मातृभाषा का उपयोग कर दलीलें सुनने में कोई हर्ज नहीं

मातृभाषा का उपयोग कर दलीलें सुनने में कोई हर्ज नहीं

मातृभाषा का उपयोग कर दलीलें सुनने में कोई हर्ज नहीं

मातृभाषा का उपयोग कर दलीलें सुनने में कोई हर्ज नहीं

   ( बोम्मा रेडड्डी )


  अमरावती :: ( आंध्र प्रदेश )  के उच्च न्यायालय के बेंच ने कहा न्यायालय में मातृभाषा का उपयोग कर दलीलें सुनने में कोई हर्ज नहीं है। अग्न्मपूड़ी के गुरु भास्कर राव ने विशाखापत्तनम में भवन निर्माण की अनुमति के संबंध में 2019 में उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई सिंगल न्यायाधीश ने की। न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता से मामले के बारे में पूछा और तब तक अंग्रेजी में दलीलें सुनने वाले वकील ने न्यायाधीश को तेलुगु में जवाब दिया। उनके जवाब से न्यायाधीश नाराज हो गए और याचिका को आगे की कार्यवाही में जाने के बिना खारिज कर दिया गया यह कहते हुए कि उच्च न्यायालय में तेलुगु भाषा में सुनवाई स्वीकार्य नहीं है। ..

 वकील ने तुरंत बिना शर्त माफीनामा जारी किया। हालांकि न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता को 25,000 रुपये का जुर्माना भरने का निर्देश दिया। याचिकाकर्ता ने जुर्माने के भुगतान को लेकर मुख्य न्यायाधीश ट्रिब्यूनल के समक्ष अपील दायर किया। अपील पर हाल ही में मुख्य न्यायाधीश प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति मल्लावोलू सत्यनारायण मूर्ति ने सुनवाई की। पीठ ने कहा कि एकल न्यायाधीश ने आदेशों की जांच की और वकील ने केवल एक प्रश्न का तेलुगु में उत्तर दिया जबकि वकील ने पूरे मामले में तेलुगु में बहस नहीं की थी हालांकि मातृभाषा में तर्क सुनना गलत नहीं है और इसलिए यह याचिका रद्द कर दिया गया।