A holy festival of spiritual awakening along with the independence of the country

मुक्ति पर्वः देश की स्वतंत्रता के साथ आत्मिक जागृति का पावन पर्व भक्ति में आजादी की मुक्ति: - निरंकारी राजपिता रमित जी

A holy festival of spiritual awakening along with the independence of the country

A holy festival of spiritual awakening along with the independence of the country

A holy festival of spiritual awakening along with the independence of the country- चण्डीगढI सम्पूर्ण भारतवर्ष ने जहां स्वतंत्रता के 79 गौरवशाली वर्ष का उत्सव मनाया, वहीं संत निरंकारी मिशन ने मुक्ति पर्व को आत्मिक स्वतंत्रता के रूप में श्रद्धा और समर्पण से भव्यतापूर्वक आयोजित किया। यह पर्व केवल एक स्मृति नहीं, बल्कि आत्मिक चेतना के जागरण और जीवन के परम उद्देश्य का प्रतीक है।

चंडीगढ़ के संत निरंकारी सत्संग भवन सैक्टर 30 ए में भी ‘मुक्ति पर्व’ समागम का आयोजन किया गया इस समागम की  अध्यक्षता श्री ओ पी निरंकारी जी ज़ोनल इंचार्ज चंडीगढ़ जोन ने की जिसमे बड़ी संख्या मे श्रद्धालु, भक्त सम्मिलित हुए।

मुक्ति पर्व समागम का आयोजन निरंकारी राजपिता रमित जी की पावन अध्यक्षता में दिल्ली स्थित निरंकारी ग्राउंड नं. 8, बुराड़ी रोड पर किया गया जिसमें दिल्ली एवं एन.सी.आर. के क्षेत्रों से हज़ारों श्रद्धालु और भक्तों ने सम्मिलित होकर सतगुरु के आदेशानुसार उन महान संत विभूतियों को श्रद्धा सुमन अर्पित किए जिन्होंने मुक्तिमार्ग को प्रशस्त करने हेतु अपना सम्पूर्ण जीवन ही मानवता की सेवा में अर्पित कर दिया।

इसके अतिरिक्त विश्वभर में मिशन की सभी शाखाओं में भी मुक्ति पर्व के अवसर पर विशेष सत्संग का आयोजन कर इन दिव्य संतों को नमन किया गया। श्रद्धालुजनों ने शहनशाह बाबा अवतार सिंह जी, जगत माता बुद्धवंती जी, राजमाता कुलवंत कौर जी, माता सविंदर हरदेव जी, भाई साहब प्रधान लाभ सिंह जी एवं अन्य अनेक समर्पित भक्तों को हृदय से स्मरण कर उनके जीवन से प्रेरणा प्राप्त की।

आध्यात्मिकता के इस पावन वातावरण में समस्त श्रद्धालुजनों को सम्बोधित करते हुए निरंकारी राजपिता जी ने फरमाया कि आज 15 अगस्त को जहाँ देश आज़ादी का पर्व मना रहा है, वहीं संतजन इसे मुक्ति पर्व के रूप में आत्मचेतना और भक्ति के संदेश के साथ मना रहे हैं। जैसे झंडा और देशभक्ति गीत आज़ादी के प्रतीक हैं, वैसे ही एक भक्त का जीवन सेवा, समर्पण और भक्ति की महक से भरा होता है। सद्गुरु का दिया ब्रह्मज्ञान ही असली आज़ादी है, जो हमें ’मैं’ और अहंकार से मुक्त करता है।

जगत माता जी, शहंशाह जी, राजमाता जीए माता साविंदर जी एवं अनेक संतों का जीवन केवल जिक्र के लिए नहीं, बल्कि प्रेरणा और आचरण के लिए है। भक्ति तब सच्ची है जब हम तू कबूल, तो तेरा किया सब कबूल है के भाव में जीते हैं। वर्षों की गिनती से नहीं, समर्पण की गहराई से भक्ति का मूल्य है। मुक्ति का यह पर्व हमें बार-बार चेताता है कि नाम लेकर नहीं, नाम में रमकर ही जीवन सफल होता है।

निसंदेह, इन संतों का तप, त्याग और सेवा आज भी लाखों आत्माओं के जीवन में प्रकाश का कार्य कर रहा है। जीवन की विषम परिस्थितियों में भी इन्होंने ब्रह्मज्ञान की मशाल को जलाए रखा और मिशन का संदेश जन-जन तक अपने जीवन के माध्यम से पहंुचाया। वास्तव में, निरंकारी जगत का हर भक्त उनके ऋण से सदैव अभिभूत रहेगा।

इस पर्व की शुरुआत 15 अगस्त 1964 को जगत माता बुद्धवंती जी की स्मृति में हुई जिसे तब ‘जगत माता दिवस’ के रूप में आयोजित किया गया। 17 सितम्बर 1969 में बाबा अवतार सिंह जी के ब्रह्मलीन होने पर यह दिवस सन् 1970 से ‘जगत माता-शहनशाह दिवस’ कहलाने लगा। 1979 में प्रथम प्रधान भाई साहब लाभ सिंह जी के ब्रह्मलीन होने पर बाबा गुरबचन सिंह जी ने इसे ‘मुक्ति पर्व’ नाम दिया। 2018 से माता सविंदर हरदेव जी को भी इस दिन श्रद्धा सुमन अर्पित किये जाते है। 

मुक्ति पर्व की मूल भावना यही है कि जैसे भौतिक स्वतंत्रता हमें राष्ट्र की उन्नति का मार्ग देती है, वैसे ही आत्मिक स्वतंत्रता यानि जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति - मानव जीवन की परम उपलब्धि है। यह मुक्ति केवल ब्रह्मज्ञान की दिव्य ज्योति से ही संभव है, जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ती है, और इस जीवन के वास्तविक उद्देश्य का बोध कराती है।