हर साल भगवान जगन्नाथ जाते हैं अपनी मौसी से मिलने? जी हां यह प्रथा है काफ़ी पुरानी

हर साल भगवान जगन्नाथ जाते हैं अपनी मौसी से मिलने? जी हां यह प्रथा है काफ़ी पुरानी

भगवान जगन्नाथ के बारे में कई प्रचलित कहानी सुनने को मिलते हैं जिनका अपना पौराणिक महत्व है।

 

भगवान जगन्नाथ के बारे में कई प्रचलित कहानी सुनने को मिलते हैं जिनका अपना पौराणिक महत्व है। अभी कुछ दिन पहले ही भगवान जगन्नाथ को आखिरी स्नान कराया गया और उसके बाद 15 दिन के लिए भगवान जगन्नाथ बीमार पड़ गए। कुछ इसी प्रकार की अन्य पौराणिक कहानियां हैं जिसे सुनकर लोग अचंभित हो जाते हैं लेकिन वह पुरानी परंपरा है और उड़ीसा के लोग इस पर काफी भरोसा करते हैं तो लिए इन्हीं में से एक प्रथम या कहानी जानते हैं जिसमें भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी से मिलने जाते हैं।

 

मौसी मां मंदिर है काफी प्रचलित

 

पुरी का मौसी माँ मंदिर एक ऐसा मंदिर है जो सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं बल्कि महाप्रभु श्री जगन्नाथ के साथ गहरा भावनात्मक रिश्ता भी दर्शाता है। यहां देवी अर्धशनी या 'अर्धशोशिनी' को महाप्रभु जगन्नाथ की मौसी माना जाता है। यह मंदिर ग्रैंड रोड पर स्थित है और रथ यात्रा के समय इसमें विशेष चहल-पहल होती है। इस मंदिर को ओडिशा के केशरी वंश के राजाओं के समय में बनवाया गया था। रथ यात्रा के दौरान इस मंदिर का महत्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि इससे जुड़ी कई विशेष परंपराएं निभाई जाती है।

 

हर साल भगवान जगन्नाथ जाते है मिलने

श्री गुंडीचा दिवस पर जब महाप्रभु श्री जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा रथों पर सवार होकर बाहुड़ा यात्रा यानी गुंडीचा मंदिर से अपने मंदिर की तरफ वापसी की यात्रा पर निकलते हैं, तो उनके रथ मौसी माँ मंदिर के सामने रुकते हैं। यहां भगवान को उनकी मौसी के हाथों से बना 'पोड़ा पीठा' का भोग लगाया जाता है। यह पीठा विशेष प्रेम से बनाया जाता है और इसे खाने के बाद ही रथ आगे बढ़ते हैं। रथ यात्रा के दिन जब भगवान गुंडीचा मंदिर की ओर जा रहे होते हैं, तो रथ थोड़ी देर के लिए मौसी मां मंदिर के पास रुकता जरूर है। चूंकि भगवान को गुंडीचा मंदिर जाने की बहुत जल्दी होती है, तो रथ ज्यादा देर नहीं रुकते, लेकिन बाहुडा यात्रा के दिन वे अपनी मौसी के दरवाजे जरूर रुकते हैं और उनसे भोग ग्रहण करते हैं।

क्या है मौसी मां मंदिर की कथा?

प्राचीन मान्यता है कि एक समय पुरी में समुद्र का पानी इतना बढ़ गया था कि पूरा क्षेत्र जलमग्न हो गया था। तब देवी अर्धशनी या अर्धशोशिनी ने उस पानी को अपने में समाहित कर लिया था और पूरी को बचा लिया। तभी से उन्हें इस मंदिर में पूजा जाता है। मौसी माँ, यानि देवी अर्धशनी, का स्वरूप देवी सुभद्रा जैसा दिखता है। ऐसा भी कहा जाता है कि बहुत पहले पुरी के बड़-दांड (ग्रैंड रोड) को ‘मालिनी’ नदी दो हिस्सों में बांटती थी। तब रथ यात्रा के लिए छह रथ बनाए जाते थे। पहले तीन रथों पर देवी देवताओं को मालिनी नदी के किनारे तक लाया जाता था फिर नावों से विग्रहों को नदी पार कराकर बाकी तीन रथों में बैठाकर गुंडीचा मंदिर ले जाया जाता था। इस परेशानी को देखकर देवी अर्धशनी ने नदी का पानी अपने में समाहित कर लिया। तभी से मान्यता है कि भगवान बाहुड़ा यात्रा के दिन मौसी माँ मंदिर रुकते हैं और उनका बनाया पोड़ा पीठा खाते हैं।