Shaheed Sukhdev Jayanti 2023

Shaheed Sukhdev Jayanti 2023 : 24 वर्ष में खुद को सौंपा देश के हवाले, जानें शहीद सुखदेव जयंती पर उनके बलिदान से लेकर जीवन के बारे में 

Shaheed Sukhdev Jayanti 2023

Shaheed Sukhdev Jayanti 2023

Shaheed Sukhdev Jayanti 2023 : स्वतंत्रता के लिए कई लोगों ने अपने जीवन का त्याग किया। इन सभी में जो नाम सर्वाधिक विख्यात हैं वे हैं सुखदेव, भगत सिंह और राजगुरु। सभी को एक साथ 23 मार्च, 1931 को फांसी दी गई। सुखदेव और भगत सिंह में प्रगाढ़ दोस्ती थी और दोनों जीवन के अंतिम क्षणों तक साथ रहे। भगत सिंह की तरह बचपन से ही सुखदेव आजादी का सपना पाले हुए थे।  

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प्रारम्भिक जीवन एवं शिक्षा
सुखदेव का जन्म पंजाब के लायलपुर में 15 मई 1907 को हुआ था। उनका पूरा नाम सुखदेव थापर Sukhdev Thapar था। जन्म के तीन महीने पहले ही सुखदेव के पिता रामलाल थापर का देहांत हो गया था। इसलिए उनकी परवरिश उनके चाचा अचिन्तराम ने की थी। पांच वर्ष की उम्र में सुखदेव को पढ़ाई के लिए लायलपुर के ही धनपतमल आर्य हाई स्कूल में भर्ती कराया गया। यहां सातवीं कक्षा तक पढ़ने के बाद सुखदेव ने लायलपुर सनातनधर्म हाई स्कूल में प्रवेश लिया और 1922 में द्वितीय श्रेणी से एंट्रेंस की परीक्षा पास की। सुखदेव पढ़ाई में होशियार और शान्त स्वभाव के थे। वह तार्किक आधार पर बातें किया करते थे। अपने साथियों और शिक्षकों से भी उनका व्यवहार काफी मृदु था। उनके स्वभाव पर उनकी माता रल्ली देवी के धार्मिक संस्कारों का असर था। वह धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। चूंकि उनका जन्म एक आर्य परिवार में हुआ था इसलिए उनके विचारों पर आर्य-समाज का प्रभाव था। सुखदेव अपने सिद्धांतों के प्रति भी काफी दृढ़ और तटस्थ थे।

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स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ाव 
भारत के स्वतंत्रता संग्राम से सुखदेव का सीधा वास्ता 1919 में पड़ा जब जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था और पंजाब के कई शहरों में ‘मार्शल लॉ’ लागू था। उस वक्त वह मात्र 12 वर्ष के थे और सातवीं कक्षा में पढ़ते थे। मार्शल लॉ के दौरान सुखदेव के चाचा अचिन्तराम को गिरफ्तार कर लिया गया जिसका उनके मन पर गहरा असर पड़ा। सुखदेव के चाचा गिरफ्तारी के बाद जब जेल में थे तब सारे शहर की स्कूलों के बच्चों को एकत्र कर ‘यूनियन जैक’ के सामने अभिवादन कराया गया था मगर सुखदेव इसमें शामिल नहीं हुए। अपने चाचा के लौटने पर उन्होंने उन्हें गर्व से बताया कि वे यूनियन जैक के सामने नहीं झुके। 1921 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के दौरान पूरे देश में जागृति की लहर थी। सुखदेव के जीवन में भी परिवर्तन प्रारम्भ हुआ। वह अच्छे और महंगे कपड़ों, टाई-कॉलर, हैट और कोट के शौकीन थे। असहयोग आंदोलन के बाद उन्होंने विलायती कपड़ों का त्याग कर दिया और खद्दर के कपड़े पहनने लगे। उन्होंने हिंदी भाषा सीखी और इसका प्रचार भी किया। वह मानते थे कि देश के उत्थान के लिए एक राष्ट्रभाषा की जरूरत है और इस जरूरत का केवल हिंदी ही पूरा कर सकती है।

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सुखदेव को फांसी 
लाला लाजपतराय की मौत का बदला लेने के लिए सुखदेव ही भगतसिंह और राजगुरु के साथ थे। इरविन समझौते के बाद सुखदेव ने महात्मा गांधी को अंग्रेजी में एक खत लिखा और कई गम्भीर सवाल किए। इस पत्र में उन्होंने गांधीजी से क्रांतिकारी आंदोलन की गतिविधियों को नकारे जाने का खुल कर विरोध किया। सुखदेव को 15 अप्रैल 1921 को किशोरीलाल और प्रेमनाथ के साथ गिरफ्तार कर लिया गया और 7 अक्टूबर 1930 को उन्हें लाहौर षडयंत्र मामले में फांसी की सजा सुना दी गई। 24 वर्ष की उम्र में सुखदेव को भगतसिंह और राजगुरु के साथ 23 मार्च 1931 को फांसी पर लटका दिया गया। यह फांसी जेल के नियमों को दरकिनार करते हुए नियत तिथि और समय से पूर्व शाम 7 बजे दी गई। यह अजब संयोग था कि जब सुखदेव की माता उनसे कहती थी कि मैं तुम्हारी शादी करूंगी और तुम घोड़ी पर चढ़ोगे, तो सुखदेव कहते थे कि घोड़ी पर चढ़ने के बदले मैं फांसी पर चढ़ूंगा।

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शहीद-दिवस पर करोड़ों देशवासियों के साथ- अमित शाह
गृह मंत्री अमित शाह ने ट्वीट कर लिखा, शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने स्वतंत्रता-आंदोलन को अपने विचारों व प्राणों से सींचकर, जिस क्रांतिभाव का संचार किया, वैसा इतिहास में विरले ही देखने को मिला। इनका शौर्य और देशप्रेम युगों तक प्रेरणादायक रहेगा। आज शहीद-दिवस पर करोड़ों देशवासियों के साथ इन्हें चरणवंदन करता हूं। 

सीएम केजरीवाल ने ट्वीट कर लिखा...
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी इस मौके पर ट्वीट किया। उन्होंने लिखा, देश की आज़ादी के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले अमर शहीद सरदार भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू के बलिदान दिवस पर उनकी अमर शहादत को कोटि-कोटि नमन।