There should be talk of sovereignty of the country, not any one state

Editorial: किसी एक राज्य नहीं, देश की संप्रभुता की होनी चाहिए बात

Edit

There should be talk of sovereignty of the country, not any one state

There should be talk of sovereignty of the country, not any one state कर्नाटक विधानसभा चुनाव में इस बार भाजपा एवं कांग्रेस के बीच जैसी तकरार देखने को मिली है, वह अप्रत्याशित है। कनार्टक में इस समय भाजपा सत्ता में है और वह फिर से सत्तासीन होने के लिए कसरत कर रही है। वहीं कांग्रेस का मंतव्य भी राज्य में सत्ता हासिल करने का है। हालांकि इस बार के चुनाव में जिस प्रकार की राजनीति और बयानों के बाण चले हैं, उन्हें देखकर लगता है कि राजनीति में मूल्य अब खत्म हो चुके हैं और अपने निहित लक्ष्यों को हासिल करने के लिए राजनेता किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। इसी प्रदेश में प्रधानमंत्री के प्रति अपशब्द बोले जाते हैं, वहीं सत्ताधारी पार्टी की ओर से विपक्ष की नेता के संबंध में अनर्गल प्रलाप होता है।

विचारों की यह विषाक्तता अमर बेल की भांति आगे से आगे बढ़ती जाती है और वे विषय जिन पर वास्तव में मंथन की जरूरत है, पीछे छूट जाते हैं। आजादी के बाद जब लोकतंत्र आगे बढ़ रहा था और चुनाव हो रहे थे, तो वे स्वतंत्रता सेनानी जिन्होंने किसी न किसी रूप में आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया, यह जानकर बेहद दुखी होते थे कि राजनीतिक दल और उनके उम्मीदवार किस प्रकार के हल्के बयान देकर और आरोप लगाकर जनमत तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं। यह महज शुरुआत थी, इसके बाद हर चुनाव में आरोपों के प्रलाप बढ़ते गए हैं, जनता भी उन अनावश्यक बातों, बयानों की बयार में बह जाती है।

पिछले कई चुनावों में एक क्षेत्र विशेष की अस्मिता का सवाल उठता रहा है। पश्चिमी बंगाल में भाजपा व दूसरे दलों को टीएमसी ने बाहरी करार दिया था। इसका व्यापक विरोध हुआ जोकि आवश्यक भी है, हालांकि अब कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के एक शब्द ने विवाद का रूप ले लिया है। भारत राज्यों का संघ है, जब भी संप्रभुता की बात होती है तो यह राष्ट्रीय स्तर पर होती है।

देश में क्या कोई राज्य संप्रभु हो सकता है? हालांकि कांग्रेस की डिक्शनरी में कर्नाटक वह राज्य है, जिसकी संप्रभुता और अखंडता को खतरा पैदा करने की अनुमति कांग्रेस किसी को नहीं देगी। कांग्रेस ने पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी के हवाले से यह ट्वीट किया था। अब इसकी शिकायत भाजपा ने चुनाव आयोग से की है, जिसका संज्ञान लेते हुए आयोग ने कांग्रेस से जवाब मांगा है। कांग्रेस का जवाब चाहे कुछ भी आए लेकिन यह ताज्जुब की बात है कि ऐसे बयान बगैर सोचे-समझे आखिर कैसे दे दिए जाते हैं। कर्नाटक भारत से अलग नहीं है, उसकी जनता देश की बाकी जनता की तरह ही है। अब तो जम्मू-कश्मीर को भी अलग दर्जे का अनुच्छेद 370 समाप्त किया जा चुका है। अब पूरा देश एक संविधान के तहत शासित है, उसी संविधान ने उसे राज्यों में विभाजित किया है। तब किसी एक राज्य को दूसरे राज्यों से अलग बताते हुए उसकी जनता के समक्ष ऐसे विचार रखना निश्चित रूप से उसे भडक़ाने और नागरिकों को विभाजित करने की कार्रवाई है।

इस बयान के मायने यह हैं कि कांग्रेस कर्नाटक पर अपना अधिकार जता रही है, उसका कहना है कि राज्य में केवल उसका वर्चस्व ही होना चाहिए। क्या कांग्रेस का यह रवैया पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के रवैये से मेल नहीं खाता, जोकि बंगाल को अपनी  वसीयत की भांति संचालित कर रही हैं। वास्तव में यह लोकतंत्र एवं भारत गणराज्य की मूल भावना के खिलाफ है। ऐसी सोच सरदार वल्लभ भाई पटेल की उस सोच के विपरीत है, जिन्होंने देश में सैकड़ों छोटी-छोटी रियासतों को तोडक़र उन्हें भारत गणराज्य का हिस्सा बनने को बाध्य किया था। आज अगर भारत टुकड़ों में बंटा होता तो वह एक निर्बल क्षेत्र होता। ऐसे में मौजूदा समय में अगर कोई विभाजनकारी सोच रखता भी है तो उसे कानून सजा मिलनी चाहिए। गौरतलब है कि दिल्ली के दिल में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में कभी भारत तेरे टुकड़े होंगे...के नारे लगे थे। उन नारों को लगाने के आरोपी आज कांग्रेस में राजनीति कर रहे हैं।

पार्टी ने उनसे कभी पूछा भी नहीं की आखिर ऐसे नारे क्यों लगाए और लगवाए गए। देश की एकता और अखंडता को खतरा पहुंचाने के लिए ही यह नारेबाजी की गई थी, ऐसे लोग अब भी सक्रिय हैं। क्या यह देश ऐसे नारेबाजों की वजह से चलेगा। गौरतलब है कि इसी विधानसभा चुनाव में एक राजनीतिक दल को दुनिया की सबसे भ्रष्ट पार्टी करार दिया गया है। इसके संबंध में भी आयोग ने नोटिस जारी किया है। इन सब आरोप-प्रत्यारोप के बीच यह साबित हो गया है कि चुनावी राजनीति पूरी तरह से मूल्यहीन हो चुकी है और इसके स्तर को सुधारे जाने की जरूरत है। लेकिन इसकी शुरुआत करेगा कौन। धर्म, जाति-संप्रदाय, क्षेत्र, भाषा के नाम पर ऐसे विवाद खड़े किए जा रहे हैं, जिन्होंने मूल मुद्दों को छिपा दिया है। जनता को बहस नहीं, विकास के ठोस रोडमैप की जरूरत है। 

यह भी पढ़ें:

Editorial: जालंधर लोकसभा उपचुनाव में साबित होगा दलों का जनमत सामर्थ्य

यह भी पढ़ें:

Editorial: पहलवान न्याय की मांग जारी रखें, लेकिन व्यवस्था से अलग होकर नहीं