“योग्यता की परीक्षा या नीति की विफलता? हरियाणा में शिक्षक चयन कटघरे में ?

“योग्यता की परीक्षा या नीति की विफलता? हरियाणा में शिक्षक चयन कटघरे में ?

Teacher Selection in Haryana

Teacher Selection in Haryana

Teacher Selection in Haryana: संघ लोक सेवा आयोग की विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से अपनी जनसंख्या और क्षेत्रफल के अनुपात से कहीं अधिक योग्य अधिकारी देने वाला हरियाणा आज आदर्श और बेहतर शिक्षक देने में क्यों पिछड़ रहा है। क्या इस मामले में प्रदेश की शिक्षण संस्थाओं, शैक्षणिक  वातावरण, गुरुजनों या फिर हरियाणा लोक सेवा आयोग की भर्ती प्रक्रिया को दोषी माना जाए। एक बात तो जरूर है जब हरियाणा के बच्चे राष्ट्रीय स्तर की परीक्षाओं में झंडे गाढ़ रहे हैं तो एचपीएससी की परीक्षाओं मे सफल न हो पाना बहुत ही विचारणीय विषय है। इस लेख में यही इंगित किया गया है कि सूटेबल शिक्षक सिलेक्ट करने में एचपीएससी की नियत में खोट तो नहीं है।जब बात शिक्षकों की नियुक्ति की आती है, तो यही प्रदेश एक असहज सवाल के सामने खड़ा है। 

हरियाणा लोक सेवा आयोग द्वारा लागू की गई नई भर्ती प्रक्रिया और विशेष रूप से सब्जेक्टिव नॉलेज टेस्ट में अनिवार्य 35 प्रतिशत अंकों की शर्त इस बहस के केंद्र में है। यह शर्त गुणवत्ता की कसौटी के नाम पर लागू की गई, लेकिन इसका परिणाम यह निकला कि हजारों पद खाली रह गए और बड़ी संख्या में योग्य उम्मीदवार चयन प्रक्रिया से बाहर हो गए। सबसे मुख्य बात यह है कि इस भर्ती प्रक्रिया ने आरक्षण नीति को पूरी तरह खत्म करने का प्रयास किया गया ‌है। इसके साथ-साथ‌जो भी अभ्यर्थी योग्य पाए गए हैं, उनमें अधिकतर अभ्यर्थी दूसरे राज्यों से हैं।

कॉलेज स्तर पर असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती ने हालात को और चिंताजनक बना दिया है। कुल 1010 पदों के लिए, नियमानुसार लगभग 2020 उम्मीदवारों को अगले चरण के लिए योग्य ठहराया जाना था, लेकिन वास्तव में केवल 502 अभ्यर्थी ही सफल घोषित किए गए। अंग्रेज़ी विषय में 613 पदों के सामने मात्र 151 चयन, अर्थशास्त्र में 43 में 24 और डिफेंस स्टडीज़ में 23 में सिर्फ 7 अभ्यर्थियों का चयन यह दर्शाता है कि विश्वविद्यालयों में शिक्षण व्यवस्था किस संकट की ओर बढ़ रही है।

आरक्षित वर्गों की स्थिति यहाँ और भी खराब दिखाई देती है। असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती में बीसी-बी वर्ग के 130 संभावित चयन के मुकाबले केवल 46, बीसी-ए के 298 में से सिर्फ 47, अनुसूचित जाति के 192 में से मात्र 23 और ईडब्ल्यूएस के 196 में से केवल 44 उम्मीदवार ही योग्य ठहराए गए। यह आँकड़े इस बात की ओर इशारा करते हैं कि यह नीति न केवल पदों को खाली छोड़ रही है, बल्कि सामाजिक संतुलन को भी बिगाड़ रही है।

पीजीटीऔर आयुर्वेदिक मेडिकल ऑफिसर की भर्ती के आँकड़े इस स्थिति को और भी साफ़ तौर पर उजागर करते हैं। इनमें कुल 3382 पदों के मुकाबले केवल 2129 अभ्यर्थी ही चयनित हो सके। यानी हर तीसरा पद खाली रह गया। गणित जैसे मुख्य विषय में 414 पदों के सामने 345 ही भरे जा सके, जबकि फिजिक्स में स्थिति और भी खराब रही—410 पदों में से मात्र 100 चयनित हुए। मेवात क्षेत्र में गणित के 42 पदों में से केवल 1 और फिजिक्स के 59 पदों में से सिर्फ 2 अभ्यर्थियों का चयन होना बताता है कि यह नीति पिछड़े क्षेत्रों के लिए कितनी घातक साबित हो रही है।

भाषा और मानविकी विषयों में भी तस्वीर उत्साहजनक नहीं है। संस्कृत के 69 पदों में 43, पंजाबी के 50 में 39 और उर्दू के 4 पदों में केवल 2 ही भर पाए। राजनीति विज्ञान में 283 पदों के मुकाबले 192 चयन हुए, जबकि मेवात में यही संख्या 59 में से सिर्फ 2 रही। शारीरिक शिक्षा, फाइन आर्ट्स और इतिहास जैसे विषयों में भी दर्जनों पद खाली रह गए, जिससे स्कूलों में पढ़ाई की निरंतरता पर सीधा असर पड़ना तय है।

सबसे गंभीर असर आरक्षित वर्गों पर पड़ा है। PGT और AMO भर्ती में जहाँ अनारक्षित वर्ग के 1852 पदों में से 1458 भरे गए, वहीं बीसी-ए वर्ग में 345 में से केवल 125, बीसी-बी में 177 में से 69, अनुसूचित जाति में 674 में से 324 और ईडब्ल्यूएस में 334 में से सिर्फ 164 अभ्यर्थी ही चयनित हो सके। यह साफ़ दर्शाता है कि 35 प्रतिशत की अनिवार्यता सामाजिक प्रतिनिधित्व की भावना को कमजोर कर रही है।

जब पीएचडी, यूजीसी-नेट और वर्षों का अध्यापन अनुभव रखने वाले अभ्यर्थी बड़ी संख्या में असफल घोषित किए जा रहे हों, तब यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि परीक्षा वास्तव में योग्यता परख रही है या फिर नीति खुद अव्यावहारिक बन चुकी है। गुणवत्ता के नाम पर यदि कक्षाएँ खाली रह जाएँ और छात्रों को शिक्षक ही न मिलें, तो ऐसी चयन प्रक्रिया पर पुनर्विचार ज़रूरी हो जाता है। अभी हाल ही में हरियाणा सरकार ने एसीएस पदों की चयन प्रक्रिया में दिव्यांग उम्मीदवारों के लिए 45 प्रतिशत कट ऑफ क्राइटेरिया को हटाकर 35 प्रतिशत कर दिया है। 

हरियाणा लोक सेवा आयोग की "नॉट फाउंड सूटेबल" नीति को लेकर को लेकर अभ्यर्थियों ने पंचकूला में अनिश्चितकाल का धरना शुरू कर दिया है। इसके साथ-साथ उन्होंने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का भी रुख किया है। इन अभ्यर्थियों की मांग है कि असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्तियों में 35 प्रतिशत का क्राइटेरिया खत्म किया जाए और कुल पदों के दोगुना अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए बुलाकर सभी पदों को भरा जाए। इसी प्रकार से आरक्षित वर्ग के मामलों में भी सभी पदों को भर जाए। आरक्षित पदों को खाली छोड़ना तो संवैधानिक नियमों का सरेआम उल्लंघन है।

हरियाणा सरकार को अब यह तय करना होगा कि प्रदेश सिर्फ राष्ट्रीय स्तर की परीक्षाओं में ही योग्य अधिकारी देने में सक्षम है या फिर शिक्षा और बौद्धिक नेतृत्व में भी अपनी पहचान मजबूत करना चाहता है। जो हरियाणा  देश को जवान, किसान और पहलवान देता है, वही अगर शिक्षकों के मामले में पीछे छूटने लगे, तो यह केवल प्रशासनिक विफलता नहीं, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के साथ अन्याय होगा।
सतीश मेहरा