General election

Editorial: तो आरक्षण व जाति के आधार पर लड़े जाएंगे आम चुनाव

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General election: कांग्रेस 2024 के आम चुनाव में जीत हासिल करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। पार्टी की यह रणनीति सत्ताधारी भाजपा के लिए जहां चुनौतीपूर्ण है, वहीं अन्य विपक्षी दलों को भी चौंका रही है, खासकर उन दलों को जोकि अभी तक जातीय राजनीति ही करते आए हैं। पार्टी की कार्यसमिति ने अपने चुनावी एजेंडे पर मुहर लगाई है, जिसमें प्रमुख घोषणा यही है कि आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा को खत्म करेंगे। इस समय आरक्षण की अधिकतक सीमा 50फीसदी रखी गई है, लेकिन कांग्रेस का कहना है कि उसकी सरकार आने पर इस सीमा को आगे बढ़ा देंगे। पार्टी का यह ऐलान एससी-एसटी, ओबीसी के लिहाज से एक बड़ी बात है, क्योंकि आजादी के बाद से कांग्रेस इन्हीं वर्ग के जरिये अपनी सत्ता कायम करती आई है और अब जब देश में जातिगत जनगणना की बात हो रही है, तब उसने एककदम आगे बढक़र इस वादे को इन वर्गों के समक्ष परोस दिया है।

पार्टी ने इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित किया है, यानी वह  इस ऐलान को पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव और फिर अगले वर्ष लोकसभा चुनाव में भुनाएगी। निश्चित रूप से यह एक लोकलुभावन मुद्दा है, लेकिन जब जातिगत आरक्षण को खत्म करके इसे आर्थिक आधार पर देने की मांग उठ रही है, तब कांग्रेस का यह ऐलान कितना वाजिब है, इस पर भी चर्चा होने की जरूरत है। मोदी सरकार विधानसभाओं और संसद में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण का कानून निर्मित कर चुकी है।

इस कानून को लेकर विपक्ष का सरकार पर आरोप है कि यह महज महिला वर्ग को लुभाने के लिए है, क्योंकि अभी परिसीमन भी नहीं हुआ है। और अगर सरकार इतनी ईमानदार होती तो इसे अभी से अमल में लाती। जाहिर है, राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है। विपक्ष के सामने केंद्र सरकार की ऐसी ही योजनाओं को काउंटर करने के लिए कुछ अलग पेश करने की चुनौती है। जिसे वह जातीय जनगणना के जरिये और अब आरक्षण की सीमा को बढ़ा कर सामने ला रही है। बिहार में जाति जनगणना की रिपोर्ट जारी की गई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्ष के इंडिया गठबंधन में प्रतिभागी हैं। हालांकि कांग्रेस ने आरक्षण सीमा को बढ़ाने के ऐलान से पहले अपने गठबंधन सहयोगियों से चर्चा की है या नहीं, यह स्पष्ट नहीं हो पाया है। लेकिन इतना तय है कि कांग्रेस का यह कदम उसके सहयोगी दलों के लिए भी भौचक्का करने वाला है।

कांग्रेस ने इसकी भी घोषणा की है कि सत्ता में आने पर कांग्रेस जातिवार जनगणना कराने के बाद देशव्यापी आर्थिक सर्वे भी कराएगी। यानी पार्टी जातीय और आर्थिक आधार दोनों तरह से आरक्षण के मुद्दे पर चुनाव लडऩे को तैयार है।  गौरतलब है कि देश में जातिगत जनगणना की मांग इस आधार पर जोर पकड़ रही है कि आधिकारिक रूप से जातिगत आंकड़ों की घोषणा करके उसके मुताबिक योजनाएं बनाई जाएं। राजद प्रमुख लालू यादव इसकी मांग उठाते आ रहे हैं।

मौजूदा हालात में यह तय है कि इस बार चुनाव में जाति का कार्ड भरपूर चलने वाला है। भारत की राजनीति को जाति मुक्त करने  की बात लगातार होती है, लेकिन चुनाव के समय जाति ही वह प्रमुख हथियार होता है, जिसे राजनीतिक दल अपने विरोधियों पर चलाते हैं। पूरा देश जाति और धर्म में बंटा हुआ नजर आता है। अब सत्ताधारी दल की ओर से जब ओबीसी को आगे करने के संकेत दिए जा रहे हैं, तब कांग्रेस की ओर से एससी,एसटी को आगे कर दिया गया है। राहुल गांधी का तो आरोप ही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ओबीसी की भागीदारी के मुद्दे पर ध्यान बंटाने के लिए मुख्य मुद्दे पर बात नहीं कर रहे। उनका यह भी आरोप है कि प्रधानमंत्री देश की सामाजिक और आर्थिक हकीकत का एक्सरे कराने से डर रहे हैं। दरअसल, सत्ता में आकर कोई भी राजनीतिक दल कितनी ही बेहतर योजनाएं बना ले लेकिन इस जगह तक पहुंचने के लिए उसे जाति और धर्म की सीढिय़ां ही चढऩी पड़ती हैं। यही इस समय हो रहा है।

तथ्य हैं कि बीते दो दशक के दौरान भाजपा ने खुद को उच्च वर्ग से बाहर करके पिछड़ों, अजा और अन्य पिछड़ा वर्ग की पार्टी के रूप में स्थापित कर लिया है। उसने अपने स्वरूप में ऐसा परिवर्तन किया है कि उसे सवर्णों का भी साथ मिल रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने भाषणों में ओबीसी के लिए योजनाओं का खुलकर जिक्र करते हैं। वैसे यह समझे जाने की जरूरत है कि आखिर देश का विकास क्या अब जातिगत आंकड़ों के आधार पर ही होगा। आरक्षण के बूते कुछ वर्गों में क्रीमीलेयर तैयार हो गए हैं, ऐसे में जाति की बजाय आर्थिक आधार पर आरक्षण की जरूरत को समझा जाना चाहिए। हालांकि व्यापक दृष्टिकोण इसकी भी मांग करता है कि देश को जाति और धर्म के कुचक्र से आजादी दिलाई जाए। 

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