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शिवसेना पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई कल तक टली

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Supreme Court hearing on Shiv Sena adjourned till tomorrow


नई दिल्ली। महाराष्ट्र के सियासी संकट पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में बुधवार को उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे गुट की ओर से दाखिल 5 याचिकाओं पर दोनों पक्षों के वकीलों में गरमागरम बहस हुई। सुप्रीम कोर्ट ने शिंदे पक्ष के वकील से कहा- हमने 10 दिन के लिए सुनवाई टाली थी। आपने सरकार बना ली, स्पीकर बदल दिया।

इस पर शिंदे गुट के वकील हरीश साल्वे ने कहा- उद्धव ठाकरे ने खुद ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। एक व्यक्ति या नेता पूरी पार्टी नहीं हो सकता है। सीजेआई एनवी रमना ने कहा- हम कल (गुरुवार को) इस केस को सुबह साढ़े दस बजे सुनेंगे।

विधायक या तो किसी पार्टी में विलय करें या नई पार्टी बनाएं : सिब्बल
सबसे पहले उद्धव कैंप के वकील कपिल सिब्बल ने अपनी बात रखी। उन्होंने कहा- अगर 2 तिहाई विधायक शिवसेना से अलग होना चाहते हैं, तो उन्हें किसी से विलय करना होगा या नई पार्टी बनानी होगी। वह नहीं कह सकते कि वह मूल पार्टी हैं। सीजेआई ने पूछा कि मतलब आप कह रहे हैं कि उन्हें BJP  में विलय करना चाहिए था या अलग पार्टी बनानी थी। सिब्बल बोले- कानूनन तो यही करना था।

उद्धव गुट के वकीलों की जिरह

सिब्बल बोले, जिस तरह से उन्होंने (शिंदे गुट) पार्टी की सदस्यता छोड़ दी है। वे मूल पार्टी होने का दावा नहीं कर सकते। 10वीं अनुसूची इसकी अनुमति नहीं देती है। पार्टी सिर्फ विधायकों का समूह नहीं होती है। इन लोगों को पार्टी की बैठक में बुलाया गया। वह नहीं आए। डिप्टी स्पीकर को चि_ी लिख दी। अपना व्हिप नियुक्त कर दिया। असल में उन्होंने पार्टी छोड़ी है। वह मूल पार्टी होने का दावा नहीं कर सकते। आज भी शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे हैं।

सिब्बल ने कहा जब संविधान में 10वीं अनुसूची (दल-बदल विरोधी प्रावधान) को जोड़ा गया, तो उसका कुछ उद्देश्य था। अगर इस तरह के दुरुपयोग को अनुमति दी गई तो विधायकों का बहुमत सरकार को गिरा कर गलत तरीके से सत्ता पाता रहेगा और पार्टी पर भी दावा करेगा। पार्टी की सदस्यता छोडऩे वाले विधायक अयोग्य हैं। चुनाव आयोग जाकर पार्टी पर दावा कैसे कर सकते हैं?

उद्धव कैंप के दूसरे वकील अभिषेक सिंघवी ने कहा इन लोगों को किसी पार्टी में विलय करना था। वह जानते हैं कि असली पार्टी नहीं हैं, लेकिन चुनाव आयोग से मान्यता पाने की कोशिश कर रहे हैं।

शिंदे गुट की दलीलें

शिंदे गुट के वकील हरीश साल्वे: जिस नेता को बहुमत का समर्थन न हो वह कैसे बना रह सकता है? जब पार्टी में अंदरूनी बंटवारा हो चुका हो तो दूसरे गुट की बैठक में न जाना अयोग्यता कैसे हो गया?

इस पर सीजेआई ने पूछा इस तरह से तो पार्टी का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। विधायक चुने जाने के बाद कोई कुछ भी कर सकेगा।

साल्वे ने जवाब दिया, हमारे यहां एक भ्रम है कि किसी नेता को ही पूरी पार्टी मान लिया जाता है। हम अभी भी पार्टी में हैं। हमने पार्टी नहीं छोड़ी है। हमने नेता के खिलाफ आवाज उठाई है।

सीजेआई ने फिर पूछा आप चुनाव आयोग क्यों गए हैं?
साल्वे, मुख्यमंत्री के इस्तीफे के बाद स्थिति में बदलाव हुआ है। अब क्चरूष्ट चुनाव आने वाला है। यह तय होना जरूरी है कि पार्टी का चुनाव चिह्न कौन इस्तेमाल करेगा।

सीजेआई, हमने 10 दिन के लिए सुनवाई टाली थी। इस बीच आपने सरकार बना ली। स्पीकर बदल गए। अब आप कह रहे हैं, सारी बातें निरर्थक हैं।
साल्वे, मैं ऐसा नहीं कह रहा कि इन बातों पर अब विचार ही नहीं होना चाहिए।

सीजेआई, साल्वे आप अपने बिंदुओं को ठीक से ड्राफ्ट कर हमें सौंपिए। हम कल 10 से 15 मिनट विचार करेंगे।

शिंदे कैंप के वकील नीरज किशन कौल: दूसरा पक्ष कोशिश कर रहा है कि चुनाव आयोग को पार्टी चुनाव चिह्न पर कार्रवाई न करने दी जाए। लेकिन, यह अनुच्छेद 324 के तहत चुनाव आयोग का संवैधानिक अधिकार है। सिंबल रूल्स में भी यही व्यवस्था है। उसे उसके काम से नहीं रोका जा सकता।