Why the voices of objection on the inauguration of the new parliament building

Editorial: नये संसद भवन के उद्घाटन पर ऐतराज के स्वर क्यों

Edit

Why the objection to the inauguration of the new Parliament House

Why the voices of objection on the inauguration of the new parliament building यह राजनीतिक विरोध की पराकाष्ठा है कि सत्ताधारी भाजपा की ओर से देश की भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखकर जब नए संसद भवन का निर्माण कराया गया है तो कांग्रेस समेत 19 के करीब विपक्षी दलों ने इसके उद्घाटन समारोह के बहिष्कार का ऐलान कर दिया है। क्या विपक्ष का यह कदम लोकतंत्र एवं देश की भावना के अनुरूप है।

विपक्ष में कुछ दलों की ओर से तो भाजपा की केंद्र में सरकार को स्वीकार्यता तक नहीं है। यह सच्चाई है। बार-बार यह कहा जाता है कि मौजूदा सरकार ने देश का बेड़ागर्क कर दिया है और पुरानी सरकारों के वक्त देश तरक्की कर रहा था। हालांकि उस समय भी देश की जनता ने ही उन दलों की सरकारें बनवाई थी और अब भाजपा को भी उसी जनता ने देशसेवा करने का अवसर प्रदान किया है, तब उसके फैसलों, नीतियों और कार्यक्रमों का इस कदर विरोध क्यों हो रहा है?

नई संसद की जरूरत पर भी कांग्रेस समेत दूसरे दलों ने सवाल उठाए थे, हालांकि विभिन्न तकनीकी रिपोर्ट के हवाले से यह सामने आ चुका है कि पुरानी संसद का ढांचा अब सुरक्षित नहीं रह गया है वहीं देश की बढ़ती आबादी के मुताबिक नए लोकसभा क्षेत्र भी बनने हैं, इन बढ़ी हुई सीटों पर चयनित होकर आए सांसदों को पुरानी संसद में नियोजित करना मुश्किल कार्य होगा। तब नए संसद भवन का बनना जरूरी है।

 कांग्रेस ने नए संसद भवन के बनने पर खर्च होने वाली राशि को भी बर्बादी बताया था, हालांकि बहुत कम समय में केंद्र सरकार एवं स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की देखरेख में इस भव्य एवं भारत की संस्कृति और उसके प्रभाव को परिलक्षित करते भवन का निर्माण पूरा हो चुका है। अब सवाल इसके उद्घाटन को लेकर कायम हो गया है। लोकसभा अध्यक्ष ने उद्घाटन के लिए जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया है वहीं इसका उद्घाटन भी 28 मई को होने जा रहा है। अब केंद्र सरकार की ओर से कहा गया है कि संसद का आगामी सत्र नए संसद भवन में ही आहूत किया जाएगा।

निश्चित रूप से यह सब प्रशंसनीय है, हालांकि यह सवाल सभी के मन में है, कि आखिर राष्ट्रपति को इस अवसर के अनुकूल क्यों नहीं समझा गया। इसका नींव पत्थर भी तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने नहीं अपितु स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने रखा था। अब विपक्ष इस पर हल्ला मचा रहा है। क्या इसे विपक्ष की ओर से इस मामले का राजनीतिकरण करना नहीं कहा जाना चाहिए। आखिर विपक्ष देश के प्रधानमंत्री के हाथों नए संसद भवन का उद्घाटन क्यों नहीं चाहता है। क्या वह कार्यपालिका के प्रमुख नहीं हैं और अगर लोकसभा अध्यक्ष स्वयं प्रधानमंत्री से इसका आग्रह कर रहे हैं तो फिर क्यों सवाल उठाए जा रहे हंै। कांग्रेस का कहना है कि नए भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति को करना चाहिए था, पार्टी ने इसे राष्ट्रपति का अपमान बताया है।

हालांकि यह भी सच है कि कांग्रेस ने मौजूदा राष्ट्रपति का बहुत अपमान किया है, उसके लोकसभा में विपक्ष के नेता की ओर से राष्ट्रपति के संबंध में बेहद अनुचित टिप्पणी की गई थी, ऐसा इसलिए भी हुआ क्योंकि भाजपा और उसके सहयोगी दलों की ओर से नामित उम्मीदवार ने कांग्रेस एवं विपक्ष के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को हरा दिया। यानी   राष्ट्रपति के चुनाव में भी कांग्रेस अपनी हार की भड़ास को नियंत्रित नहीं रख पाई थी। उसका कहना है कि तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से भवन का शिलान्यास न करा कर दलितों का अपमान किया गया और अब मौजूदा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों उद्घाटन न करवा कर आदिवासी समाज को अपमानित किया जा रहा है।  \

कांग्रेस एवं अन्य दलों की ओर से इस पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं कि 28 मई को जब स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर की जयंती है तो मोदी सरकार इस दिन नये संसद भवन का उद्घाटन जानबूझ कर कर रही है। बेशक, यह संयोग हो सकता है। हालांकि अगर ऐसा हो भी रहा है तो फिर विपक्ष वीर सावरकर के नाम पर इतना क्यों बिगड़ रहा है। वीर सावरकर का आजादी की लड़ाई में अमर योगदान है। हमें हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति सम्माननीय होना चाहिए। वैसे, निश्चित रूप से नए संसद भवन का उद्घाटन सामान्य परिस्थितियों में होना चाहिए लेकिन मौजूदा हालात ऐसे हो गए हैं कि केंद्र सरकार के हर कदम का विरोध हो रहा है। आज पूरे देश एवं विश्व में भारत की तस्वीर बदल चुकी है और नये भारत के लिए संसद भवन भी नया होना चाहिए।

विपक्ष को विरोध करना चाहिए लेकिन यह तथ्यपूर्ण होना चाहिए, भ्रामक नहींं। राष्ट्रपति के द्वारा ही संसद भवन का उद्घाटन होना चाहिए यह तथ्यपूर्ण नहीं है, अगर राष्ट्रपति उद्घाटन करती तो भी यह श्रेष्ठ होता, लेकिन अगर ऐसा नहीं हो रहा है और प्रधानमंत्री उद्घाटन कर रहे हैं तो भी यह गलत नहीं है। देश में लोकतंत्र सबसे बढ़कर है  और प्रधानमंत्री उसी लोकतंत्र के सर्वोच्च नेतृत्वकर्ता हैं, उनकी मौजूदगी को राजनीतिक नजर से तभी देखा जाना चाहिए जब वे किसी राजनीतिक कार्यक्रम में हों। निश्चित रूप से यह देश की संसद का मामला है, किसी दल विशेष के कार्यक्रम का नहीं। प्रधानमंत्री देश के नेता होते हैं, सत्ताधारी दल विशेष के नहीं।   

यह भी पढ़ें:

Editorial: 2 हजार का नोट बंद होने से किसे नुकसान, किसे फायदा

यह भी पढ़ें:

Editorial: न्याय प्रणाली में जारी रहना चाहिए सुधारों का दौर