मन के छोटे मोटे भेदभावो को भूलकर एक मंच पर आकर अपने जैनत्व को उजागर करे
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One Platform and Showcase your Jainism: क्षमा याचना के इस पर्व पर हम सब एक मंच पर एकत्रित होकर मन के छोटे मोटे भेदभाव को भूलकर हम अपने जैनत्व को उजागर करे। जैन सिद्धांत कहता है, जिसके साथ तुमने गलत किया है उससे माफी मांग लो। इसी तरह जो तुमसे माफी मांगने आ रहे हैं उन्हें भी माफ कर दो, ऐसा करने से मन का कषाय धुल जाता है। क्षमा के बारे में भगवान महावीर कहते हैं- 'मैं सब जीवों से क्षमा चाहता हूँ। जगत के सभी जीवों के प्रति मेरा मैत्रीभाव है।
जैन सिद्धांत कहता है, जिसके साथ तुमने गलत किया है उससे माफी मांग लो। इसी तरह जो तुमसे माफी मांगने आ रहे हैं उन्हें भी माफ कर दो, ऐसा करने से मन का कषाय धुल जाता है। क्षमा के बारे में भगवान महावीर कहते हैं- 'मैं सब जीवों से क्षमा चाहता हूँ। जगत के सभी जीवों के प्रति मेरा मैत्रीभाव है। मेरा किसी से वैर नहीं है। मैं सच्चे हृदय से धर्म में स्थिर हुआ हूँ। सब जीवों से मैं सारे अपराधों की क्षमा मांगता हूं। सब जीवों ने मेरे प्रति जो अपराध किए हैं, उन्हें मैं क्षमा करता हूँ।
क्षमा भाव के बारे में भगवान महावीर कहते हैं कि -''क्षमा वीरस्य भूषणं '' अर्थात क्षमा वीरों का आभूषण होता है। क्षमा का मार्ग अतुलनीय होता है एवं सबसे बड़ा बल क्षमा है। यदि इसका सही ढंग से ,सही जगह पर प्रयोग किया जाए तो निश्चित ही यह सर्वशक्तिमान है। अगर क्रोध ही सर्वशक्तिमान होता और क्षमा निर्बल होती तो पृथ्वी पर इतने युद्ध होने के बाद भी सारी समस्याएं हल हो जानी चाहिए थीं, पर नहीं हुईं। क्षमा हमें हमारे पापों से दूर करके मोक्ष मार्ग दिखाती है। किसी भी धर्म की किताब का अगर हम अनुसरण करते हैं तो उसमें भी क्षमा भाव को ही सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है। यह पर्व हमें सहनशीलता से रहने की प्रेरणा देता है। क्रोध को पैदा न होने देना और अगर हो भी जाए तो अपने विवेक से,नम्रता से उसे विफल कर देना अपने भीतर आने वाले क्रोध के कारण को ढूंढकर ,उससे उत्पन्न होने वाले दुष्परिणामों के बारे में सोचना।
क्षमा का मतलब सिर्फ बड़ों से ही क्षमा मांगना कतई नहीं है,अपनी गलती होने पर बड़े हों या छोटे सभी से क्षमा मांगना ही इस पर्व का उद्देश्य है।यह पर्व हमें यह शिक्षा देता है कि़ आपकी भावना अच्छी है तो दैनिक व्यवहार में होने वाली छोटी- मोटी त्रुटियों को अनदेखा करें और उनसे सीख लेकर फिर कोई नई गलती न करने की प्रेरणा देता है। क्षमा करने से आप दोहरा लाभ लेते हैं -एक तो सामने वाले को आत्मग्लानि भाव से मुक्त करते हैं ,व दिलों की दूरियों को दूर कर सहज वातावरण का निर्माण करके उसके दिल में फिर से अपने लिए एक अच्छी जगह बना लेते हैं । सदैव याद रखिए कि़ क्षमा मांगने वाले से ऊंचा स्थान क्षमा देने वाले का होता है।
क्षमापना से चित्त में आह्लाद का भाव पैदा होता है और आह्लाद किसी भावयुक्त व्यक्ति मैत्रीभाव उत्पन्न कर लेता है और मैत्रीभाव प्राप्त होने पर व्यक्ति भाव विशुद्धि से... कर निर्भय हो जाता है। जीवन में अनेक व्यक्तियों से संपर्क होता है तो कटुता भी वर्षभर के दौरान आ सकती है। व्यक्ति को कटुता आने पर उसे तुरंत ही मन में साफ कर देनी चाहिए और संवत्सरी पर अवश्य ही साफ कर लेना चाहिए।
जैन धर्म के पयुर्षण पर्व से विदेश भी अछूता नहीं है। यहां रहने वाले जैन धर्मावलंबी भी इन दिनों तप-आराधना करके 'मिच्छामी दुक्कड़म्' का पर्व मनाते हैं और अपने से दूर रहने वाले अपने सगे- संबंधी तथा परिचितों-मित्रों से माफी मांगकर क्षमापना पर्व को मनाते हैं। ये पर्व भारत के अलावा दुनिया में अन्य कई जगहों, जैसे अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, जापान व अन्य अनेक देशों में भी धूमधाम से मनाए जाते हैं।
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