Suspension of MPs from Rajya Sabha

सांसदों का राज्यसभा से निलंबन

Editorial

Suspension of MPs from Rajya Sabha

विपक्ष और केंद्र सरकार के बीच रस्साकशी का दौर कभी खत्म नहीं होगा। कृषि कानूनों को संसद में वापस लिए जाने के दौरान विपक्ष ने बहस की मांग की थी, लेकिन सरकार ने इसे गैर जरूरी बताया। खैर, कानून बनाते वक्त विपक्ष ने कहा था कि हमें विश्वास में नहीं लिया गया और अब इन्हें वापस लेते समय फिर विपक्ष को आपत्ति रही कि हमसे पूछ कर वापस क्यों नहीं लिया। शीतकालीन सत्र के पहले ही दिन एक और टकराव का मुद्दा यह कायम हुआ कि राज्यसभा के अगस्त में हुए मॉनसून सत्र के दौरान 'अशोभनीय आचरण' के लिए 12 सदस्यों को वर्तमान शीतकालीन सत्र की शेष अवधि के लिए निलंबित कर दिया गया। इसे उच्च सदन के इतिहास में ऐसी सबसे बड़ी कार्रवाई बताया गया है। दरअसल, उपसभापति हरिवंश की अनुमति से संसदीय कार्य मंत्री ने इस सिलसिले में एक प्रस्ताव रखा था, जिसे विपक्षी दलों के हंगामे के बीच सदन ने मंजूरी दे दी। हालांकि विपक्ष ने इस पर नाराजगी जाहिर करते हुए हंगामा खड़ा कर दिया है। इस कार्रवाई से सरकार के मंतव्य पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। हालात ऐसे हैं कि विपक्ष के सांसद उच्च सदन की गरिमा की अनदेखी कर खुद को उचित ठहरा रहे हैं, लेकिन विपक्ष का कहना है कि ऐसी कार्रवाई करके सरकार लोकतंत्र का दमन कर रही है।

    अब इस मामले में उपराष्ट्रपति एवं राज्य सभापति वेंकैया नायडू ने भी दस्तक दे दी है। उन्होंने साफ कहा है कि 12 विपक्षी सांसदों का निलंबन वापस नहीं होगा। उनका यह कहना बेहद अहम है कि सांसद अपने किए पर पश्चाताप करने की बजाय, उसे न्यायोचित ठहराने पर तुले हैं। ऐसे में उनका निलंबन वापस लेने का सवाल ही नहीं उठता है। मालूम हो, अगस्त में सत्र के दौरान आरोप है कि इन सांसदों ने किसान आंदोलन एवं अन्य मुद्दों के बहाने सदन में जमकर हो-हंगामा किया था और खूब अफरा-तफरी मचाई थी। उस समय यह व्यापक चर्चा का विषय बना था। हालांकि उसी समय यह तय हो गया था कि राज्यसभा में इन सांसदों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। अब विपक्ष ने नियमों का हवाला देकर इस कार्रवाई को अनुचित बताया है।

      कांग्रेस के सांसद मल्लिकार्जुन खडग़े ने कहा कि सांसदों के निलंबन का कोई आधार नहीं है, इसलिए उनके निलंबन का फैसला वापस लिया जाना चाहिए। खडग़े ने सभी 12 विपक्षी सांसदों को सदन की कार्यवाही में भाग लेने की अनुमति सभापति से मांगी। फिर सभापति ने विपक्ष से कहा कि निलंबन की कार्रवाई उनकी नहीं, बल्कि सदन की थी। संसदीय नियम की धारा 256 की उपधारा 2 का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि 256(2) कहता है कि सदन में किसी सदस्य या कई सदस्यों के अमर्यादित आचरण पर सभापति ऐसे सदस्य या सदस्यों का नाम लेकर सदन के सामने प्रश्न रखे कि क्या इन सदस्यों पर कार्रवाई का प्रस्ताव लाया जा सकता है, इस तरह, किसी भी राज्यसभा सदस्य के निलंबन के दो ही मानदंड हैं, पहला- निलंबन से पहले सभापति ऐसे सदस्यों का नाम लें, उसके बाद ही निलंबन प्रस्ताव लाया जा सकता है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह प्रक्रिया उसी तारीख तक प्रासंगिक होगी जिस दिन सदस्यों का अमर्यादित व्यवहार सामने आया। लेकिन, कल संसदीय कार्य मंत्री ने जो निलंबन प्रस्ताव लाया था, उसका संदर्भ पिछले सत्र से है। इस मामले में उस दिन सभापति ने किसी भी सदस्य का नाम नहीं लिया था। ऐसे में घटना के महीनों बाद निलंबन प्रस्ताव लाना संसदीय नियम के खिलाफ है।

    हालांकि इसके जवाब में सभापति वेंकैया नायडू ने कहा कि राज्यसभा अनवरत चलने वाला सदन है। इसका कार्यकाल कभी खत्म नहीं होता है। उन्होंने दलील दी कि राज्यसभा के सभापति को संसदीय कानून की धाराओं 256, 259, 266 समेत अन्य धाराओं के तहत अधिकार मिला है कि वो कार्रवाई कर सकता है और सदन भी कार्रवाई कर सकती है। उनके अनुसार कार्रवाई को अलोकतांत्रिक बताना गलत है, बल्कि यह लोकतंत्र की रक्षा के लिए जरूरी है। सभापति ने कहा कि उन्होंने लीक से हटकर कोई फैसला नहीं लिया है। नियमों और पूर्व के उदाहरणों के आलोक में ही कार्रवाई की गई है। नायडू ने कहा कि 10 अगस्त को इन सदस्यों ने सदन की मर्यादा भंग की। आपने सदन को गुमराह करने की कोशिश की, आपने अफरा-तफरी मचाई, आपने सदन में हो-हंगामा किया, आसन पर कागज फेंका, कुछ तो टेबल पर चढ़ गए और मुझे ही पाठ पढ़ा रहे हैं। यह सही तरीका नहीं है। 


    वास्तव में यह विचार का विषय है कि आखिर सड़क से संसद तक इतनी कटुता सरकार और विपक्ष के बीच क्यों है। कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के दौरान जैसा बवंडर मचते देश ने देखा है, वैसा ही अगर संसद के अंदर भी मचेगा तो यह संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा को नोचना ही होगा। विपक्ष लोकतंत्र के नाम पर अपनी हर हरकत को जायज ठहराता है, वहीं सरकार खुद को मिले संवैधानिक दायित्व का हवाला देती है। तब किसे सही और किसे गलत ठहराया जाए। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि सरकार और सांसद अपने पद की गरिमा के मुताबिक चलें। राज्यसभा को तो प्रबुद्ध लोगों का सदन कहा जाता है, फिर वहां भी ऐसा कैसे हो सकता है कि सदन की गरिमा को नष्ट कर दिया जाए। जाहिर है सरकार को विपक्ष को विश्वास में लेना होगा वहीं विपक्ष को भी अनियंत्रित रवैया न रखकर तय नियमों का पालन करना होगा।