Congress came out with a strong agenda for 2024

2024 के लिए मजबूत एजेंडे के साथ सामने आए कांग्रेस

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Congress came out with a strong agenda for 2024

Congress came out with a strong agenda for 2024 : कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े (Congress National President Mallikarjun Kharge) की पार्टी नेताओं को यह संदेश सही है कि जवाबदेही से बचने वालों को संगठन से बाहर किया जाएगा। बीते कुछ वर्षों में कांग्रेस का संगठन अनुशासनहीन (Congress organization undisciplined) होता नजर आया है, इसमें तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व को चुनौती देना और राज्यों में पार्टी की इकाइयों का गठन नहीं होना और हद दर्जे की गुटबाजी जैसी बातों का घटना शामिल है। राष्ट्रीय अध्यक्ष  खडग़े  ने चुनाव के जरिए यह पद हासिल किया है, इसलिए उनके पास सख्त अनुशासन की छड़ी है, जिसके जरिए वे पार्टी पदाधिकारियों को सबक सीखा सकते हैं। कांग्रेस के सामने चुनौतियां (Challenges before Congress) खुद को बदलते परिवेश में तैयार करने की भी है, यह सही समय पर उठाया गया कदम है कि आज उसके पास एक निर्वाचित राष्ट्रीय अध्यक्ष है। गांधी परिवार का प्रभाव पार्टी पर हमेशा बना रहेगा, उससे कांग्रेस खुद को अलग नहीं कर सकती, लेकिन जिस प्रकार से नए अध्यक्ष ने अपने काम की शुरुआत की है, वह इसका भरोसा दिलाती है कि अब कांग्रेस काफी हद तक चुस्त और सही दिशा में चलेगी।

कांग्रेस संचालन समिति (Congress steering committee) की पहली बैठक में खडग़े का यह कहना पार्टी की नब्ज पकडऩे के लिए काफी है कि जवाबदेही नहीं रखने की प्रवृति अब अस्वीकार्य है। एक राजनीतिक दल का प्रथम धर्म (First religion of political party) जनता के बीच जाकर चुनाव लडऩा और अपने मुद्दों को अमल में लाना है। हालांकि कांग्रेस में यह रवायत अब सामान्य बात हो गई है कि सभी को विशेष होने का रूतबा चाहिए लेकिन हार की जिम्मेदारी या जवाबदेही लेने के लिए कोई तैयार नहीं होता। ऐसे में कार्यकर्ता यही सोच कर रह जाता है कि आखिर किस वजह से ऐसा हुआ होगा। खडग़े  ने तो यह भी कहा है कि जवाबदेही से बचने वाले नेताओं को संगठन से बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा और उनकी जगह पर नए चेहरों को मौका दिया जाएगा (New faces will be given a chance)। हालांकि पार्टी संगठन में पता नहीं कितने ऐसे नेता होंगे जोकि खडग़े कि इस बात के हिमायती होंगे, क्योंकि कांग्रेस जनों को हार की पीड़ा इतनी ही चुभती होती तो वे न एक-दूसरे से लड़ें और न ही एक दूसरे की टांग खींचते हुए जमीन पर मेहनत करने के बजाय आलाकमान की परिक्रमा करते नजर आएं। राज्यों से दिल्ली का दौरा कर गांधी परिवार के समक्ष नतमस्तक होने की रवायत को अगर कांग्रेसी छोड़ दें तो यह निश्चित रूप से पार्टी में बड़ा बदलाव लेकर आएगा। हालांकि शर्त यही है कि पार्टी में यह परिवर्तन लाया जाए। पार्टी के लिए यह सुखद होना चाहिए कि खडग़े एक मजबूत राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में सामने आ रहे हैं। उन्होंने इस बैठक का एजेंडा ही संगठन के इरादे और तेवर पर आधारित रखा है।

कांग्रेस नेताओं की एक सामान्य सोच यह हो चुकी है कि सडक़ पर उतरे बगैर मीडिया के जरिए अपने बयानों को प्रसारित करवाया जाए। हालांकि बीते दो दशक से सत्ता से दूर बैठी पार्टी का वह चेहरा अब ओझल हो गया है, जब महंगाई और पेट्रोल के रेट (Petrol rates) बढऩे पर उसके द्वारा सिलेंडर उठा कर रोष प्रदर्शन (Demonstration by lifting the cylinder) किए जाते थे। यही वजह है कि खडग़े के निर्देश (Khadga's instructions) हैं कि पार्टी के राज्य प्रभारी अगले 30 से 90 दिनों के अंदर जनता से जुड़े मुद्दों को उठाते हुए जन आंदोलन करने और उसकी रिपोर्ट निरंतर दें। गौरतलब है कि पार्टी की स्थानीय इकाइयों की ओर से ऐसी कोशिश की जाती रही हैं, लेकिन इसमें भारी गुटबाजी देखने को मिलती है। हरियाणा का ही उदाहरण लें तो यहां पार्टी में अनेक गुट कायम हैं, जनता से जुड़े मुद्दों पर सभी गुटों का एक मंच पर आना असंभव दिखता है। बरोदा, ऐलनाबाद और आदमपुर उपचुनाव (Baroda, Ellenabad and Adampur by-elections) के दौरान यह साफ-साफ देखा गया है। आदमपुर उपचुनाव को लेकर तो पार्टी नेताओं ने एक-दूसरे की औकात तक बताने की कोशिश की है। इसके बाद पार्टी हाईकमान की ओर से ही ऐसी बयानबाजी पर रोक लगवाई गई है। दरअसल, राष्ट्रीय अध्यक्ष की यह सोच पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए मार्गदर्शक होनी चाहिए कि पार्टी और देश के प्रति सर्वोच्च प्राथमिकता संगठनात्मक जवाबदेही और चुनाव जीतकर देश की सेवा करना है।

कांग्रेस अध्यक्ष का यह संदेश गौर करने लायक है, लेकिन जरूरत इसकी भी है कि वे राज्यों में जारी गुटबाजी पर नियंत्रण पाएं। यह भी जरूरी है कि राज्यों में पार्टी इकाइयों का संगठन (Organization of party units) तैयार हो, जोकि अभी तक नहीं हो सका है। ऐसा उन्होंने खुद स्वीकार किया है। हरियाणा, पंजाब जैसे राज्यों में अभी तक संगठनात्मक चुनाव (Organizational elections) नहीं हो सकें। इस दौरान यह भी जरूरी है कि पार्टी में सभी को साथ लेकर चला जाए, अगर संगठन में अनेक नेता हैं तो फिर उनके बीच संयोजन होना भी आवश्यक है। हरियाणा में तो यह भी प्रचलित हो गया है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राज्य के कांग्रेसी अपनी बयानबाजी पर नियंत्रण रखेंगे, यानी इस यात्रा के बाद वे चाहें तो एक-दूसरे पर बयानों के तीर चला सकते हैं। वास्तव में कांग्रेस को अपने आप से नहीं सत्ताधारी दल से लडऩे की आवश्यकता (Congress needs to fight with the ruling party, not with itself) है। इसके अलावा पार्टी को अपना एजेंडा तैयार करना होगा। (The party will have to prepare its agenda) राहुल गांधी (Rahul Gandhi) अपनी यात्रा में तमाम मुद्दे उठा रहे हैं, लेकिन बावजूद  इसके वे पूरे देश के लिए एक एजेंडा तैयार  नहीं कर पा रहे। कांग्रेस को अगर 2024 में केंद्र की सत्ता चाहिए तो उसे खुद को सख्त अनुशासित और एक पुख्ता एजेंडे के साथ सामने आना होगा। 

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