who is the real owner: विभिन्न विभागों में हजारों मुलाजिम आउटसोर्सिंग पर, असली मालिक कौन, विभाग या ठेकेदार !

who is the real owner: विभिन्न विभागों में हजारों मुलाजिम आउटसोर्सिंग पर, असली मालिक कौन, विभाग या ठेकेदार !

who is the real owner: विभिन्न विभागों में हजारों मुलाजिम आउटसोर्सिंग पर

who is the real owner: विभिन्न विभागों में हजारों मुलाजिम आउटसोर्सिंग पर, असली मालिक कौन, विभाग या ठ

विभागों में आउटसोर्सिंग पर लगाये गए मुलाजिम, शर्तों में कांट्रेक्टर ही जिम्मेदार, प्रिंसिपल इंप्लायर पिक्चर से बाहर

आरटीआई में जानकारी मांगने पर हुआ खुलासा, आउटसोर्सिंग पर ठेकेदार ही रखेगा वही जिम्मेदार

-कांट्रेक्ट लेबर एक्ट 1970 का किया जा रहा सरासर उल्लंघन।                              

चंडीगढ़, 2 अगस्त (साजन शर्मा): who is the real owner: चंडीगढ़ के विभिन्न विभागों में ठेकेदार की मार्फ्त आउटसोर्सिंग पर लगाये गए स्टाफ का असली इंप्लायर (मालिक) कौन, इसको लेकर नया विवाद सामने आ रहा है। प्रशासन के विभिन्न महकमे तो खुद को प्रिंसिपल इंप्लायर मान ही नहीं रहे। उनकी दलील है कि आउटसोर्सिंग के लिए कांट्रेक्टर को कांट्रेक्ट दे दिया गया है और उसमें विभिन्न शर्तें लगा दी गई हैं जिसके मुताबिक मुलाजिमों के किसी भी मामले में कांट्रेक्टर ही जिम्मेदार है। आरटीआई में हासिल सूचना में नगर निगम और कांट्रेक्टर के बीच हुए समझौते व कांट्रेक्टर पर लगाई गई शर्तों का खुलासा हुआ है। यहां बता दें कि प्रशासन ने विभिन्न विभागों में हजारों इंप्लायज रखे हुए हैं। सवाल ये है कि क्या इन पर भी यही शर्तें लागू हैं?

नगर निगम ने कांट्रेक्टर की मार्फ्त आउटसोर्सिंग पर गारबेज वर्कर रखे हैं। 22 मार्च 2021 को ठेकेदार के साथ नगर निगम का यह कांट्रेक्ट दो साल के लिए हुआ। यानि कागजों के मुताबिक 21 मार्च 2023 तक यह कांट्रेक्ट वैलिड है। 345 ड्राइवर, 14 सेनिटरी सुपरवाइजर, एक अकाउंटेंट व 5 डाटा एंट्री ऑपरेटर आउटसोर्सिंग पर ठेकेदार ने लगाए। आरटीआई कार्यकर्ता आरके गर्ग ने इस कांट्रेक्ट की कापी मांगी थी जिसमें कुछ चीजें तो उपलब्ध करा दी गई लेकिन कुछ जानकारियों के लिए स्पष्ट मना कर दिया गया। नगर निगम की कांट्रेक्टर के साथ क्या टर्म एंड कंडीशन हैं इसका ब्यौरा दे दिया गया है। कर्मचारियों को क्या बेनेफिट हैं, इसका भी ब्यौरा दिया गया है लेकिन एक साल से ज्यादा वक्त बीत गया है और इस दौरान नगर निगम ने ठेकेदार को जो बिल (मुलाजिमों की सेलरी या अन्य खर्चा) दिये उनका ब्यौरा प्रदान नहीं किया गया। दिसंबर 2021 से यह जानकारी मांगी गई थी। फिलहाल कांट्रेक्ट में कुछ विरोधाभास भी दिखाई दे रहे हैं। जैसे यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि कांट्रेक्ट एक साल के लिए है या दो साल के लिए या फिर तीन साल के लिए। क्योंकि कांट्रेक्ट में कुछ जगह एक साल तो तारीख के हिसाब से दो साल जबकि रिन्यू करने के लिहाज से तीन साल बताया गया है।

who is the real owner: प्रिंसिपल इंप्लायर अपना पल्ला नहीं झाड़ सकता

सबसे अहम और मजेदार बात समझौते में यह है कि प्रिंसिपल इंप्लायर होने के बावजूद नगर निगम ने अपना पल्ला झाड़ लिया है। यानि मुलाजिमों की सारी जिम्मेदारी ठेकेदार पर थोप दी गई है। इंप्लाय-इंप्लायर रिलेशनशिप कांट्रेक्टर  व मुलाजिमों के बीच है। एमसी का इसमें कोई रोल नहीं दिखाया गया है। आरटीआई कार्यकर्ता आरके गर्ग के अनुसार यह कांट्रेक्ट लेबर एक्ट 1970 का सरासर उल्लंघन है। कानून के अनुसार आउटसोर्स मुलाजिमों के जो असली बिल या सैलरी है वह नगर निगम ही ठेकेदार की मार्फ्त पे करता है। बतौर प्रिंसिपल इंप्लायर व प्रिंसिपल इंप्लायर की जिम्मेदारी से वह पीछे नहीं हट सकता। नगर निगम इस मामले में सरासर कानून का उल्लंघन कर रहा है। नगर निगम बतौर प्रिंसिपल इंप्लायर मुलाजिमों के हर काम के लिए जिम्मेदार है। चूंकि पैसा निगम देता है लिहाजा वह कांट्रेक्टर के पास से पैसा काट सकता है। शर्तों के अनुसार इंप्लायज का मेडिकल होगा। उनकी आइडेंटिफिकेशन व पुलिस द्वारा वेरिफिकेशन होगी। वैलिड आधार कार्ड वाले ही ठेकेदार की ओर से नौकरी पर लगाये जा सकते हैं। शर्तों में यह भी है कि मुलाजिमों की हर माह की 2 तारीख तक अटेंडेंट लेनी होगी। 5 तक इसकी स्कैन कर कापियां नगर निगम को भेजनी होगी। 7 तक सैलरी देनी होगी। सैलरी भी चैक या बैंक अकाउंट की मार्फ्त भेजनी होगी। अगर ये शर्तें पूरी नहीं होती तो ठेकेदार पर एक हजार रुपये फाइन। प्रति मुलाजिम या प्रति दिन के हिसाब से इस पर कोई स्पष्टीकरण नहीं है। आरके गर्ग के मुताबिक एमसी ठेकेदार से कांट्रेक्ट साइन कर व मनमानी शर्तें बनाकर पल्ला नहीं झाड़ सकती। कई मुद्दे पहले भी उठे हैं और आगे भी उठते रहेंगे लिहाजा एमसी को स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। आरके गर्ग ने आशंका जताई कि केवल नगर निगम ही नहीं बल्कि अन्य विभागों में भी आउटसोर्सिंग पर ठेकेदार की मार्फ्त मुलाजिम रखे गए हैं। वहां भी प्रशासन ने इसी तरह की शर्तें लगाई लगती हैं। इन पर तुरंत गौर कर इसे मुलाजिम फ्रेंडली बनाना चाहिए। मुलाजिमों की ग्रेच्युटी, पीएफ व ईएसआई इत्यादि समेत अन्य सुविधाएं देना प्रिंसिपल इंप्लायर की जिम्मेदारी है। अगर कांट्रेक्टर एक्ट के मुताबिक शर्तें पूरी नहीं करता तो कांट्रेक्ट को निर्धारित कानून के मुताबिक तय करे। 

who is the real owner: किसी मुलाजिम से सिक्योरटी नहीं लेगा कांट्रेक्टर

कांट्रेक्ट में ये भी लिखा है कि कांट्रेक्टर किसी मुलाजिम से कोई सिक्योरटी नहीं लेगा। अगर कांट्रेक्टर ऐसा करता है तो उस पर एक हजार रुपये फाइन लगाया जाएगा। यह शर्त भी क्लीयर नहीं है कि फाइन प्रति मुलाजिम के हिसाब से होगा या महज एक हजार रुपये। डिफाल्ट करने की सूरत में कांट्रेक्टर का कांट्रेक्ट रद्द किया जा सकता है। उसे ब्लैक लिस्ट किया जा सकता है। समझौते में स्पष्ट है कि कांट्रेक्टर का मुलाजिमों पर सुपरवाइजरी कंट्रोल रहेगा। उन्हें कांट्रेक्टर आई कार्ड अपनी लागत पर उपलब्ध करायेगा। सारे वर्करों को यह गले में डाले रखने होंगे। मुलाजिम की पर्सनल डिटेल जिसमें पिता का नाम, ईएसआई नंबर इत्यादि का ब्यौरा होना चाहिए।

who is the real owner: इसलिए उठ रहा मुद्दा

असल में बीते दिनों सेक्टर 19 में गाड़ी के नीचे आकर एक आउटसोर्सिंग मुलाजिम की डैथ हो गई थी। उस मुलाजिम की मृत्यु के बाद उसे कुछ रकम नगर निगम या ठेकेदार की तरफ से मिली या नहीं, इसका कोई जवाब या पता नहीं दिया गया है। डैथ केस में वर्कर को क्या मिलेगा, इससे एमसी पल्ला नहीं झाड़ सकती।