कहां हो रही थी भारत पर असर पड़ने की बात, फिच ने तो स्‍टोरी ही बदल दी, ग्रोथ के अनुमान बढ़ा ट्रंप को दिया सदमा

Fitch Upgrades India Ratings

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Fitch Upgrades India Ratings: वैश्विक रेटिंग एजेंसी फिच ने मार्च 2026 को समाप्त होने वाले वित्त वर्ष के लिए भारत के विकास के अनुमान को बढ़ा दिया है. फिच ने जून के वैश्विक आर्थिक परिदृश्य (GEO) में 6.5% के अपने पूर्व अनुमान से संशोधित कर 6.9 प्रतिशत कर दिया है.

फिच रेटिंग ने भारत की जीडीपी वृद्धि को सराहते हुए बहुत कुछ लिखा है.

फिच रिपोर्ट के मुख्य बातें: घरेलू मांग विकास का प्रमुख चालक होगी. इसकी वजह ये है कि मजबूत वास्तविक आय गतिशीलता उपभोक्ता खर्च को बढ़ावा देगी. साथ ही ढीली वित्तीय स्थितियां निवेश को बढ़ावा देंगी.

गौर करें तो यह सुधार वित्त वर्ष 2025 की पहली और दूसरी तिमाही के बीच गतिविधियों की गति में अपेक्षा से कहीं अधिक तेजी के बाद किया गया है.

भारत की वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर दूसरी तिमाही 2025 में साल-दर-साल बढ़कर 7.8 प्रतिशत हो गई है. वहीं पहली तिमाही 2025 में यह 7.4 प्रतिशत थी. यह जून की GEO रिपोर्ट में फिच के 6.7 प्रतिशत के पूर्व अनुमान से काफी अधिक है.

जीडीपी वृद्धि को गति देने वाले क्षेत्र: यह वृद्धि मुख्य रूप से सेवा क्षेत्र की मजबूत वृद्धि के कारण हुई, जो पिछली तिमाही के 6.8 प्रतिशत से बढ़कर 9.3 प्रतिशत हो गई. व्यय के संदर्भ में, निजी और सार्वजनिक उपभोग व्यय, दोनों ने इस वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

चुनौतियां: फिच ने बाहरी दबावों से उत्पन्न चुनौतियों पर प्रकाश डाला. हाल के महीनों में अमेरिका के साथ व्यापार तनाव बढ़ा है. साथ ही वॉशिंगटन ने भारत से आयात पर 25 प्रतिशत का अतिरिक्त शुल्क लगाया है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में देश की आर्थिक गति धीमी होने की संभावना है, क्योंकि अर्थव्यवस्था अपनी क्षमता से थोड़ा ऊपर चल रही है.

वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में वार्षिक वृद्धि धीमी रहेगी, इसलिए हमारा अनुमान है कि वित्त वर्ष 27 में वृद्धि दर घटकर 6.3% रह जाएगी. अर्थव्यवस्था अपनी क्षमता से थोड़ा ऊपर चल रही है, इसलिए हमारा अनुमान है कि वित्त वर्ष 28 में वृद्धि दर घटकर 6.2% रह जाएगी.

जीएसटी सुधारों को बढ़ावा दे रही है फिच रिपोर्ट: फिच रेटिंग्स ने भारत के हालिया वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) सुधार को घरेलू खपत को बढ़ावा देने और बाहरी चुनौतियों के बावजूद देश की आर्थिक वृद्धि में योगदान देने वाला एक महत्वपूर्ण कारक बताया है.

रेटिंग एजेंसी ने वित्त वर्ष 2025-26 (FY26) के लिए भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि अनुमान को संशोधित कर 6.9% कर दिया है, जो पहले के 6.5% के अनुमान से अधिक है. यह वृद्धि मुख्यतः जीएसटी सुधारों और पहली तिमाही में अपेक्षा से बेहतर प्रदर्शन के कारण हुई है.

22 सितंबर से लागू हुए इस सुधार से 12% और 28% के जीएसटी स्लैब को कम करके और उनकी जगह 5% और 18% की कम दरों को लागू करके कर संरचना को सरल बनाने की उम्मीद है. इस कदम से कई प्रकार की वस्तुओं की लागत कम होने, घरेलू खपत को बढ़ावा मिलने और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है. खासकर ऑटोमोबाइल, निर्माण और स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में.

बढ़ी हुई खपत से प्रेरित जीडीपी वृद्धि: संशोधित जीडीपी वृद्धि पूर्वानुमान इस उम्मीद को दर्शाता है कि जीएसटी सुधार का उपभोक्ता खर्च पर महत्वपूर्ण सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. विभिन्न क्षेत्रों में वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें कम करके, सरकार का लक्ष्य विशेष रूप से मध्यम और निम्न आय वाले परिवारों के लिए प्रयोज्य आय बढ़ाना है. यदि कंपनियां कर बचत का लाभ उपभोक्ताओं तक पहुंचाती हैं, तो ऑटोमोबाइल, फार्मास्यूटिकल्स और निर्माण सामग्री की मांग बढ़ने की उम्मीद है, जिससे आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिल सकता है.

प्रमुख क्षेत्रों को बढ़ावा:

ऑटोमोबाइल: मारुति सुजुकी और टाटा मोटर्स जैसी कंपनियों के नेतृत्व में ऑटो क्षेत्र में कीमतों में कमी से यात्री और वाणिज्यिक दोनों वाहनों की मांग बढ़ने की उम्मीद है. इससे बिक्री में वृद्धि हो सकती है और आर्थिक विकास में योगदान मिल सकता है, खासकर स्टील और अन्य ऑटो कंपोनेंट्स पर निर्भर क्षेत्रों में.

निर्माण और सीमेंट: सीमेंट और निर्माण सामग्री पर जीएसटी में कमी से निर्माण लागत कम होने की उम्मीद है. इसका लाभ अल्ट्राटेक सीमेंट और लार्सन एंड टुब्रो जैसी कंपनियों को होगा. इससे बुनियादी ढांचे के विकास की मांग बढ़ने की उम्मीद है, जिससे निर्माण क्षेत्र में जीडीपी वृद्धि में योगदान मिलेगा.

फॉर्मास्युटिकल: निजी स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम पर जीएसटी हटाने से स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच बढ़ सकती है, खासकर ग्रामीण और निचले स्तर के शहरों में. इससे घरेलू दवा बाजार में मांग बढ़ेगी. इससे निर्यात पर संभावित अमेरिकी टैरिफ से उत्पन्न जोखिमों को कम करने में मदद मिलेगी.

राजकोषीय घाटे के संभावित जोखिम: हालांकि इस सुधार से जीडीपी वृद्धि को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है, लेकिन इससे सरकारी राजस्व में भी थोड़ी कमी आ सकती है, जिसकी अनुमानित राजकोषीय लागत सालाना जीडीपी का लगभग 0.2% है. इससे अल्पावधि में राजकोषीय घाटे को कम करने के प्रयास और जटिल हो सकते हैं.

हालांकि, फिच रेटिंग्स का अनुमान है कि भारत सरकार वित्त वर्ष 26 के लिए सकल घरेलू उत्पाद के 4.4% घाटे के राजकोषीय लक्ष्य को पूरा करने के लिए अपनी व्यय प्राथमिकताओं को समायोजित करेगी. इस बीच, जीएसटी प्रणाली के सरलीकरण से कर अनुपालन में सुधार होने और अंततः राजस्व घाटे की कुछ भरपाई होने की उम्मीद है.

दीर्घकालिक आर्थिक दृष्टिकोण: इन संभावित राजकोषीय चुनौतियों के बावजूद, फिच भारत के दीर्घकालिक आर्थिक दृष्टिकोण को लेकर आशावादी बना हुआ है. जीएसटी सुधार द्वारा लाए गए संरचनात्मक परिवर्तनों से कर प्रणाली को सुव्यवस्थित करके, अनुपालन में सुधार करके और व्यवसायों पर प्रशासनिक बोझ कम करके आर्थिक दक्षता में वृद्धि होने की संभावना है. यह बदले में, आने वाले वर्षों में सतत जीडीपी वृद्धि को बढ़ावा दे सकता है.

फिच ने यह भी कहा कि ये सुधार उपभोग को प्रोत्साहित करने और बढ़ते अमेरिकी टैरिफ और वैश्विक व्यापार अनिश्चितताओं जैसे बाहरी दबावों के प्रति भारत की अर्थव्यवस्था को अधिक लचीला बनाने के व्यापक प्रयासों के अनुरूप हैं.

विकास को बढ़ावा देने वाला सुधार: जीएसटी सुधार भारत की जीडीपी वृद्धि के लिए एक महत्वपूर्ण चालक साबित होंगे, और उपभोग में उल्लेखनीय वृद्धि से विकास पूर्वानुमान में वृद्धि की संभावना है। हालांकि तात्कालिक राजकोषीय लागत चुनौतियाँ पेश कर सकती है, लेकिन भारत की कर प्रणाली को सरल बनाने और अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों को प्रोत्साहित करने के दीर्घकालिक लाभ इन चिंताओं से कहीं अधिक हैं. जैसे-जैसे देश नए कर ढांचे के अनुकूल होता जाएगा, भारत की आर्थिक वृद्धि मज़बूत बनी रहने की संभावना है. इससे बाहरी दबावों के बावजूद इसका निरंतर विस्तार संभव होगा.