Israel-Hamas war

Editorial: इजरायल-हमास युद्ध में मानवता पर हो रहे हमले

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Attacks on humanity in Israel-Hamas war

भारत की विश्व शांति में भूमिका अद्वितीय है। रूस-यूक्रेन युद्ध में अपनी सक्रिय भूमिका से दोनों देशों को समझाने की कोशिशें कर चुका भारत अब इजरायल और फिलिस्तीन के बीच जारी संघर्ष में भी यही भूमिका अदा कर रहा है। भारत ने जहां आतंकवाद के खिलाफ इजरायल को कार्रवाई के लिए समर्थन किया है, वहीं फिलिस्तीन से भी शांति के रास्ते पर चलने का अनुरोध किया है। इजरायल ने जवाबी हमले में फिलिस्तीन पर जैसी कार्रवाई अंजाम दी है, वह बेहद निर्मम है।

बेशक, इससे पहले हमास के आतंकी ऐसी ही कार्रवाई इजरायल में अंजाम दे चुके हैं, जिसका भारत ने पुरजोर विरोध किया था, लेकिन अब गुस्से से भरा इजरायल फिलिस्तीन में अंधाधुंध बम बरसाने में लगा है, जिसमें हजारों जानें जा चुकी हैं। दुनिया के कई देश फिलिस्तीन के नागरिकों की मदद के लिए आगे आ रहे हैं और इनमें भारत भी है। भारतीय वायुसेना का एक विमान 6.5 टन दवाइयां और 32 टन राहत सामग्री लेकर मिस्र पहुंचा है। वास्तव में किसी युद्ध या हिंसक संघर्ष के बाद ऐसी राहत भेजना मानवता का धर्म है, लेकिन प्रश्न यही है कि आखिर ऐसे हालात बन कैसे जाते हैं।  

रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत से पहले रूस की ओर से इसकी लगातार चेतावनी दी गई थी, हालांकि यूक्रेन ने रूस से खुद को अलग करते हुए नाटो देशों की सदस्यता अपनाने की अपनी नीति को कायम रखा। निश्चित रूप से अमेरिका और दूसरे नाटो देशों की रूस की सीमा के नजदीक मौजूदगी उसके लिए खतरे की घंटी है, ऐसे में उसका विरोध अपनी जगह सही था, लेकिन यूक्रेन ने रूस के समक्ष दबाव में न आते हुए पश्चिमी देशों के कहे पर चलना ज्यादा जरूरी समझा। इसी प्रकार अब लंबे समय से इजरायल और फिलिस्तीन के बीच शांति कायम थी, लेकिन हमास के आतंकियों ने इजरायल के धार्मिक पर्व पर उसे हिंसा और मौत का उपहार दिया, क्या यह आवश्यक था। वे कौन थे, जिनके अंदर इजरायल के प्रति नफरत की आग जल रही थी और उन्होंने इसी अवसर को सबसे उपयुक्त माना।

आखिर इस हिंसा की शुरुआत किसने की। क्या इजरायल को अपनी स्वतंत्रता से जीने का हक नहीं है। फिर हमास के आतंकियों ने इजरायल में घुस कर जो किया, क्या वह क्षमा करने योग्य है। क्या यह मौत की सजा से कम हो सकता है। इस समय ऐसे वीडियो सामने आ रहे हैं, जिनमें फिलिस्तीन की महिलाएं और बच्चे अरब देशों से मदद की गुहार लगा रहे हैं। उनका संताप देखा नहीं जाता, लेकिन क्या कोई यह बताएगा कि आखिर इस हिंसा की शुरुआत जब मुस्लिम देशों की तरफ से की जाती है, तब उसे क्यों उचित ठहराया जाता है और जब दूसरा पक्ष अपने बचाव में और बदले की भावना से कार्रवाई करता है तो इसे गलत ठहराया जाने लगता है। प्रश्न यही है कि आखिर हरकोई शांति और सद्भाव से क्यों नहीं जीना चाहता, अगर ऐसा हो तो फिर युद्ध होगा ही नहीं।

निश्चित रूप से इजरायल का प्रतिकार उचित है, क्योंकि अपने देश की संप्रभुता को कायम रखना, उस देश का ही काम है। लेकिन इस पूरे संघर्ष में चाहे वे इजरायल के लोग हों या फिर गाजा में रहने वाले या फिर फिलिस्तीनी, सभी को जघन्य अत्याचारों से गुजरना पड़ रहा है। हमास के आतंकियों ने इजरायल में घुस कर जिस प्रकार महिलाओं, बच्चों को अगवा किया और उनके साथ नृशंस व्यवहार किया और जिसे भी सामने देखा उसकी हत्या कर दी, से यह लग रहा था कि पूरी दुनिया हमास की हैवानियत को देख रही है, लेकिन अब इजरायल की सेना ने जवाबी कार्रवाई में हमास के नियंत्रण वाले गाजा में जो खूनी खेल शुरू किया है, वह और भी भयानक है। ऐसी रपट हैं, जिनमें बताया गया है कि इजरायल की सेना ने गाजा में गर्भवती महिलाओं के गर्भ चाकू से चीर दिए हैं। यहां सेना जिसे भी सामने पा रही है, उसे मौत के घाट उतार रही है। गाजा में जुल्म का ऐसा दौर जारी है, जोकि रूह कंपा देता है।

वास्तव में दुनिया के देश अगर राहत सामग्री पहुंचाने के साथ ही इलाके में शांति कायम करवा सकें तो यह बहुत बड़ी सेवा होगी। हालांकि अमेरिका, ब्रिटेन के राष्ट्र प्रमुख जिस प्रकार से इजरायल में पहुंच कर उसे अपना समर्थन दे रहे हैं। यह समर्थन शांति व्यवस्था कायम करने के लिए नहीं है, अपितु युद्ध को जारी रखने के लिए है।

यह समझने की बात है कि युद्ध कौन लड़ता है, युद्ध देश और सेनाएं लड़ती हैं, लेकिन उन सेनाओं में किसी के परिवार का कोई होता है, जोकि सिर्फ शहीद होने के लिए उस समय खड़ा होता है। किसी के दर्प को शांत करने के लिए कोई अपनी जान को कुर्बान कर रहा होता है। होना तो यह चाहिए कि प्रत्येक दूसरे देश की सीमाओं का सम्मान करे। गाजा का यह इलाका दो-दो धर्मों की स्थली है, पवित्र है, फिर भी यहां खून बह रहा है। क्या मानवता के नाते यहां शांति कायम नहीं हो सकती? कोशिश तो किजिए। 

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