कारगिल विजय दिवस: जज़्बे, बलिदान और वीरता की अमर कहानी

कारगिल विजय दिवस: जज़्बे, बलिदान और वीरता की अमर कहानी

कारगिल विजय दिवस

 

kargil war: हर साल 26 जुलाई को सूरज कुछ अलग चमकता है, हवा में एक गर्व की गूंज होती है और देश के कोने-कोने में एक ही नाम गूंजता है – कारगिल विजय दिवस। ये महज़ एक तारीख नहीं, बल्कि हिम्मत और हुंकार की वो दास्तां है, जब भारत के वीर सपूतों ने दुश्मनों को उनकी ही ज़मीन पर घुसकर मात दी थी।

एक कहानी जो बर्फीली चोटियों से लिखी गई थी

साल था 1999, जगह थी कारगिल – लद्दाख की बर्फ से ढकी वो ऊँची पहाड़ियाँ, जिन्हें आम भारतीय नक्शे में ढूंढने में थोड़ा समय ले लेता है। लेकिन उसी कारगिल की ऊँचाइयों पर दुश्मन ने धोखे से कब्ज़ा जमा लिया था। पाकिस्तान की सेना ने अपनी “मुजाहिद” यूनिट के नाम पर सैनिकों को भारतीय सीमा में घुसा दिया था। शुरुआत में इसे घुसपैठ माना गया, लेकिन जब बात समझ में आई, तब तक दुश्मन 18,000 फीट ऊँचाई पर बंकर बना चुका था। और तब… भारतीय सेना का जज़्बा उस हवा से भी तेज़ चला जो इन पहाड़ियों पर बहती है।

जवान जो लौटे नहीं… लेकिन अमर हो गए

कैप्टन विक्रम बत्रा, जिनके “ये दिल मांगे मोर!” ने दुश्मनों के दिलों में खौफ और देशवासियों के दिलों में गर्व भर दिया। वो ऐसे ही नहीं अमर हुए उन्होंने जान की परवाह किए बिना अपने साथियों को बचाया, दुश्मनों के बंकर उड़ाए, और आखिरी सांस तक लड़ते रहे। राइफलमैन संजय कुमार, कैप्टन अनुज नायर, ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव ऐसे न जाने कितने नाम जो इतिहास की किताबों से निकलकर हर हिंदुस्तानी के दिल में बस गए हैं। उनकी कहानियाँ केवल पराक्रम नहीं, देशभक्ति के जीवंत उदाहरण हैं।

ऑपरेशन विजय एक जवाब, एक मिशन

भारतीय सेना ने इस मिशन को नाम दिया ऑपरेशन विजय और नाम के मुताबिक उन्होंने 60 दिनों के भीतर लगभग सभी कब्जाई गई चोटियों को दुश्मनों से वापस ले लिया। युद्ध आसान नहीं था। 18,000 फीट की ऊँचाई, माइनस डिग्री तापमान, दुश्मन की ऊँचाई वाली पोज़िशन, लेकिन फिर भी भारतीय जवानों ने वो कर दिखाया जो असंभव लगता था। 26 जुलाई 1999 को आख़िरी विजय की पुष्टि हुई, और तब से इस दिन को हर साल कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।

क्यों है ये दिन खास?

क्योंकि ये सिर्फ़ जीत की नहीं, बलिदान की याद है। ये उन माताओं का दिन है जिन्होंने अपने बेटे को देश पर न्योछावर कर दिया। ये उन बेटियों का दिन है जिनके पापा लौटकर नहीं आए, लेकिन “शहीद की बेटी” बन गर्व से जीती हैं। ये दिन हमें याद दिलाता है कि आज हम जो सांसें आज़ादी से लेते हैं, वो किसी और की कुर्बानी की देन हैं।कारगिल विजय दिवस एक ऐसा दिन है, जब हम उन वीरों को याद करते हैं, जिन्होंने देश के लिए अपना आज कुर्बान कर दिया ताकि हमारा कल सुरक्षित रहे। ये महज़ एक युद्ध नहीं था, ये देशभक्ति, साहस और आत्मबल की पराकाष्ठा थी।