Winds of development blowing in small governments

Winds of development blowing in small governments/छोटी सरकारों में बहे विकास की बयार

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Winds of development blowing in small governments

Winds of development blowing in small governments : हरियाणा में पंचायत, ब्लॉक समिति और जिला परिषद की छोटी सरकारों (Small governments of Panchayat, Block Samiti and Zila Parishad in Haryana) के चुनाव शांतिपूर्ण (peaceful elections) और व्यवस्थित तरीके से होना जहां लोकतंत्र की बुनियाद मजबूत करता है वहीं ग्रामीण विकास के सुनिश्चित होने का भी विश्वास (Belief in ensuring rural development) दिलाता है। ग्राम पंचायत देश में लोकतंत्र की सबसे छोटी इकाई है, गांधी जी ने कहा था कि ग्राम विकास के बगैर देश का विकास संभव नहीं (Country's development is not possible without rural development) है। उनका कहना सही था, हालांकि आजादी के बाद से ही गांवों की तरफ उतना ध्यान नहीं दिया (did not pay much attention to the villages) गया, जितना जरूरी था। देश में शहर विकसित होते गए (Cities grew in the country) हैं और वे सभ्यता के केंद्र बन गए लेकिन गांव अभी विकास को तरस रहे हैं। हरियाणा जिसका आधार उसके गांव हैं, में अब ग्राम पंचायतों को लेकर जो सुधार किए गए हैं, उनका ही यह परिणाम है कि अब जहां शिक्षित पंच और सरपंच चुन कर सामने आए (Educated Panch and Sarpanch came to the fore) हैं वहीं ब्लॉक समिति और जिला परिषदों में भी उच्च शैक्षिक योग्यता के युवक-युवतियों ने राजनीतिक चौधर हासिल करने की जंग लड़ी है। प्रदेश में विभिन्न कारणों से पंचायत चुनाव में देरी होती आई लेकिन अब जब ग्रामीण मतदान बूथों की तरफ उमड़े तो उन्होंने जागरूकता की ऐसी मिसाल पेश की है, जोकि सदैव उल्लेखनीय रहेगी।

प्रदेश में 6220 ग्राम पंचायतों के चुनाव (6220 Gram Panchayat elections) हुए हैं, वहीं 3081 पंचायत समिति और 411 जिला परिषद सदस्यों का चयन (Selection of 3081 Panchayat Samiti and 411 Zilla Parishad members) हुआ। जाहिर है, पंचायत चुनाव विधायक और सांसद के चुनाव से भी ज्यादा अहम समझे जाते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ग्रामीणों के सामने उनके आसपास के लोग ही बतौर उम्मीदवार ताल ठोक रहे होते हैं। उन लोगों से सामाजिक सरोकार होते हैं, उन्हीं से नाराजगी, मेलजोल और कटुता भी होती है। चुनाव ग्रामीणों के लिए किसी को सबक सिखाने और किसी को नायक बनाने का अवसर होता है। हालांकि इस दौरान गांव के विकास की अनदेखी नहीं की जा सकती। इस बार के चुनावों में कांग्रेस को छोडकऱ बाकी राजनीतिक दलों ने अपने सिंबल पर चुनाव लड़े (Except Congress, other political parties contested elections on their own symbols) थे। जैसे परिणाम सामने आए हैं, उनमें निर्दलीय प्रत्याशियों ने जिला परिषद और ब्लॉक समिति चुनावों में बाजी मारी है। इसके राजनीतिक मायने क्या हैं, इस पर मंथन शुरू हो गया है। सिरसा में इनेलो के प्रधान महासचिव अभय चौटाला के पुत्र कर्ण चौटाला ने जिला परिषद सदस्य का चुनाव जीता है, वहीं कुरुक्षेत्र से भाजपा सांसद नायब सैनी की पत्नी सुमन चुनाव हार गईं। शुगरफेड के चेयरमैन और जजपा विधायक रामकरण काला (Sugarfed chairman and JJP MLA Ramkaran Kala) की पुत्रवधू को भी हार मिली है। इसी प्रकार जजपा के प्रदेश अध्यक्ष निशान सिंह के बेटे को पंचायत चुनाव में हार मिली थी। बेशक, पंचायत चुनावों में ग्रामीणों के मूड का अंदाजा लगाना मुश्किल है, लेकिन राजनीतिक दलों की ओर से निर्वाचित प्रतिनिधियों को लेकर जैसे दावे किए जाने लगे हैं, वे आगामी विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर हो रहे हैं।

गौरतलब है कि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ओम प्रकाश धनखड़ (BJP State President Om Prakash Dhankhar) ने जहां ज्यादातर स्थानों पर भाजपा व भाजपा समर्थित उम्मीदवारों (BJP supported candidates) की जीत का दावा किया है, वहीं कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा (Congress MP Deepender Hooda) का भी बयान है कि अधिकतर निर्दलीय विजेता कांग्रेस समर्थित हैं। इन चुनावों में आम आदमी पार्टी ने भी अपने उम्मीदवार उतारे थे। अब पार्टी का दावा है कि उसके 15 उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है। अब माना जा रहा है कि सिंबल पर उम्मीदवार उतारने की राजनीतिक दलों की कसरत विफल ही रही है, ऐसा इसलिए भी है क्योंकि पंचायत चुनाव भाईचारे पर लड़े जाते (Congress MP Deepender Hooda...) हैं। गांवों में पार्टियों से ज्यादा मोहल्ले, गोत्र, जाति, एक-दूसरे से तालुकात और चौधर ज्यादा अहम समझी जाती है। राजनीतिक दल केवल विधानसभा और लोकसभा चुनाव में ही याद रखे जाते हैं। बेशक, सिंबल पर उम्मीदवार उतारना अनुचित नहीं है, लेकिन इससे पार्टीबाजी साफ जाहिर होने लगती है और ग्रामीण खुद को इससे दूर रखने की ही सोचते हैं। बावजूद इसके इन चुनावों में राजनीतिक दलों के अपने-अपने दावे हैं। सत्ताधारी दल भाजपा-जजपा के सांसद, विधायक एवं पार्टी प्रमुख (MP, MLA and party chief of the ruling party BJP-JJP) के रिश्तेदारों को हार मिलने से यह समझा जा रहा है कि उनकी लोकप्रियता कम हुई है, वहीं इनेलो, कांग्रेस, आप समर्थित उम्मीदवारों की जीत से यह दावा किया जा रहा है कि अब जनता इन दलों के प्रति नरम कोना रख रही है। यही वजह है कि इनेलो  महासचिव अभय चौटाला ने दावा किया है कि मतदाता ने सत्ताधारी दलों को उनकी औकात दिखा दी है।

बेशक, यह सब राजनीतिक बयानबाजी (political rhetoric) है, लेकिन सरकार, राजनीतिक दलों और जनता को अब इस पर ध्यान देना चाहिए कि ग्राम वासियों ने जिस निष्ठा से अपने प्रतिनिधियों को चुना है, वे गांव-देहात में विकास कार्यों (Development works in village-countryside) को अमलीजामा पहना सकें। पंचायतों, समिति और परिषदों को राजनीति में न फंसा कर वहां मूलभूत सुविधाओं को प्रदान करने के लिए काम होना चाहिए। गांव परिवहन, रोड, चिकित्सा सुविधाओं, पानी, शिक्षा, रोजगार जैसी सेवाओं से वंचित हैं। गांवों की मूल संस्कृति (native culture of villages) को कायम रखते हुए उन्हें विकास की मूल धारा से जोड़े जाने की आवश्यकता है। अगर ऐसा हुआ तो गांव तरक्की के ऐसे वाहक बन चुके होंगे जिसका फायदा प्रदेश और देश दोनों को मिलेगा।  

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