कषाय भावों का शमन ही क्षमा धर्म है: आचार्य श्री 108 सुबल सागर जी महाराज

कषाय भावों का शमन ही क्षमा धर्म है: आचार्य श्री 108 सुबल सागर जी महाराज

Mitigation of Bitter Feelings

Mitigation of Bitter Feelings

Mitigation of Bitter Feelings: चंडीगढ़ दिगम्बर जैन मंदिर परिषद में आज क्षमावाणी का आयोजन हुआ जिसमे परम पूज्य आचार्य श्री सुबलसागर जी महाराज एवं शेताम्बर साधु महाराज दोनों एक ही मंच पर उपस्थित होकर धर्म सभा को संबोधित किया। 
आचार्य श्री ने कहा कि जहाँ हमारे मन की अनुकूल मन, वचन, काय की प्रवृत्ति होती है वहाँ तो सभी मनुष्यों को अच्छा लगता है लेकिन जहाँ हमारे मन के प्रतिकूल व्यवहार होता है वहाँ बुरा लगता है और यह बुरा लगना ही क्रोध रूपी आग को प्रज्वलित 'करती है। यह क्रोध रूपी हवा कौन से स्थान से उत्पन्नहोती है इसी को हमें आज समझना है।
बहुत सावधानी से जीवन जीने की आवश्यकता है आज। जब कोध रूपी आग शांत होती है। तब हमें पता चलता है कि हमारी कौन - कौन सी गलतियां है। क्या कभी अग्नि से अग्नि बुझती है? क्रोध करने से क्रोध शांत होता है? नहीं। मुस्काहट का चहरा सभी लोग पसंद करते हैं। क्रोध का अनुशरण कोई नहीं करता है।
क्षमा के आने पर क्रोध आदि कषाये शांत हो जाती है। कषायों भावों का उपशमन होना ही क्षमा भाव है। क्षमा रूप भाव कभी किसी को कष्ट नहीं पहुंचाते है। हमारा धर्म अनेकान्त रूप है। आज इसको समझना बहुत आवश्यक है। केवल क्षमा ही नहीं, इस अपने धर्म की रक्षा के लिए वा दूसरों की रक्षा के लिए नीति से काम लेना बहुत आवश्यक है। हृदय से सरल व्यक्ति ही क्षमा को अपने जीवन में धारण कर सकता है वैर रखने से शत्रुता बढ़ती है। अंदर की गांठ खुले बिना हमारे जीवन में क्षमा धर्म आ नहीं सकता है। गुरूदेव ने कहाँ कि
 बातों में मत भेद हो तो कोई बात नहीं लेकिन मन भेद नहीं होना चाहिए मन भेद ही बहुत घातक होता है। साधु तो सारी दुनियाँ के होते है तो वे तो प्रेम का संचार करते है। इनके कारण से ही समाज में एकता कायम होती है।
आज धर्म सभा विशेष माननीय अतिथियों में श्री अशोक मित्तल एम.पी. (चान्सलर लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटि) श्री सत्यपाल जैन (पूर्व सांसद एवं एडिशनल सोलिसिटर जनरल आफ इण्डिया) श्रीमति आशिका जैन (डी०सी० मोहाली) श्री अंकुर आल्या (कमिश्नर इनकम टैक्स) डा. अरिहन्त जैन (पी० जी० आई चंडीगढ़) श्री अजय जैन सीनीयर एडवोकेट उपस्थित रहे। यह जानकारी बाल ब्र. गुंजा दीदी एवं श्री धर्म बहादुर जैन जी ने दी।

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