Disaster stricken Joshimath in Uttarakhand

Editorial: जोशीमठ के हालात कह रहे, रूकनी चाहिए विकास की अंधी दौड़

Disaster stricken Joshimath in Uttarakhand

Disaster stricken Joshimath in Uttarakhand

Disaster stricken Joshimath in Uttarakhand- उत्तराखंड में आपदा ग्रस्त जोशीमठ की स्थिति दिन प्रतिदिन चिंताजनक होती जा रही है। विकास और पर्यावरण के बीच जोशीमठ एक ऐसा घटनाक्रम बनकर उभरा है, जिसने न केवल इस  शहर के लोगों अपितु उत्तराखंड और पूरे देश को मानसिक रूप से आंदोलित कर दिया है। बहुत सारे सवाल हैं, जोकि आजकल हवाओं में हैं। एकतरफ राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण है, जिसने सरकारी अधिकारियों को जब तक भू-धंसाव का पुख्ता निष्कर्ष नहीं निकल आता, तब तक जानकारी साझा करने से मना किया है।

बेशक, इस समय सोशल मीडिया समेत विभिन्न संचार माध्यमों पर इस स्थल के संबंध में ज्ञात-अज्ञात बातें सामने आ रही हैं, लेकिन यह भी सच है कि बगैर जानकारी साझा किए कैसे देश को यहां की स्थिति के बारे में पता चलेगा। जबकि यहां के हालात ऐसे हैं कि प्रत्येक क्षण यह धार्मिक शहर जमीन में धंसता जा रहा है। लगता है, किसी भी क्षण सबकुछ धड़ाम से नीचे गिर जाएगा और यहां सिर्फ दरो-दीवार के अवशेष ही बाकी रह जाएंगे।

इस समय जोशीमठ के मकानों में पड़ी दरारें यहां के निवासियों के दिलों पर पड़ चुकी दरारों का प्रतिबिंब हैं। केंद्र सरकार के अधिकारी पहुंच रहे हैं, उत्तराखंड सरकार के अधिकारियों ने डेरा डाल लिया है। मुख्यमंत्री खुद वहां का दौरा कर रहे हैं। राहत शिविर लगाए गए हैं, मुआवजे का ऐलान किया गया है, जिसे दिया जा रहा है। यह सब इन हालात में होता ही है। यह तब है, जब विपक्ष यह आरोप लगा चुका है कि केंद्र एवं राज्य सरकार ने यहां राहत पहुंचाने में देर कर दी।

हालांकि विपक्ष का काम आरोप लगाना ही रह गया है। लेकिन सच्चाई यह है कि इस मामले ने राज्य और केंद्र दोनों सरकारों को हिला दिया है, यह मामला राजनीतिक नहीं है। यह पहाड़ों का दर्द बयां करने वाला मामला है, जोकि दीर्घकाल का दर्द देने जा रहा है। आज जोशीमठ के हालात ऐसे हैं, कल कहीं किसी ओर जगह के हालात ऐसे बन सकते हैं। तब सरकारों को यह समझना ही होगा कि आखिर इस नई मुसीबत से कैसे निपटा जाए।

गौरतलब है कि वर्ष 1976 में मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट से लेकर साल 2022 तक ऐसी पांच वैज्ञानिक रिपोर्ट सामने आ चुकी हैं, जिनमें न सिर्फ भूधंसाव की स्थिति को स्पष्ट किया गया है, अपितु इसके कारण और बचाव के उपाय भी सुझाए गए हैं। ऐसे में सवाल यही है कि आखिर सरकारों ने इस तरफ ध्यान क्यों नहीं दिया।

यह तय है कि किसी भी प्राकृतिक घटना को रोका नहीं जा सकता, लेकिन उसके प्रभाव को कम जरूर किया जा सकता है, तब यहां के बिगड़ते हालात के संबंध में सरकारों ने क्यों नहीं संज्ञान लिया। आखिर जब पानी गले तक पहुंच गया, तभी क्यों बचने के लिए दौड़ लगाई जा रही है।

विशेषज्ञ बता रहे हैं कि जोशीमठ में इस समय जैसे हालात हैं, कमोबेश ऐसे सभी उच्च हिमालय के नगरों की स्थिति यही है। पहाड़ों पर बसे शहर मलबे के ढेर पर खड़े हैं। हिमाचल प्रदेश के शिमला में बरसात के दिनों में पहाड़ का दरकना अब आम बात हो गई है। प्रति वर्ष लाखों पर्यटकों के स्वागत करने वाले इस पहाड़ी शहर पर आबादी का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है। क्या इसकी निगरानी हो रही है कि आखिर यहां के हालात कैसे हैं।

क्या किसी हादसे के बाद ही सरकार का अमला यह पता लगाएगा कि बेहताशा हो रहा निर्माण पहाड़ी शहरों के लिए कितना खतरनाक होता जा रहा है। दरअसल, जोशीमठ के हालात हमें यह समझने को बाध्य कर रहे हैं कि हम प्रकृति की अनदेखी अब और नहीं कर सकते।

हमें प्रकृति से जुडक़र ही अपने विकास के ढांचे को तैयार करना होगा। चाहे वह पहाड़ हो या फिर भूभाग वह सीमित है, लेकिन लगातार बढ़ती जनसंख्या इसका दबाव बना रही है कि ज्यादा से ज्यादा हाईवे बनाए जाएं, बांध बनें ताकि बिजली तैयार की जा सके। घर बनें, पहाड़ों से पत्थर निकाल कर उन्हें खोखला कर दें, चाहे जितनी मर्जी पेड़ों को काट दें और बदले में एक पौधा न लगाएं। आखिर यह विकास की दौड़ किस तरफ जा रही है।

देश में हरित प्राधिकरण है, न्यायपालिका है, जोकि रह-रहकर सरकारों को सचेत करती रहती हैं कि पर्यावरण को बचाओ। लेकिन हालात ऐसे हैं कि राजनीतिक दलों को सत्ता में आना है, इसलिए वे मनचाहे मुद्दे तैयार कर रहे हैं, वे पर्यावरण नियमों की अवहेलना कर रहे हैं।

उद्योग-धंधे चाहे कितना तेजाब उगलते रहें, नदियों में जहर बहाते रहें, लेकिन कोई सरकार तुरंत कार्रवाई नहीं करती। वास्तव में जोशीमठ यह बता रहा है कि भविष्य में क्या-क्या हो सकता है। यह समय सावधान होने और अपनी बेहिसाब होती चाहतों को नियंत्रित करने का है, वरना प्रकृति अब फोटो एलबमों तक ही सीमित रह सकती है। 

 

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