स्वामी प्रसाद मौर्या को कोर्ट से झटका, बेटी संघमित्रा की दूसरी शादी के मामले में जारी गैर जमानती वारंट निरस्त करने की मांग खारिज
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स्वामी प्रसाद मौर्या को कोर्ट से झटका, बेटी संघमित्रा की दूसरी शादी के मामले में जारी गैर जमानती वारंट निरस्त करने की मांग खारिज

Sanghamitra Maurya Case

Sanghamitra Maurya Case

लखनऊ। Sanghamitra Maurya Case: इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने बिना तलाक दिए कथित रूप से दूसरा विवाह करने और धोखा देने के आरोप के मुकदमे में भाजपा सांसद संघमित्रा मौर्या को राहत देने से इनकार कर दिया है। न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की पीठ ने यह आदेश पारित किया। 

संघमित्रा मौर्या बदायूं से भाजपा की सांसद हैं, इस चुनाव में भाजपा ने उनको प्रत्याशी नहीं बनाया गया है। निचली अदालत से उनके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया गया है। 

हाई कोर्ट ने कहा- नहीं हुई कोई त्रुटि

संघमित्रा मौर्या की याचिका पर कोर्ट ने कहा है कि इनको तलब करने का आदेश पारित कर निचली अदालत ने कोई त्रुटि नहीं की है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इसी मामले में 12 अप्रैल को भाजपा सांसद के पिता व पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्या की भी याचिका खारिज की जा चुकी है। 

कोर्ट ने परिवाद की कार्यवाही को निरस्त करने की मांग वाली संघमित्रा मौर्या की याचिका को खारिज कर कहा है कि निचली अदालत ने सभी तथ्यों को देखने के बाद आदेश पारित किया है।

यह है पूरा मामला

पत्रावली के अनुसार, सुशांत गोल्फ सिटी के रहने वाले वादी दीपक कुमार स्वर्णकार ने अदालत में संघमित्रा व स्वामी प्रसाद मौर्या समेत अन्य के खिलाफ परिवाद दाखिल किया है। 

जानलेवा हमला कराने का आरोप

वादी का आरोप है कि वह एवं संघमित्रा 2016 से लिव इन रिलेशन में रह रहे थे। कहा गया है कि संघमित्रा और उसके पिता स्वामी प्रसाद मौर्य ने वादी को बताया कि संघमित्रा का पहले विवाह से तलाक हो गया है, लिहाजा वादी ने तीन जनवरी 2019 को संघमित्रा से उसके घर पर विवाह कर लिया। इसके बाद में जब उसे संघमित्रा के तलाक न होने की बात का पता चला तो विवाह की बात उजागर न होने पाए, इसलिए उस पर जानलेवा हमला कराया गया।

हाईकोर्ट ने संघमित्रा की दलीलों को किया अस्वीकार

उक्त परिवाद को चुनौती देते हुए संघमित्रा की ओर से दलील दी गई कि परिवादी के आरोपों में काफी विरोधाभास है, जिन पर ध्यान देते हुए निचली अदालत ने याची को तलब किया है। यह भी कहा गया कि निचली अदालत ने अपने न्यायिक विवेक का प्रयोग नहीं किया है। हाई कोर्ट ने इन दलीलों को अस्वीकार करते हुए कहा कि ट्रायल कोर्ट से पारित तलबी आदेश में कोई कमी नहीं है।