village development will be done by panchayat elections

पंचायत चुनाव से होगा ग्राम विकास

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village development will be done by panchayat elections

village development will be done by panchayat elections : हरियाणा में आजकल चुनाव का मौसम छाया हुआ है। आदमपुर विधानसभा हलके के उपचुनाव की घोषणा हो चुकी है, वहीं अब राज्य निर्वाचन आयुक्त ने पंचायत चुनावों की भी घोषणा कर दी है। प्रदेश की जनता जहां इस बार त्योहार मनाने में व्यस्त रहेगी वहीं चुनावों का गुणा-जोड़-भाग भी चलता रहेगा। पंचायतों को लोकतंत्र की इकाई समझा जाता है और ग्रामीण विकास के लिए यह आवश्यक है कि यहां जनप्रतिनिधि निर्वाचित हों। हालांकि प्रदेश में 21 महीने बाद अब पंचायत चुनाव कराए जा रहे हैं, इतने लंबे समय तक पंचायतें अपने प्रतिनिधियों से वंचित रही। बावजूद इसके पूरे राज्य में एक साथ पंचायत चुनाव नहीं हो रहे हैं, पहले फेज में 10 जिलों के अंदर जिला परिषद और पंचायत समितियों के सदस्यों तथा पंच-सरपंचों के चुनाव कराए जाएंगे। आदमपुर उपचुनाव 3 नवंबर को होने जा रहा है। लेकिन जिला परिषद और पंच-सरपंचों के चुनावों का परिणाम उपचुनाव से पहले घोषित नहीं किया जाएगा जिससे उपचुनावों पर पंचायत चुनावों का कोई असर नहीं पड़ेगा।

डेढ़ साल से अधिक समय से टलते आ रहे पंचायत चुनावों के चलते जहां ग्रामीण क्षेत्रों में रोष पनप रहा था, वहीं विकास कार्य भी प्रभावित हो रहे हैं। चूंकि जिला परिषद और पंचायत समिति के चुनाव में विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरेंगे, इसलिए राज्य चुनाव आयोग ने सभी 22 जिला परिषदों और 143 ब्लॉक समितियों के चुनाव के बाद ही एक साथ चुनाव परिणाम घोषित करने का ऐलान किया है। इससे विभिन्न चरणों में चुनाव होने के बावजूद दूसरे क्षेत्रों में हार-जीत का असर नहीं पड़ेगा। ऐसे में किसी राजनीतिक दल को विभिन्न चरणों में पंचायत चुनाव होने के कारण मतदाताओं के प्रभावित होने की शिकायत नहीं रहेगी। वहीं, पंचायत चुनाव में उम्मीदवार खुलकर खर्च कर सकेंगे। वर्ष 2016 के चुनाव के मुकाबले इस बार चुनावी खर्च की राशि में चार से पांच गुणा बढ़ोतरी की गई है। पंच-सरपंच से लेकर जिला परिषद व ब्लॉक समिति सदस्य की खर्च राशि को बढ़ाया गया है। पंच पद का उम्मीदवार चुनावी प्रचार पर 10 हजार रुपये की बजाय 50 हजार रुपये खर्च कर सकेगा। सरपंच पद के लिए चुनावी खर्च सीमा में चार गुणा बढ़ोतरी की गई है। पिछली बार सरपंच पद की चुनावी खर्च सीमा 50 हजार रुपये निर्धारित थी जिसे बढ़ाकर दो लाख रुपये कर दिया गया है। ब्लॉक समिति सदस्य के चुनावी खर्च को एक लाख रुपये से बढ़ाकर तीन लाख 60 हजार रुपये तथा जिला परिषद सदस्य के लिए चुनाव खर्च की सीमा को दो लाख रुपये से बढ़ाकर छह लाख रुपये किया गया है। अब उम्मीदवारों को अपने चुनावी खर्च का ब्योरा 30 दिन के अंदर जिला चुनाव आयुक्त कार्यालय में प्रस्तुत करना होगा। यदि कोई उम्मीदवार निर्धारित अवधि के भीतर अपने चुनावी खर्च का ब्योरा नहीं देता है तो उसे डिफाल्टर घोषित करते हुए तीन साल के लिए चुनाव लडऩे के लिए अयोग्य घोषित किया जा सकता है।

गौरतलब है कि राज्य चुनाव आयोग ने पंचायत चुनाव में उम्मीदवारों की जमानत राशि में भी बढ़ोतरी की है। पंच से लेकर सरपंच व जिला परिषद सदस्यों को नामांकन के दौरान इस बार पिछले चुनाव की तुलना में चार गुणा जमानत राशि जमा करानी होगी। इस बार पंच पद के सामान्य वर्ग के उम्मीदवार को 250 रुपये जमा करने होंगे, जबकि महिला, अनुसूचित वर्ग और पिछड़ा वर्ग को 125 रुपये जमानत राशि के रूप में देने होंगे। पिछले चुनाव में यह राशि सामान्य वर्ग के लिए 100 रुपये और आरक्षित श्रेणी के लिए 40 रुपये राशि थी। इसके साथ ही सरपंच पद के सामान्य वर्ग के उम्मीदवार को 200 रुपये की जगह 500 रुपये और आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों के 100 रुपये की जगह 250 रुपये जमा कराने होंगे। पंचायत समिति सदस्य के लिए सामान्य वर्ग को 300 रुपये के बदले 750 रुपये और आरक्षित वर्ग को 150 रुपये की जगह 375 रुपये की जमानत देनी होगी। जिला परिषद सदस्य के लिए सामान्य वर्ग की जमानत राशि 400 रुपये से बढ़ाकर एक हजार रुपये और आरक्षित वर्ग के लिए 200 रुपये से बढ़ाकर 500 रुपये की गई है।

पंचायतों से एक समय राजनीतिक दल खुद से दूर ही रखते थे। इसकी वजह ग्रामीण समाज की एकजुटता और भाईचारे का होना था। हालांकि विधानसभा और लोकसभा चुनावों के दौरान गांवों में भी खूब राजनीति होती थी। अब समय के साथ गांव भी राजनीति के केंद्र बन गए हैं। राजनीतिक दलों की ओर से अपने सिंबल पर पंचायत चुनाव लडऩे की बात कही जाती रही है, लेकिन कांग्रेस ने बीते चुनाव में भी सिंबल पर लडऩे से इंकार किया था। इस बार फिर राजनीतिक दलों में इसको लेकर मंथन हो रहा है कि चुनाव पार्टी सिंबल पर लड़े जाएं या नहीं। बेशक, निर्वाचन का अभिप्राय अपनी राय के प्रदर्शन से हो जाता है, ऐसे में अगर कोई राजनीतिक दल जनता के बीच अपने प्रतिनिधियों को उतारता है तो इससे संबंधित राजनीतिक दल की जहां जिम्मेदारी बढ़ती है वहीं पंचायत, ब्लॉक समिति और जिला परिषद के चुनाव में पारदर्शिता आती है और मतदाता को भी इसका अंदाजा होता है कि किस पार्टी की नीतियों पर भरोसा करके उसने वोट दिया है। बेशक, परिणाम आने के बाद राजनीतिक दल इसका दावा करते हैं कि उनके समर्थित उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है।

पंचायत चुनावों में आरक्षण का मामला अभी विचाराधीन है। प्रदेश सरकार ने पंचायत चुनाव में पिछड़ा वर्ग ए को पहली बार आठ प्रतिशत और महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान किया है, जिसे पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। अब क्योंकि कोर्ट ने सरकार को नए प्रावधानों के तहत चुनाव कराने की अनुमति दे दी है, लेकिन चुनाव परिणामों पर अंतिम निर्णय अदालत के फैसले पर निर्भर करेगा। इससे पहले वर्ष 2016 में पंचायत चुनाव कराए गए थे। उस समय भी छह माह की देरी चुनावों में हुई थी। इस बार फरवरी 2021 में ही कार्यकाल पूरा होने पर पंचायतों को भंग कर खंड विकास एवं पंचायत अधिकारियों को कामकाज सौंप दिया गया था। उम्मीद की जानी चाहिए कि अब कोई नया व्यवधान पंचायत चुनावों में खड़ा नहीं होगा और ग्रामीण अपने प्रतिनिधि निर्वाचित कर सकेंगे। इससे ग्राम विकास और प्रभावी तरीके से सुनिश्चित होगा।