जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे के पीछे 3 रहस्यमयी थ्योरीज़!

jagdeep dhankhar: उपाध्यक्ष जगदीप धनखड़ ने महज 12 दिन पहले जेएनयू में एक कार्यक्रम में कहा था, "मैं सही समय पर, अगस्त 2027 में, ईश्वरीय कृपा से, सेवानिवृत्त हो जाऊँगा।" सोमवार को, एक आश्चर्यजनक कदम उठाते हुए, 74 वर्षीय धनखड़ ने स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया। हालाँकि, इस कारण पर बहुत कम लोगों ने सहमति जताई। यहां तक कि विपक्ष में उनके सबसे कठोर आलोचक, जिनके साथ धनखड़ का अपने कार्यकाल के दौरान कई बार टकराव हुआ था और यहां तक कि उन पर महाभियोग चलाने का भी प्रयास किया गया था, ने कहा कि इसमें जो दिख रहा है, उससे कहीं अधिक है।
स्वास्थ्य नहीं, 'राजनीतिक बीमारी' की आहट!
धनखड़ ने अपने इस्तीफे में स्वास्थ्य को कारण बताया। इन्हें मार्च में AIIMS में कार्डियक अटैक आया था और जून में कुमाऊं विश्वविद्यालय में उन्हें बेहोशी भी हुई थी। हालांकि, इस्तीफे की घोषणा मानसून सत्र के पहले दिन की गई। इस अचानक कदम ने कई सवाल पैदा किए। कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने इसे "राजनीतिक बीमारी से अधिक, असामान्य" बताया और कहा है कि जोश में लिए गए नोटिस (संसद में) में अचानक बदलाव राजनीतिक तंत्र में किसी गहरे अंतर को दर्शाता हैधनखड़ ने भी 12 दिन पहले कहा था कि वे अगस्त 2027 तक कार्यदल के लिए तैयार हैं। लेकिन अचानक इस्तीफा दे डाला, जिससे ये विचार जन्म लिया कि यह स्वास्थ्य के कहर से नहीं, बल्कि राजनीतिक असहमति या दबाव का परिणाम हो सकता है।
न्यायपालिका पर विद्रोह: 'Varma–Judiciary नोटिस' ने बढ़ाई टेंशन
मनसून सत्र के पहले दिन, सांसदों ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की मांग की थी, और धन्हखड़ ने इसे संसदीय प्रक्रिया में स्वीकार किया। ऐसी अफ़वाहें हैं कि इस कदम से केंद्र में असंतोष फैला क्योंकि सरकार इस प्रक्रिया को लोकसभा तक सीमित रखना चाहती थी। सूत्रों की मानें, यह कदम केंद्र की रणनीति के खिलाफ था, जिसके बाद भाजपा के कुछ मंत्री, जैसे जेपी नड्डा और किरेन रिजिजू, बीएसी मीटिंग से अनुपस्थित रहे, जिससे माना जा रहा है कि उनके इस्तीफे पर दबाव बनाया गया। इससे एक तीसरी थ्योरी सामने आती है: धनखड़ ने इस्तीफ़े से खुद को संभवतः एक संभावित अविश्वास प्रस्ताव से बचाया।
बिहार चुनाव रणनीति में 'अगला खेमा'?
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार एक थ्योरी यह भी है कि भाजपा बिहार चुनाव से पहले नितीश कुमार जैसे जातीय नेता को उप राष्ट्रपति बनवाना चाहती है । इस तरह राज्यसभा की अध्यक्षता बिहार-मंडलीय गठबंधन को राष्ट्रीय मंच देने में मदद मिल सकती है। यह रणनीति उतनी असंभव भी नहीं है। भीड़-रली मैदान पर बिहार में भाजपा का अपना ग्राउंड गेम मजबूत नहीं है, और इस तरह के रणनीतिक सेटलमेंट से वोट बैंक पर सकारात्मक प्रभाव की उम्मीद की जाती है।
जगदीप धनखड़ का इस्तीफा न सिर्फ एक शारीरिक कदम था, बल्कि इसमें कई राजनीतिक सरगर्मियां–दबाव, रणनीति और संभावित गठबंधन की गुप्त बंदिशें भी जुड़ी हुई दिखाई देती हैं। जबकि स्वास्थ्य कारण वाजिब लगते हैं, लेकिन इन तीन थ्योरीज़ से यह स्पष्ट हुआ है कि इस घटनाक्रम के पीछे सिर्फ बीमारी नहीं, बल्कि खेल भी बहुत बड़ा चल रहा है।