हरजोत बैंस द्वारा पंजाब यूनिवर्सिटी का हलफ़नामे संबंधी फ़ैसला तानाशाही और मनमाना करार, पुनः विचारने की माँग

Harjot Bains calls Punjab University's affidavit
कैबिनेट मंत्री का हलफ़नामे की शर्तें का फ़ैसला करने में अपनाई प्रक्रिया के बारे वाइस चांसलर को सवाल, ‘‘क्या फ़ैसला सैनेट या सिंडिकेट द्वारा मंज़ूर किया गया?
विद्यार्थियों की सक्रियता को दबाने के इलावा यूनिवर्सिटी के लोकतांत्रिक ढांचे को कमज़ोर करेंगी हलफ़नामे की शर्तें: उच्च शिक्षा मंत्री
चंडीगढ़, 8 जुलाई: Harjot Bains calls Punjab University's affidavit: पंजाब के उच्च शिक्षा मंत्री स. हरजोत सिंह बैंस ने 2025-26 के सैशन में नये दाखि़लों के लिए अनिवार्य तौर पर हलफनामा/ अंडरटेकिंग लेने के पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ के फ़ैसले को ‘‘तानाशाही और मनमाना’’ करार दिया है। उन्होंने यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर को पत्र लिख कर इस संबंधी स्पष्टीकरण माँगा है।
स. हरजोत सिंह बैंस, जो यूनिवर्सिटी के ग़ैर-सरकारी सैनेट मैंबर भी हैं, ने अपने पत्र के द्वारा वाइस चांसलर से हलफनामे की शर्तों का फ़ैसला करने में अपनाई गई प्रक्रिया के बारे पूछा। उन्होंने सवाल किया कि क्या इस फ़ैसले को सैनेट या सिंडिकेट द्वारा मंज़ूरी दी गई थी?
स. बैंस ने कहा कि पंजाब यूनिवर्सिटी के 2025-26 के सैशन में नये दाखि़लों के लिए हलफ़नामा अनिवार्य करने वाली शर्त के कारण बहुत विद्यार्थी चिंतित हैं। विद्यार्थियों ने विरोध-प्रदर्शनों के लिए पहले से इजाज़त लेने, इसको सिर्फ़ ख़ास स्थानों तक सीमित करने और ‘आऊटसाईडर’, ‘ स्ट्रेंजर’ और ‘ अगली’ जैसे अपरिभाषित शब्दों पर भी सख़्त ऐतराज़ प्रकट किया, जो अनैतिक और अमानवीय समझते जाते हैं। उन्होंने कहा कि इसके इलावा दाखि़ला रद्द करने और बिना नोटिस या अपील से जीवन भर कैंपस में आने पर पाबंदी लगाने जैसे फ़ैसले लेने की मंज़ूरी देने वाली व्यवस्था कानूनी ढांचे के अंतर्गत अपनाई जाती उचित और निष्पक्ष प्रक्रिया के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
उच्च शिक्षा मंत्री ने कहा कि इस मसले ने अकादमिक भाईचारे में व्यापक असंतोष और निराशा पैदा की है। उन्होंने कहा, ‘‘पंजाब यूनिवर्सिटी ने श्रेष्ठ नेता और सम्मानित हस्तियां समाज को दीं हैं। मुझे डर है कि यह हलफ़नामा विद्यार्थियों की राजनैतिक और सामाजिक सक्रियता पर बुरा प्रभाव डालेगा और भारतीय संविधान के उपबंध 19 के अंतर्गत बोलने की आज़ादी के बुनियादी अधिकार को सीमित करके यूनिवर्सिटी के लोकतंत्रीय ढांचे को कमज़ोर करेगा। कैबिनेट मंत्री और पंजाब यूनिवर्सिटी के ग़ैर-सरकारी सैनेट मैंबर होने के नाते, मैं इस फ़ैसले पर तुरंत पुनः विचार करने और हल्फनामे की मदों की गहन समीक्षा की माँग करता हूं जिससे यह यकीनी बनाया जा सके कि यह विद्यार्थियों के संवैधानिक अधिकारों के साथ मेल खाते हों और यूनिवर्सिटी की विरासत और बौद्धिक आज़ादी को उत्साहित करने की रिवायत को बरकरार रखा जा सके।’’