Today is the 55th death anniversary of freedom fighter Veer Savarkar

स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर की आज है 55वीं पुण्यतिथि, पीएम मोदी ने उन्हें यूं किया नमन

Today is the 55th death anniversary of freedom fighter Veer Savarkar

Today is the 55th death anniversary of freedom fighter Veer Savarkar

Veer Savarkar Death Anniversary: अक्सर ये सवाल पूछे जाते रहे हैं कि प्रबल राष्ट्रवादी और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर सावरकर यानि विनायक दामोदर सावरकर का निधन कैसे हुआ था। अगर आप इंटरनेट पर जाइए तो आपको इस तरह के तमाम सवाल दिखेंगे। आमतौर पर माना जाता है कि उन्होंने खुद अपने लिए इच्छा मृत्यु जैसी स्थिति चुनी थी। उनका निधन 26 फरवरी 1966 को हुआ था। उससे एक महीने पहले से उन्होंने उपवास करना शुरू कर दिया था। माना जाता है कि इसी उपवास के कारण उनका शरीर कमजोर होता गया और फिर 82 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया। उनके जीवन के बारे में कुछ तथ्य ये भी है। 

वीर सावरकर का जीवन 
उनका पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर था। बचपन से ही वे पढ़ाकू थे। बचपन में उन्होंने कुछ कविताएं भी लिखी थीं। उन्होंने शिवाजी हाईस्कूल, नासिक से 1901 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। आजादी के लिए काम करने के लिए उन्होंने एक गुप्त सोसायटी बनाई थी, जो 'मित्र मेला' के नाम से जानी गई। 1905 के बंग-भंग के बाद उन्होंने पुणे में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई। फर्ग्युसन कॉलेज, पुणे में पढ़ने के दौरान भी वे राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत ओजस्वी भाषण देते थे।

वीर सावरकर पुण्यतिथि

सावरकर के नाम पर विवाद
28 मई, 1883
को एक मराठी ब्राह्मण परिवार में जन्मे सावरकर हिंदू राष्ट्र और अखंड भारत के अपने नजरिए के लिए जाने जाते हैं। भारत छोड़ो आंदोलन और दूसरे विश्व युद्ध के दौरान सावरकर हिंदू महासभा के अध्यक्ष थे। वर्ष 1937 से 1942 तक वीर सावरकर अखिल भारत हिंदू महासभा के 15वें राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे थे। राजनेता और लेखक, सावरकर का नाम भारत छोड़ो आंदोलन का खुलकर विरोध करने के कारण उनके निधन के पांच दशक बाद भी विवाद खड़ा करता है। उन्हें अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में सेलुलर जेल में सजा काटने के लिए भी जाना जाता है। 

Veer Savarkar Death Anniversary | पुण्यतिथि: निधन के एक महीने पहले से वीर  सावरकर ने त्याग दिया था खाना! चुनी थी इच्छा मृत्यु जैसी स्थिति | Navabharat  (नवभारत)

उनका कहना था कि जीवन का मिशन पूरा हो गया
सावरकर ने तर्क दिया था कि एक निराश इंसान आत्महत्या से अपना जीवन समाप्त करता है लेकिन जब किसी के जीवन का मिशन पूरा हो चुका हो और शरीर इतना कमजोर हो चुका हो कि जीना असंभव हो तो जीवन का अंत करने को स्व बलिदान कहा जाना चाहिए। सावरकर ने अपनी मृत्यु से दो साल पहले 1964 में ‘आत्महत्या या आत्मसमर्पण’ नाम का एक लेख लिखा था। इस लेख में उन्होंने अपनी इच्छा मृत्यु के समर्थन को स्पष्ट किया था। इसके बारे में उनका कहना था कि आत्महत्या और आत्म-त्याग के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर होता है।