अच्छे कर्म करने के लिए बुद्धि और संस्कार अच्छे होने चाहिए : श्रीब्रह्मर्षि

अच्छे कर्म करने के लिए बुद्धि और संस्कार अच्छे होने चाहिए : श्रीब्रह्मर्षि

Shri Brahmarshi

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श्रीसिद्धेश्वर तीर्थ तिरुपति के संस्थापक पूज्य गुरुदेव का नववर्ष पर मंगलमय सन्देश.. 

"हर वर्ष, हर दिन, हर क्षण यही कहता है, स्वयं को बेहतर करो"


तिरुपति। Shri Brahmarshi: नव वर्ष - 2023 का शुभागमन सभी के मंगलमय हो... शुभ हो..., कल्याणकारी हो..., आत्मा की शक्ति को जगाने वाला हो..., सबके हृदय में शुभ संकल्पों का उदय हो..., सबके मन पवित्र हों...। सुख, शांति, समृद्धि, शक्ति, आनंद, प्रेम, दया, करुणा के भावों का चहुं ओर उजाला हो..., दु:ख, द्वेष, घृणा, अशांति, ईर्ष्या, क्रोध, मद, मत्सर, लोभ, अहंकारादि नकारात्मकता का शमन हो..., नयी ऊर्जा से महान उद्देश्यों की प्राप्ति के पथ पर सब आगे बढ़ें। सबका जीवन सार्थक हो..., सफल हो..., आनंदमय हो। यह आशीर्वादी संदेश श्री सिद्धेश्वर तीर्थ तिरुपति के संस्थापक शिवावतार सिद्धेश्वर श्रीब्रह्मर्षि गुरुदेव ने नववर्ष पर दिया। उन्होंने कहा कि नववर्ष - आत्मावलोकन का अवसर अपने परिक्रमा पथ पर वर्षभर में पृथ्वी सूर्य का एक चक्कर और छह ऋतुएं क्रम से एक आवृत्ति पूर्ण कर लेती हैं। कालचक्र क्षण भर को नहीं रुकता। इसी तरह पृथ्वी पर मानव जीवन की सार्थकता भी इसी बात में है कि आत्मा के विकास की यात्रा हर क्षण उर्ध्वगामी हो। हम आत्मावलोकन करें कि बीते वर्ष में मेरी आत्मा का विकास हुआ या ह्रास। मेरे हृदय की पवित्रता बढ़ी या फिर कम हुई। नव वर्ष पर हमें यह अनुसंधान भी करना होगा कि एक वर्ष के अंतराल में मैंने अपने विचारों व कार्यों से प्रेम, अहिंसा, दया, करुणा, आनंद, त्याग व परोपकार के बीज बोये या बैर-विरोध, घृणा, द्वेष, क्रोध, हिंसा की कालिमा से वातावरण को बदरंग किया? ब्रह्मर्षि गुरुदेव ने कहा कि आंतरिक शांति व सबके कल्याण की कामना की कसौटी पर मेरी आत्मा प्रफुल्लित हुई या सिकुड़ गयी। उन्होंने बताया कि हर वर्ष, हर दिन, हर क्षण यही कहता है, स्वयं को बेहतर करो। पूज्य गुरुदेवजी का संदेश है कि जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि : "जैसी हमारी जीवन और जगत् के प्रति दृष्टि होगी, सोच होगी, जीवन और जगत में वैसे ही प्रतिफल प्राप्त होंगे। हमारी सोच व चिंतन की तरंगें जिस भावना से संयुक्त होकर वातावरण में जाती हैं, वैसे ही परिणाम उत्पन्न होते हैं। किसी के प्रति घृणा, कपट, द्वेष या हीन सोच रखने से कभी भी उसके मन में हमारे लिए प्रेम, आदर, सम्मान के परमाणु उत्पन्न नहीं होंगे। उन्होंने बताया कि ब्रह्मांड का नियम है कि प्रत्येक क्रिया की एक समान तद्नुरूप प्रतिक्रिया होती है।' विचार ही कर्मों के बीज हैं, इसलिए शुद्ध विचारों के बीज बोएं ताकि श्रेष्ठ फल प्राप्त हो। सुंदर फसल चाहिए तो अच्छे सुंदर कर्मों के बीज बोने पड़ेंगे। तुम कर्मपथ पर प्रेम, करुणा, सदाशयता, परोपकारिता और तप-त्याग के फूल बिखेरोगे तो परमात्मा तुम्हारे जीवन को खुशियों के फूलों से भर देगा। उन्होंने बताया कि परमात्मा किसी का उधार नहीं रखता है। अच्छे कर्म करने के लिए बुद्धि और संस्कार अच्छे होने चाहिए। प्रभु कहते हैं कि जब तुम सत् का संग करते हो, महापुरुषों का चिंतन व कथा-श्रवण करते हो, तो बुद्धि स्वयंमेव स्वच्छ हो जाती है। वे बोले कि हम नये वर्ष की मंगल वेला पर यह दृढ़ संकल्प लें कि हमेशा मन, वाणी और शरीर से शुभ कर्मों के बीज बोएंगे। अन्न का एक कण और समय का एक क्षण भी व्यर्थ नहीं जाने देंगे। तूफान या आंधी चलने पर हम अपने घर के किवाड़ बंद कर देते हैं कि धूल-मिट्टी अंदर न आ जाए। ऐसे ही अधर्म, अनाचार, पाप की आंधी चलने पर अपने मन के किवाड़ों को बंद कर दीजिए ताकि मन दूषित न होने पाये। यह जीवन हमें परमात्मा का दिया हुआ सुंदर उपहार है और हम इस जीवन को जिस तरह से जीते हैं, वह परमात्मा को हमारा रिटर्न गिफ्ट होगा तो इस भाव को हमें नव वर्ष के आगाज पर क्रियान्वित करने का संकल्प लेना चाहिए। स्वयं ऊपर उठने व औरों को ऊपर उठाने में प्रेरक एवं सहायक बनने की सीख देते हुए उन्होंने कहा कि जीवन है तो सुख के साथ दु:ख भी आयेंगे। दुख के बिना सुख महत्वहीन है, फिर दुख तुम्हें निखारने, मजबूत और शुद्ध बनाने के लिए आते हैं। दुख में मनुष्य अपनी भूलों, त्रुटियों, गलतियों को सुधार कर परमात्मा की ओर कदम बढ़ाता है। ब्रह्मर्षि गुरुदेव ने कहा कि जिन भावों, स्मृतियों और कारणों से मन में वेदना, दुख और ग्लानि उत्पन्न होती है, उनको जड़मूल से उखाड़कर नव वर्ष में प्रवेश करना होगा। प्रतिकार का यथेष्ट बल होने पर भी जो दूसरों को क्षमा कर देता है वह भीरू नहीं, वीर होता है। उन्होंने यह भी बताया कि क्षमा वीरों का आभूषण है। इस आभूषण को नव वर्ष पर हम जरूर धारण करना चाहिए।

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उन्होंने बताया कि प्रत्येक मुस्कुराहट फूल बनकर परमात्मा के चरणों पर चढ़ जाती है। जो सबसे मुस्कुराहटपूर्ण वाणी-व्यवहार करता है, जिसका निश्छल हृदय है, उसके भाव रूपी प्रेमपुष्प निरंतर परमात्मा के चरणों पर चढ़ते रहते हैं। उस जन पर प्रभु हर पल प्रसन्न रहते हैं।

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दूषित विचारों से अपने मन-मंदिर को अपवित्र न होने दें। परमात्मा सूक्ष्म रूप से पवित्र हृदय में विराजते हैं। यदि हृदय अपवित्र होगा तो वहां प्रभु क्षण भर भी नहीं टिकेंगे। तो नव वर्ष पर हमारा यह भी संकल्प हो कि किसी भी परिस्थिति में हम अपने मन-मंदिर को दूषित नहीं होने देंगे। यदि हम अपना प्रत्येक कर्म परमात्मा को अर्पित करने की आदत बना लें तो फिर अपवित्र कर्म हमसे कभी होगा ही नहीं। क्योंकि अपवित्र वस्तु किसी मेहमान या सामान्य जन को भी नहीं दी जाती तो परमात्मा को तो सुंदर से सुंदर, स्वच्छ से स्वच्छ, पवित्र से पवित्र वस्तु ही कोई जन अर्पित करना चाहेगा। उन्होंने कहा कि करो कर्म ऐसा मनुज जन्म लेकर कि जीवन महामृत्यु से जीत जाए। खिंचे चित्र ऐसा समय के पटल पर, तेरे बीत जाने पर जग गीत गाए।