गुरु किसे बनाना चाहिए; वृंदावन वाले संत प्रेमानंद महाराज से जानिए, दीक्षा लेने से पहले किया सावधान, नहीं समझे तो बन सकता अपराध

Guru Kise Bnaayen Vrindavan Sant Premanand Maharaj

Guru Kise Bnaayen Vrindavan Sant Premanand Maharaj Guru Purnima

Guru Kise Bnaayen: आज गुरु पूर्णिमा है और इस मौके पर लोग अपने-अपने गुरु का ध्यान कर रहे हैं। उनका वंदन कर रहे हैं। लेकिन जिन लोगों ने अभी तक गुरु नहीं बनाए हैं और वह गुरु बनाना चाहते हैं तो उन्हें सही गुरु का चुनाव कैसे करना चाहिए। इसके बारे में आज हम वृंदावन वाले संत प्रेमानंद महाराज से जानते हैं। आखिर गुरु बनाने का हमारा उद्देश्य हमारे जीवन को सही राह दिखाने और भगवद् प्राप्ति के लिए होता है। हम इससे न भटकें। इसके लिए हमें सही गुरु का चयन कैसे करना है। नीचे जानिए।

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गुरु कैसे बनाएं?

प्रेमानंद महाराज के अनुसार, किसी के कहने से किसी को गुरु नहीं बनाना चाहिए। ये नहीं सोचना चाहिए कि बहुत लोग जुड़े हैं, भीड़ हो रही है तो हम भी गुरु बना लें। ये कोई बाजार नहीं है। किसी को खाली प्रवचन सुनकर या प्रभाव देखकर गुरु नहीं बनाया जाता। सिर्फ गुण, रूप, विद्वत्ता देखकर या प्रवचन सुनकर गुरु नहीं बनाना चाहिए। जिसे आप गुरु बनाने जा रहे हैं। पहला उनका संग करो, उनकी संगत में रहो। नजदीक से उन्हें जानो और यह परखो कि मन, वचन, कर्म से उनके आचरण एक जैसे ही पवित्र हैं या नहीं।

या फिर वो सिर्फ बातें ही अच्छी-अच्छी करते हैं। हमें ये देखना चाहिए कि उनका कुछ प्रभाव भी हमारे ऊपर पड़ रहा है या नहीं। साथ ही उनकी उपासना देखो। उनके आराध्य को जानो। प्रेमानंद महाराज ने कहा कि, अगर उनकी बातों में तनिक भी संशय लगे और हदय जल रहा हो तो उन्हें गुरु नहीं बनाना चाहिए।

लेकिन जिसके दर्शन से, जिसके वचन से हमारे हदय को शीतलता मिल रही हो और लग रहा हो कि यही हमारे जीवन की बात थी। जिसको देखने से लगे कि देखा तो अभी है, लेकिन बहुत पुराने पहचाने हुए लग रहे हैं। ये अपने हैं। भगवान से समीपता बढ़ रही है। भगवान को पाने की लालसा जाग्रत हो रही है। जब चारो तरफ से सब जानने के बाद आंतरिक मन से विश्वास और समर्पण आने लगे और यह लगने लगे कि मैं कितना नीच हूं, मैं क्या कर रहा हूं तो फिर उन्हें गुरु बना लो।

वहीं प्रेमानंद महाराज ने कहा कि, किसी को भी गुरु बनाने से पहले भगवान को गुरु रूप में स्वीकार करें। भगवान से प्रार्थना करें कि मैं आपको अपने गुरुदेव के रूप में स्वीकार करता हूं और भगवान से कहें यदि मुझे गुरु की ज़रूरत है तो आप ही मुझे मेरे गुरु के रूप में मिलें। इससे प्रभु आपको ऐसी जगह मिला देंगे जहां आपको कभी संशय नहीं होगा और एक अच्छे गुरु की प्राप्ति आपको हो जाएगी।

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दीक्षा लेने से पहले किया सावधान

प्रेमानंद महाराज ने दीक्षा लेने से पहले भी सावधान किया है। प्रेमानंद महाराज ने कहा कि, हम कभी ये नहीं कहते कि दीक्षा लेनी ही चाहिए और बिना दीक्षा के कल्याण नहीं होगा। दीक्षा लिए बिना भी संतों की संगत और उनकी बात मानने और भगवान का नाम जपने से भी कल्याण हो सकता है। प्रेमानंद महाराज ने कहा कि, अगर कोई भी दीक्षा ले रहा है तो बहुत संभलकर उसे दीक्षा लेनी चाहिए। पहले जिससे आप दीक्षा ले रहे हैं। उसके सत्संग को सालों सुनें।

वहां की एक-एक चेष्टा देखें, वहा का माहौल देखें। दिखावा क्या है, असलियत क्या है? इसे नजदीक से जाने। प्रेमानंद महाराज ने कहा कि इस दौरान आप जिसे गुरु बनाने जा रहे हैं, उसे अंदर से गुरु मानते रहें, लेकिन बाहरी  संबंध तब तक प्रकट न करें, जब तक हमें मन से पूरी तरह से यकीन न हो जाये। क्योंकि अगर आपका मन से पूरा समर्पण नहीं हुआ है और आपने गुरु बना लिया है और गुरु बनाने के बाद यदि आपकी श्रद्धा बिगड़ गई तो फिर बहुत गलत हो जाएगा और निंदा स्तुति हो जाएगी।

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गुरु मंत्र लेने से कहीं अपराध न हो जाये

प्रेमानंद महाराज ने कहा कि, गुरु मंत्र केवल उसी को लेना चाहिए। जिसका उद्देश्य भगवद् प्राप्ति हो। अगर ऐसा नहीं है तो फिर यह अपराध बन जाता है। क्योंकि अगर मंत्र ले लिया है और फिर मनमानी आचरण कर रहे हैं तो फिर ठीक नहीं है। इसलिए गुरु मंत्र तभी लेना चाहिए, जब हमारे अंदर यह भावना पुष्ट हो जाये कि हम गुरु की आज्ञा का हर हाल में पालन कर लेंगे और गुरु कभी ऐसा आदेश नहीं करेंगे, जिसका आपका पालन न कर पायें.

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