आचार्य श्री सुबल सागर महाराज के मंगल प्रवचन शिंदे की छावनी स्थित शांतिनाथ जैन मंदिर में चल रहे है

Acharya Shri Subal Sagar Maharaj
सुख में सब साथ आते है लेकिन दुःख में कोई नहीं :- आचार्य श्री सुबल सागरजी।
आचार्य श्री शुक्रवार को शिंदे की छावनी से विनय नगर स्थित महावीर जैन मंदिर में आज मंगल प्रवेश के साथ प्रवचन होगे।
ग्वालियर -: Acharya Shri Subal Sagar Maharaj: हमेशा याद रखे सुख में सब साथ आते है लेकिन दुःख में कोई साथ नहीं होता। पुण्य जब तक पास में होता है हर कोई साथ देता है लेकिन जब पाप उदय में आए तो साथ चलने वाले भी छोड़ जाते है। कर्मो का भुगतान तो करना ही होता है उससे हमे देवता भी नहीं बचा पाते है। हमे हमेशा पाप करने से डर लगना चाहिए न कि पाप करने पर मिलने वाली सजा से डरना चाहिए पर हम पाप से नहीं उससे मिलने वाली सजा से डरते है। यह विचार आचार्य श्री सुबल सागर महाराज ने आज गुरूवार को शिंदे की छावनी स्थित दिगंबर शांतिनाथ जैन मंदिर मे धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
आचार्यश्री ने कहा किहम नफरत व घृणा पाप से करनी चाहिए पर हम पाप करने से वाले ऐसा करते है। आज का पापी कल धर्मात्मा हो सकता फिर उससे घृणा करके क्या मिल जाएगा। एक गलत कर्म की कितनी बड़ी सजा मिलेगी कोई नहीं जानता। क्रोध, अभिमान, माया व लोभ से गलत कर्म तो हो जाते पर जब इनका भुगतान करना पड़ता है तो स्थिति बड़ी विकट हो जाती है।मन को सही रखने के लिए संयम जरुरी है। मन की इच्छाओं का शमन संयम से ही होगा। मन को सुखी बनाने और संतुष्ट करने के लिए जो उचित हो, वही करना चाहिए। बच्चों को माता-पिता टोकते हैं, रोकते हैं तो वह संयमित और सुरक्षित रखने के लिए करते हैं। हमेशा अपने बड़ों की बात मानना चाहिए। नियम ही सुरक्षित रखने के लिए बनते हैं।आचार्य श्री के चरणों में श्रीफल भेंट डॉ वीणा जैन, रविन्द्र जैन, निर्मल पाटनी, राजेश जैन लाला, नवल किशोर जैन, शांतिनाथ मंदिर समिति ओर महिलाओं ने सामूहिक रूप से किए। जैन समाज के प्रवक्ता सचिन जैन ने बताया कि आचार्य श्री सुबल सागर महाराज आज शुक्रवार को सुबह 06 बजे शिंदे की छावनी से पाद विहार कर विनय नगर स्थित महावीर जैन मंदिर पहुंचेंगे। यहां 09 बजे से मंगल प्रवचन होगे।
धर्म करने से अनन्त गुणा फल प्राप्त होता है, हर व्यक्ति का धन दान के रूप में नहीं लगता।
आचार्य श्री सुबल सागर महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि इस जन्म में आप अच्छा धर्म करो, दान करो तो अगला भव आपका और अच्छा होगा। धर्म करने से अनन्त गुणा फल प्राप्त होता है, हर व्यक्ति का धन दान के रूप में नहीं लगता है, यदि आपका पुण्य होगा तो ही आपका धन अच्छे कार्यों में लगेगा, नहीं तो आपका मन ही नहीं कहेगा कि हम दान दें। दान पाप का ब्याज चुकाना कहलाता है और त्याग मूल चुकाना कहलाता है। दान परिग्रह का प्रायश्चित है।