The opposition should come forward with concrete issues

Editorial:विपक्ष को ठोस मुद्दों के साथ आना चाहिए सामने, भाषण भी सार्थक

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The opposition should come forward with concrete issues

The opposition should come forward with concrete issues: लोकसभा में मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी का भाषण जहां संसद की स्थापित परंपराओं के विपरीत रहा वहीं उनकी शब्दावली पर भी आपत्ति जताई जानी चाहिए। राजनीति में विरोधियों पर जोरदार हमले खुद के वर्चस्व और अस्तित्व के लिए आवश्यक होते हैं, लेकिन प्रश्न यह है कि राहुल गांधी की शब्दावली में ऐसे शब्द और वाक्य होते हैं, जोकि उनके भाषण को कहीं गंभीर नहीं रहने देते। अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान वे जिस प्रकार प्रेस के सवालों के टुकड़े-टुकड़े करके जवाब देते थे, उसी शैली में उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव के दौरान अपनी बात रखी।

इस दौरान फ्लाइंग किस देने की घटना ने भी जहां उन्हें एक बार फिर विवादित किया वहीं सदन में ऐसे अनावश्यक और गरिमा हीन आचरण का प्रदर्शन करके उन्होंने कांग्रेस एवं विपक्ष की एकता की सच्चाई को उजागर कर दिया। संसद वह जगह है, जहां पर श्रेष्ठ संसदीय परंपराओं का निर्वाह होना जरूरी है, इसमें शब्दों और व्यवहार की गंभीरता भी समाहित है।
 

पूर्वोत्तर आजादी के बाद से ही विभिन्न मसलों को लेकर ज्वलंत रहा है। लेकिन आजादी के बाद लगभग 60 साल तक कांग्रेस की ही केंद्र एवं राज्यों में सरकारें रही हैं, हालांकि इस दौरान पूर्वोत्तर की समस्याओं के निराकरण के लिए समुचित और ईमानदारी भरे प्रयास नहीं किए गए। संभव है, ऐसा होता तो स्थिति यह नहीं होती। राहुल गांधी ने मणिपुर हिंसा को लेकर संसद में कहा कि मणिपुर में भारत माता की हत्या की गई है, और उन्होंने इसका आरोप मोदी सरकार पर लगाया। राहुल गांधी ने क्या अपने शब्दों को जांचा-परखा है?  क्या वे जानते हैं कि भारत माता की हत्या का क्या मतलब है। यह किसी फिल्मी डायलॉग जैसा है, वह भी किसी थर्ड क्लास फिल्म का। भारत माता की सुरक्षा के लिए लाखों जवान आज सीमाओं पर तैनात हैं और इसी भारत माता की रक्षा के लिए देश का एक-एक नागरिक शहीद होने को तैयार है, मणिपुर में आतंकियों की साजिश से जैसे हालात बने हैं, उनके मद्देनजर ऐसे वाक्य का प्रयोग बेहद निंदनीय और अस्वीकार्य है।

उन्होंने मोदी सरकार के प्रति कहा कि ये देशभक्त नहीं, देशद्रोही हैं,भारत माता के रखवाले नहीं, हत्यारे हैं। आखिर राहुल गांधी किस आधार पर ऐसे आरोप लगा रहे हैं। आज चीन अगर भारत के कंधे पर सवार होकर उसे घुडक़ी दे रहा है तो इसकी पृष्ठभूमि कांग्रेस सरकारों के वक्त ही तैयार की गई थी। पाकिस्तान के साथ सीमा विवाद भी उसी समय की जननी है। पाक अधिकृत कश्मीर भी कांग्रेस सरकार के अनिर्णय की वजह से आज उस तरफ है। राहुल गांधी के बयानों को पाक जैसे देश संयुक्त राष्ट्र में इस्तेमाल करते हैं, वे कभी भी सकारात्मक होकर मोदी सरकार की आलोचना नहीं करते।

मणिपुर में जो रहा है, वह पूरे देश के लिए चिंता की बात है। राज्य में शांति स्थापित करने की केंद्र एवं राज्य सरकार की कोशिशें विफल रही हैं, लेकिन क्या यह वास्तव में चुटकी बजाने जैसा काम है कि तुरंत इस पर रोक लग जाती। खुद राहुल गांधी ने भी मणिपुर का दौरा किया है, उन्होंने शांति की अपील की है। अगर मैती और कुकी लोग मोदी या राज्य सरकार से प्रभावित नहीं हैं तो वे राहुल गांधी और कांग्रेस से प्रभावित होकर हिंसा का रास्ता छोड़ दें। इस बीच विपक्ष के इंडिया गठबंधन के सांसदों ने भी मणिपुर के हिंसा प्रभावित इलाकों का दौरा किया है, लेकिन वे भी यहां शांति स्थापित करवा पाने में विफल रहे हैं। अब राहुल गांधी संसद में कह रहे हैं कि भारतीय सेना वहां शांति स्थापित करने में सक्षम है लेकिन केंद्र सरकार ऐसा नहीं होने देना चाहती। वास्तव में ऐसा आरोप बेहद सामान्य है, विपक्ष के लिए हर चीज बहुत आसान होती है। लेकिन जो सरकार में बैठा होता है, उसे मालूम होता है कि यह सब कितना मुश्किल है।

कांग्रेस के शासनकाल में ही आसाम बरसों तक जलता रहा था, तब क्यों नहीं सेना के द्वारा कांग्रेस सरकार ने इस हिंसा को तुरंत बंद करवा दिया था। कश्मीर घाटी भी तो आजादी के बाद से जल रही थी, वहां सेना भी तैनात थी और अर्धसैनिक बल भी। लेकिन कांग्रेस सरकारों के समय वहां शांति स्थापित नहीं हो सकी। वास्तव में इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति चाहिए, जोकि महज बयानों से साबित नहीं हो सकती। बेशक, मोदी सरकार को मणिपुर के हालात सुधारने की हरसंभव चेष्टा करनी चाहिए लेकिन विपक्ष को इसे राजनीतिक मुद्दा बनाकर अविश्वास प्रस्ताव की आड़ में अपनी एकजुटता का ट्रायल नहीं करना चाहिए। अविश्वास प्रस्ताव पर अनुचित बहस के बजाय दूसरे अहम मसलों पर चर्चा होनी चाहिए थी, चाहिए थी, लेकिन देश आजकल मंत्रियों के बचावकारी भाषण सुन रहा है वहीं विपक्ष के नेता अपनी भड़ास निकालने में लगे हैं। उनके बयान इसकी पुष्टि करते हैं, विपक्ष को ठोस मुद्दों को लेकर सामने आना चाहिए। 

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