दुख का सामना करे धैर्य से: मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलोक

दुख का सामना करे धैर्य से: मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलोक

दुख का सामना करे धैर्य से: मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलोक

दुख का सामना करे धैर्य से: मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमारजीआलोक

चंडीगढ, 7 अक्तूबर : जीवन एक सफर है जिसमे कभी धूप तो कभी छांव रहती है, जीवन मे सुख व दुख भी एक सिक्के के दो पहलू है कभी दुख तो कभी सुख। समय जीवन की वो कडी है जो बडे बडे से दुख व हालातो को सिखाती है।  दुख से कभी घबराना नहीं चाहिए, हर समय एकसा नहीं रहता है। समस्या आने पर यदि आप छटपटाएंगे, चीखेंगे, चिल्लाएंगे, चिंता करेंगे तो समस्या और बढ़ जाएगी। धैयपूर्वक प्रयास करने से ही समस्या से निबट सकते हैं। यदि सोचे-विचारे बगैर समस्याओं को जल्दबाजी में दूर करने का प्रयास करेंगे, तो ऐसे में हम कुछ नई समस्याओं को काी अनायास ही बुलावा दे बैठेंगे। इसलिए समस्या आने पर आत्मविश्वास के साथ धैर्य से काम लेना चाहिए। यदि एक बार आपने समस्या का सामना कर उस पर विजय प्राप्त करना सीख लिया, तो भविष्य में आप ककाी काी किसी समस्या का सामना करने से नहीं घबराएंगे। सकारात्मक सोच से मन में आशा का संचार होता है। इसके फलस्वरूप हम आत्मविश्वास के साथ अमुक समस्या का सामना करने में सक्षम होते हैं। ये शब्द मनीषीसंतमुनिश्रीविनयकुमार जी आलोक ने अपने व्यक्त्व मेकहे।

मनीषीसंत ने आगे कहा सच तो यह है कि अगर चतुराई के साथ समस्या से जूझा जाए तो उसे पराजित किया जा सकता है। उस चतुराई के लिए व्यक्ति को हौसला, धैर्य, सहनशीलता, प्रेम, करुणा आदि काावों को अपने मन में उत्पन्न करना होगा। किसी विद्वान ने कहा है कि अपने हौसलों को ये मत बताओ कि तुम्हारी परेशानी कितनी बड़ी है, बल्कि अपनी परेशानी को बताओ कि तुम्हारा हौसला कितना बड़ा है।

मनीषीश्रीसंत ने अंत मे फरमाया सृजनशील कल्पना से ऊर्जा के इस अनंत भंडार को एक नई दिशा प्रदान की जा सकती है और जीवन के कई अनछुए पहलुओं को जाग्रत किया जा सकता है। फिर काी सामान्यत: इसका घोर दुरुपयोग किया जाता है। इच्छाओं व वासनाओं से आक्रांत मन सदैव कुकल्पनाओं का आदी हो जाता है। ध्यान से अनगढ़ कल्पनाओं को संवारा जाता है। कुकल्पनाओं से बचने के लिए हमें मनोनुकूल किसी विशिष्ट कार्य में कल्पना की ऊर्जा को उड़ेलना चाहिए। जैसे-जैसे कल्पना प्रगाढ़ होने लगेगी, इच्छित वस्तु मन में साकार होने लगेगी। यह प्रक्रिया अपनी प्रगाढ़ता में ध्यान के रूप में परिवर्तित होने लगेगी और इसमें मन आनंदित होने लगेगा। कुकल्पनाओं की खरपतवार अपने आप समाप्त हो जाएगी और कल्पना अपने रोमांचक यात्रा पथ पर चल निकलेगी। कल्पना एक शक्ति है और इसका उपयोग करना आना चाहिए। कल्पना-शक्ति का उपयोग एक कला है। इस कला में पारंगत व्यक्ति ही कल्पना-शक्ति का अच्छे ढंग से प्रयोग कर सकते हैं। कल्पना एक शक्ति है, क्षमता है। जब यह ठहरती है तो जीवन नीरस हो जाता है और यह बहती है तो जीवन में नई कोंपलें फूटती हैं। यह जिधर काी बहे, वहीं सुरम्य तरंगों व सरसता का आलोक बिखेर देती है। यह काौतिक क्षमता को पंख देने का कार्य करती है। सुखद कल्पना शीतल छांव के समान है और दुखद कल्पना अंगारों की जलन पैदा करती है।