santaan ko bhugatana padata hai

संतान को भुगतना पड़ता है माता-पिता के गलत कामों का फल, देखें क्या है कारण 

Mata-Pita

santaan ko bhugatana padata hai

सुनीथा (Sunitha) मृत्यु-देवता यमराज की पुत्री थी। माता-पिता (Mata-pita) के लाड़-प्यार में वह उद्दंड हो गई थी। वह देखती थी कि उसके पिता पापियों को दंड देते रहते थे। वह पाप और पुण्य का अंतर नहीं समझती थी, इसलिए खेल-खेल में किसी के अच्छे कार्य में बाधा डालती और किसी को अकारण मारने लगती। ऐसे उद्दंडतापूर्ण कार्य करके वह बहुत खुश होती थी। एक दिन सुनीथा एक गंधर्व कुमार को, जो अपनी आराधना में योगमुद्रा में बैठा था, अकारण कोड़े से मारने लगी। गंधर्व कुमार पीड़ा से छटपटाता तो वह खुशी से उछल पड़ती। वह उसे खेल समझती। इस प्रकार की अपनी करतूतें वह अपने पिता को बताती।

पिता उसकी इस उद्दंडता को बाल-सुलभ खेल समझकर चुप रह जाते। न तो सुनीथा को ऐसा करने से रोकते, न समझाते। बहुत दिनों तक ऐसा चलता रहा। एक दिन फिर उस गंधर्व कुमार को, जब वह पूजा-पाठ कर रहा था, सुनीथा ने मारना शुरू कर दिया। जब असहनीय हो गया तो उसने क्रोध से शाप दे दिया, ‘‘तू धर्मराज की बेटी है। तेरा विवाह एक ऋषि पुत्र से होगा। तेरी एक योग्य संतान भी होगी, पर तेरे इन दुष्ट कर्मों का अंश उसमें व्याप्त रहेगा।’

सुनीथा ने यह बात भी अपने पिता को बताई। अब धर्मराज को लगा कि उन्होंने बड़ी भूल कर दी। संतान की आदत और स्वभाव पर ध्यान न देकर उसे भले-बुरे का ज्ञान नहीं दिया। फलस्वरूप उसे शाप मिला, पर अब तो समय हाथ से निकल चुका था। बोले, ‘‘बेटी! निर्दोष तपस्वी को पीट कर तुमने अच्छा काम नहीं किया। बुरे कर्मों को करने के कारण तुम्हें यह शाप मिला है। अब भी संभल जाओ और अच्छे काम की ओर मन लगाओ।’’
 

समय बीतता गया। कन्या बड़ी हुई तो उसके विवाह की चिंता हुई। उसके शाप को जानकर कोई उससे विवाह करने को तैयार नहीं होता था। कौन उससे पैदा होने वाले पापी पुत्र का पिता बनता। जब कोई उपाय न रहा तो रम्भा अप्सरा ने उसे मोहिनी विद्या सिखा दी। अप्सराएं तो इस कार्य में सिद्ध होती थीं। अब उसे किसी को भी मोहित करने की विद्या सिद्ध हो गई।
 

एक दिन रम्भा उसे अपने साथ लेकर वर की खोज में निकली। एक नदी के तट पर उसने अत्रिकुमार अंग को देखा। सुनीथा अंग को देखते ही उस पर मोहित हो गई। रम्भा की माया तथा अपनी मोहिनी विद्या के बल पर उसने अंग को भी मोहित कर लिया। दोनों को एक-दूसरे पर आसक्त जानकर रम्भा ने दोनों का गंधर्व विवाह करवा दिया। दोनों सुखपूर्वक रहने लगे। कुछ दिनों बाद उनके पुत्र हुआ जिनका नाम वेन रखा गया। वेन अत्रि वंश के अनुरूप ही अपने पिता अंग के समान धार्मिक, सदाचारी तथा रजोचित्त गुणों से सम्पन्न था। आचार-विचार और व्यवहार में सब उसकी बड़ी प्रशंसा करते। अच्छे कुल में उत्पन्न होने के सभी लक्षण उसमें दिखते थे, पर मां के एक दुर्गुण के कारण जिसके कारण वह शापित हुई थी, धीरे-धीरे वेन में भी वे दुर्गुण प्रकट होने लगे। कुछ नास्तिकों तथा दुष्टों की संगति में वह नास्तिक भी हो गया। ईश्वर, वेद, पुराण, शास्त्र आदि उसे झूठ लगने लगे। यज्ञ, संध्या आदि को वह पाखंड समझने लगा।
 

वह वयस्क हो चुका था। अपने माता-पिता का कहना अब वह नहीं मानता था। राजकाज में उसका हस्तक्षेप इतना बढ़ गया कि पिता अंग असहाय हो गए। राजा तो अंग थे, पर आज्ञा वेन की चलती थी। सुनीथा समझ रही थी कि उसके संस्कारों का परिणाम शापग्रस्त इस पुत्र में उतर आया है। 
 

उसके हठ तथा उद्दंडता पर किसी का वश नहीं था, सब विवश थे। वेन के इन कर्मों से प्रजा दुखी रहने लगी। महाराज अंग को अपयश मिलने लगा। जब सब प्रकार से वेन को समझाकर हार गए तो अपयश से बचने के लिए एक दिन निराश होकर अंग ने चुपके से घर ही त्याग दिया।
 

राजा के बिना अराजकता और बढ़ी। ऋषियों ने अंग पुत्र वेन को राजा बनाया और समझाया, ‘‘तुम्हारे दुष्कर्मों से दुखी होकर तुम्हारे पिता ने राज्य त्याग दिया। अब तुम अपना राजकीय उत्तरदायित्व समझो और सत्कार्य कर प्रजा को सुख दो।’’ पर वेन राजा बनकर तो और प्रमत्त तथा अहंकारी हो गया। बोला, ‘‘आप लोग मुझे ज्ञान मत दीजिए। मैं स्वयं बड़ा ज्ञानी हूं। ईश्वर, धर्म, शास्त्र आदि सब मेरे आदेश से स्थापित होंगे। मेरी ही आज्ञा धर्म होगा, शास्त्र वचन होगा। आप लोग अब मेरी आज्ञा के अनुसार चलिए और मुझमें ही ईश्वर, धर्म तथा शास्त्र की छाया देखिए।’’
 

ऐसे विचारों वाले वेन के कार्यों से देश में अराजकता बढ़ी, सारे धार्मिक तथा सत्कार्य बंद हो गए। प्रजा की सुरक्षा नहीं रह गई। दुष्ट लोगों का बोलबाला हो गया, धार्मिक कार्य बंद हो गए। हर चीज का अंत होता है। 
 

पाप का घड़ा जब भर गया तो ऋषियों-मुनियों तथा प्रजा-जनों ने विद्रोह कर दिया। वेन को पकड़ लिया और उसे प्रताडि़त कर राजा के पद से हटा दिया। सत्ता छिन जाने से वह असहाय हो गया। अब वह दूसरों की दया पर निर्भर रहने लगा। ऋषियों ने प्रजा से परामर्श कर उसके पुत्र पृथु को राजा के पद पर प्रतिष्ठित कर दिया। वेन जंगल में चला गया। 
 

निश्चय ही अच्छे कुल परिवार का व्यक्ति भी कुसंगति के कारण अपनी मर्यादा भूलकर कुमार्गी हो जाता है। अपने कुल-धर्म को भूलकर सबके दुख का कारण बनता है और अंत में अपने इसी आचरण के कारण वह स्वयं ही नष्ट हो जाता है, इसलिए कुसंगति तथा कुसंस्कारों से बचना चाहिए। 

 

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