World united in India's decisive war on terrorism

भारत के आतंकवाद पर निर्णायक युद्ध में साथ आए विश्व

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World united in India's decisive war on terrorism

World united in India's decisive war on terrorism : भारत की अध्यक्षता में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council) अगर आतंकवाद जैसे गंभीरतम मुद्दों पर विचार नहीं करेगा तो यह इस वैश्विक संस्था के अस्तित्व पर सवाल होगा। सुरक्षा परिषद में अनेक बार वैश्विक आतंकवाद को लेकर विचार-मंथन हुआ है, आज के समय में लगभग सभी देश आतंकवाद की मार झेल रहे हैं, लेकिन सर्वाधिक क्षति अगर किसी देश ने झेली है तो वह भारत है। अब जब भारत सुरक्षा परिषद (India Security Council) की अध्यक्षता कर रहा है तो उसकी ओर से आतंकवाद पर बैठक बुलाना और उसमें आतंकवाद के पोषक देश पाकिस्तान की कलई खोलना बेहद सही और उपयुक्त कार्य है। इस बैठक में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जहां पाकिस्तान को खरी-खरी सुनाई है वहीं अमेरिका को भी संदेश दिया है कि वह अगर चाहे तो पाकिस्तान को आतंक का पोषक बनने से रोक सकता है, ऐसा तब होगा जब पाक को अमेरिका से आर्थिक मदद मिलना बंद हो जाए तो।

पाकिस्तान (Pakistan) ऐसा कोई अवसर नहीं छोड़ता जब वह वैश्विक मंच पर कश्मीर का राग न अलापे। उसके मंत्री, प्रधानमंत्री, सेना प्रमुख आदि हर मंच पर कश्मीर का राग अलापते हैं, लेकिन इस दौरान आतंकवाद की फैक्ट्री (Terror Factory) बनने की अपनी असलियत को छुपाए रखते हैं। पूरा विश्व यह समझता है लेकिन इसके बावजूद कूटनीतिक दांव ऐसे चले जाते हैं जिसमें भारत जैसे निष्पक्ष और शांतिप्रिय देश का विरोध होने लगता है। हालांकि मौजूदा केंद्र सरकार के कार्यकाल में विदेश नीति में आमूलचूल परिवर्तन आ चुका है। अब वे देश जोकि एक समय पाकिस्तान परस्त थे और जेहाद के नाम पर धार्मिक कट्टरता से बंधे हुए थे, अब भारत के साथ चल रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि पश्चिम के ज्यादातर देश अब भारत का समर्थन करते हैं। चीन के साथ जारी संघर्ष में अब अमेरिका ने खुलकर अगर भारत का समर्थन किया है तो इसकी वजह भी विदेश नीति ही है। अगर दुनिया भारतीय सुरक्षा चिंताओं को अब बेहतर तरीके से समझने लगी है तो यह भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत है।

सुरक्षा परिषद में 15 देश शामिल (Security Council includes 15 countries) हैं। इस परिषद की अध्यक्षता भारत को मिलना एक बड़ी कामयाबी है, लेकिन इस बात से पाकिस्तान और चीन का परेशान होना लाजिमी है। भारत सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता का दावेदार है, और रूस समेत अन्य देश इसके समर्थक हैं, केवल चीन को छोडकऱ। अब जब भारत एक वर्ष के लिए सुरक्षा परिषद का अध्यक्ष है तो पाकिस्तान और उसके समर्थक चीन को परेशान होना स्वाभाविक है। यही वजह है कि आतंकवाद पर बुलाई गई बैठक में पाकिस्तान के विदेश मंत्री (Foreign Minister of Pakistan) भी शामिल हुए लेकिन उन्होंने कश्मीर का राग अलापना बंद नहीं किया और भारत की स्थाई सदस्यता पर भी तंज कसे। यह पूछा जा सकता है कि आखिर पाकिस्तान के पास ऐसा क्या है, जिसके आधार पर वह संयुक्त राष्ट्र और उसकी सुरक्षा परिषद जैसी अहम संस्था में कोई ओहदा हासिल कर सके। सबसे पहले तो पाकिस्तान उस दायरे में ही नहीं आता है, और अगर उसे इसका मौका मिला भी तो वह इसका फायदा अपने पक्ष में लेने की ही जुगत करेगा। आतंकवाद पर सुरक्षा परिषद की बैठक में भी पाकिस्तान ने जब वही पुरानी बातें दोहराई तो उससे सुनना भी पड़ा।

भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर (Indian Foreign Minister S Jaishankar) का यह कहना पूरी तरह उचित है कि आतंकी ओसामा बिन लादेन को शरण देने वाला और दूसरे देश की संसद पर हमले कराने वाला देश संयुक्त राष्ट्र में बैठ कर अगर आतंकवाद रोकने की बात कर तो यह अचंभित करने वाली बात ही होगी। भारत को पाकिस्तान ने रह-रहकर आतंकवाद का दंश दिया है, चाहे वह मुंबई का 26/11 हो या 2001 में भारतीय संसद पर हमला हो। घाटी में तमाम आत्मघाती हमले हों या फिर उड़ी, पठानकोट में हुए आतंकी हमले, सभी पाकिस्तान प्रायोजित हैं। आजकल पंजाब में ड्रोन की आवक और नशीले पदार्थों की खेप भिजवाने में भी पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी (Pakistan's intelligence agency) का हाथ है। कश्मीर पर गिद्ध नजर रखने वाले पाकिस्तान को अनुच्छेद 370 के खात्मे के बाद जैसी चोट मिली है, उसका बदला वह पंजाब के जरिए लेना चाहता है। विदेश मंत्री एस जयशंकर (External Affairs Minister S Jaishankar) ने बेहद बेबाकी से यह बात कही है कि लश्कर और जैश के आतंकी पाकिस्तान में फल-फूल रहे हैं। आखिर इससे पाकिस्तान कैसे इनकार कर सकता है लेकिन यह उसकी आदत है जोकि अब उसकी जीवन शैली बन चुकी है। भारत विरोध की बुनियाद पर जिंदा पाकिस्तान में सरकार बनती है तो कश्मीर लेने के नाम पर और सरकार गिरती है तो वह कश्मीर लेने में नाकाम रहने पर। क्या ऐसे देश की सरकार पर वैश्विक बिरादरी भरोसा कर सकती है?

इस संदर्भ में भारत की ओर से अमेरिका को संदेश देना भी सही है। अमेरिका ने बीते दिनों पाक को एफ-16 जेट की सप्लाई (Supply of F-16 jets to Pakistan) व उसे एफएटीएफ ग्रे लिस्ट से बाहर निकलने में मदद की है। अमेरिका को भी पता है कि अगर पाकिस्तान हथियारों को जुटाता है तो यह किसके लिए किया जा रहा है। बावजूद इसके उसकी ओर से पाकिस्तान को हथियारों की, लड़ाकू विमानों की और फंड के जरिये मदद प्रदान करना भारत विरोध को ही पुख्ता करना है। अगर अमेरिका कड़े शब्दों में जैसा कि बीते समय में राष्ट्रपति जो बाइडेन ने पाकिस्तान के संबंध में कहा था कि वह दुनिया का सबसे ज्यादा खतरनाक देश बन गया है, पर काम करे तो यह पाकिस्तान को सीख हो सकती है। भारत को सीमा के मोर्चे पर पाकिस्तान और चीन के प्रति सजग रहना होगा वहीं कूटनीतिक मोर्चे पर इसी प्रकार पाक व चीन के मंसूबों को खत्म करना होगा। देश आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस का दिल्ली घोषणा पत्र जारी कर चुका है, जिस पर वह अमल कर रहा है, पूरे विश्व को अब उसके स्वर में अपना स्वर मिलाते हुए आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक युद्ध छेडऩा चाहिए।  

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