेकिन, मैं कहता हूं कि यह 12 नहीं, बल्कि 20 फीसद के आसपास पहुंच चुकी है। यह हम सभी के लिए चिंता का विषय है। अगर समय रहते इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया, तो आगामी दिनों में हम सभी को इसके दुष्परिणाम से गुजरना होगा।''

असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा कि बिल्कुल सही है, देश में डेमोग्राफी बदल रही है। हर राज्य में मुसलमानों की आबादी बढ़ रही है और हिंदुओं की आबादी घट रही है। यह तथ्यों पर आधारित है। यह सांख्यिकीय आंकड़ा है, आपका और मेरा डेटा नहीं है।

यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि देश में संतुलन बिगड़ने का दोषी अगर कोई है, वो कांग्रेस पार्टी है। जनसंख्या नियंत्रण की कोई नीति नहीं लाए। एक तरफ मुस्लिमों की जनसंख्या तेजी से बढ़ती गई। दूसरी तरफ हिंदुओं की संख्या घटती गई। देश में समान नागरिकता कानून लागू करने की जरूरत है।

भारत में घटती हिंदुओं की आबादी पर भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने आईएएनएस से कहा, "साल 1951 में मुसलमानों की जनसंख्या कम थी। मगर उस समय मुसलमानों में लियाकत वाले एक से एक टैलेंटेड होते थे। बड़े गुलाम अली, उस्ताद बिस्मिल्लाह खां, उस्ताद अमजद अली खान, उस्ताद जाकिर हुसैन और बड़े शायरों में मजरूह सुल्तानपुरी, जोश मलीहाबादी, ये सब कहां चले गए। अब सेक्लुयर राजनीति के चलते मुस्लिम समाज का प्रतिनिधि कौन बना है, जाकिर नाइक, इशरत जहां, याकूब मेमन, बुरहान वानी, अबू सलेम, छोटा शकील, मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद। ये देखना पड़ेगा कि इधर संख्या बढ़ी और क्वालिटी गिरी। मुझे लगता है कि मुस्लिम समाज को भी प्रतिक्रिया देने की बजाए आत्मनिरीक्षण करने की जरूरत है।"

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता आरपी. सिंह ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं जो सरकार रही हैं, उनकी नीतियां इस प्रकार रही हैं, एक तबके की आबादी को बढ़ावा मिला। कानूनों में बदलाव किया गया। इसके साथ पर्सनल लॉ में छूट दी गई। उसका आज असर दिख रहा है। पॉपुलेशन का बैलेंस, इन बैलेंस पर फर्क दिखाई पड़ रहा है।

कांग्रेस नेता उदित राज ने प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) की रिपोर्ट पर कहा, "जब 2011, 2021 में जनगणना होनी थी। तब, इस निकम्मी सरकार ने जनगणना नहीं करवाई। जब तक जनगणना नहीं होगी। तब तक पॉपुलेशन के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। इन लोगों को शर्म आनी चाहिए। कोविड महामारी के दौरान सभी देश इसकी चपेट में थे। अकेला भारत नहीं था। यह सरकार बहुत ही असक्षम सरकार है, यह जो कह रहे हैं, गलत कह रहे हैं, 25 साल होने वाला है, 2011 के बाद 2021 में जनगणना नहीं हुई है। पॉपुलेशन किसकी बढ़ी और किसकी नहीं बढ़ी, यह तभी पता चलेगा। जब जनगणना होगी।"

पूर्व कांग्रेस नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम ने भारत में घटती हिंदुओं की आबादी को लेकर विपक्ष पर प्रहार किया। उन्होंने कहा, "विपक्ष सिर्फ यही चाहता है कि हिंदुओं को विभाजित कर दिया जाए और भारत को फिर से गुलामी की तरफ धकेला जाए।"

टैक्सएब संस्था के अध्यक्ष, सामाजिक कार्यकर्ता एवं जनसंख्या विशेषज्ञ मनु गौड़ ने कहा, "इस रिपोर्ट में साफ दिखाया गया है कि भारत और नेपाल दो हिंदू बहुसंख्यक देश हैं, जहां बहुसंख्यकों की आबादी में कमी आई है। इसके अलावा दुनिया के 44 देश ऐसे भी हैं, जहां पर बहुसंख्यक बढ़ी है और अल्पसंख्यक आबादी में कमी आई है। इसे अगर हम समझने की कोशिश करें तो हम भारत के लोग इसे अपने पड़ोसी देश के माध्यम से बेहतर तरीके से समझ सकते हैं। जहां भारत के पड़ोसी पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश में अल्पसंख्यक आबादी कम हुई है और बहुसंख्यक आबादी बढ़ी है। यही कारण रहा है कि भारत को सीएए जैसा कानून लेकर आना पड़ा। ताकि उन देशों के प्रताड़ित उन अल्पसंख्यकों को यहां नागरिकता दी जा सके और शरण दिया जा सके।"

राष्ट्रीय मुस्लिम महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष सैय्यद साहिबे आलम ने कहा कि मेरे समझ से यह संकीर्ण मानसिकता का नतीजा है, ये तुष्टीकरण की राजनीति है। आपको सोचना चाहिए कि जब से मुल्क आजाद हुआ है तब से लेकर फैमिली प्लानिंग, हेल्थ ऑफ इंडिया के जो सर्वे आए हैं, तब से लेकर आज तक मैं समझता हूं कि गैर मुस्लिम भाईयों की यानी हिंदुओं की आबादी भी तेजी से बढ़ी है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ मुसलमानों की आबादी बढ़ी है।

ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन बरेलवी ने कहा कि इस रिपोर्ट का हवाला दिया जा रहा है, उसमें कोई सच्चाई नहीं है। हर तबके के लोगों की आबादी में बढ़ोतरी हुई है और जाहिर है कि जो गरीब या कमजोर तबके वालों की आबादी में बढ़ोतरी कुछ ज्यादा ही होगी। इसे किसी धर्म से जोड़कर देखना गलत है। हर तबके की अपनी-अपनी आबादियां हैं और जो लोग पढ़-लिख जाते हैं, संपन्न हो जाते हैं तो वो लोग अपनी आबादी पर कंट्रोल करते हैं। उन्हें समझ आ जाता है कि कम बच्चे होंगे तो तालीम और तरबियत अच्छी होगी।