संसद में उठा टैरिफ का मुद्दा: क्या अमेरिका ने भारत को धोखा दिया? केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल का जवाब

आज के मानसून सत्र में विपक्ष ने अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा भारत पर थोपे गए 25% टैरिफ के फैसले पर सवाल उठाए। विशेष रूप से प्रधान मन्त्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति और ट्रंप के व्यापारिक फैसलों को लेकर तीखी टिप्पणियाँ हुईं।
लोकसभा में पीयूष गोयल का बयान
वाणिज्य व उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने लोकसभा में कहा कि अमेरिका ने भारत पर 25% निर्यात शुल्क लगाते हुए इसे अगस्त 1, 2025 से लागू करने की घोषणा की। उन्होंने बताया कि अप्रैल 2, 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति ने प्रत्यक्ष टैरिफ का आदेश जारी किया, जिसके तहत 10% बेसलाइन चार्ज अप्रैल 5 से लागू हुआ और कुल मिलाकर 26% टैरिफ घोषणा की गई थी। गोयल ने लोकसभा को आश्वस्त किया कि केंद्र सरकार किसानों, कामगारों और उद्यमियों के हितों की रक्षा के लिए कटिबद्ध है और यह सुनिश्चित करेगी कि किसी भी बाहरी आर्थिक दबाव से भारत प्रभावित न हो।
इसके पीछे का परिप्रेक्ष्य
यह टैरिफ नई नहीं हैं, अप्रैल में घोषणा हुए थे लेकिन भारत ने वार्ता जारी रखी। अमेरिका ने सोवियत सप्लाई और रूस से तेल एवं रक्षा संबंध के आधार पर अतिरिक्त दंडात्मक शुल्क भी जोड़े हैं। गोयल ने यह भी कहा कि भारत राष्ट्र व्यापार समझौते, जैसे यूके के साथ FTA, राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दे रहा है और किसी भी सौदे पर तभी हस्ताक्षर करेगा जब उसमें दो-तरफा लाभ सिद्ध हो।
विपक्ष की प्रतिक्रिया और आर्थिक असर
विपक्ष ने केंद्र सरकार पर सरकार कहलाने पर विदेश नीति में ‘कूटनीतिक विफलता’ का आरोप लगाया। राहुल गांधी ने ट्रंप की ‘dead economy’ टिप्पणी का समर्थन करते हुए कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था कमजोर हो रही है। इसके बाद लोकसभा अबाधित नहीं रही। गोयल के बयान के बाद विपक्ष ने सदन के वेल पर कब्जा करने की कोशिश की, जिसके चलते आज का सत्र जल्दबाजी में समाप्त कर दिया गया।
आगे की राह क्या?
गोयल ने बताया कि सरकार “वास्तविक, निष्पक्ष और राष्ट्रीय हित आधारित व्यापार समझौते” के लिए वचनबद्ध है। यदि आवश्यक हो तो भारत विश्व व्यापार संगठन (WTO) में पलटवार भी कर सकता है। यह स्पष्ट है कि भारत इच्छुक है, लेकिन ‘समझौता जल्दबाजी में नहीं, देशहित में होनी चाहिए’ यही संदेश वाणिज्य मंत्री दे रहे हैं।आज का संसद सत्र विदेशी व्यापार नीति के संदर्भ में दर्शाता है कि कूटनीतिक निर्णयों में संतुलन बनाए रखना अब और ज़रूरी है। यदि भारत को नई वैश्विक चुनौतियों का सामना करना है, तो उसे मजबूत राष्ट्रीय एकता, स्पष्ट विदेश नीति और सावधानीपूर्ण समझौते करनी होंगे।