The issue of restaurants and clubs in Sector 7 and 26-

Chandigarh: सेक्टर 7 व 26 के रेस्टोरेंट व क्लबों का मसला: बैकयार्ड कवर करने पर प्रशासन व मालिक आमने-सामने

The issue of restaurants and clubs in Sector 7 and 26

The issue of restaurants and clubs in Sector 7 and 26

The issue of restaurants and clubs in Sector 7 and 26- चंडीगढ़ (साजन शर्मा) प्रशासन ने सेक्टर 7 और 26 में बने रेस्टोरेंट व क्लबों के खिलाफ बिल्डिंग वायलेशन को लेकर सख्त रुख अखित्यार कर रखा है। यहां बने अधिकांश क्लबों ने पिछडे कोर्टयार्ड को कवर कर रखा है जिसे एस्टेट ऑफिस बिल्डिंग वायलेशन बता रहा है। इसी को लेकर प्रशासन और इन क्लब और रेस्टोरेंट मालिकों के बीच टसलबाजी चल रही है। हाईकोर्ट ने कुकूना क्लब के मामले में आदेश दिया कि एडवाइजर से इस मसले को लेकर मिलें। प्रशासन को भी तीन वर्किंग डे में इसका हल निकालने को कहा गया था। अदालत की ओर से कहा गया कि अगर वहां इसका निपटारा नहीं होता तो कोर्ट की शरण ले सकते हैं।

बीते बुधवार को हाईकोर्ट ने कुकूना के मालिकों को यह आदेश दिया था। इस मसले को निपटाने के लिए अब प्रशासन के पास सोमवार का आखिरी दिन है। रेस्टोरेंट एवं बॉर एसोसिएशन के प्रधान राजीव धवन का कहना है कि उन्हें उम्मीद है कि यहां अपना काम कर रहे 38 रेस्टोरेंट व क्लबों को प्रशासन के फैसले से कुछ राहत मिलेगी। अगर निर्णय उनकी फेवर में न हुआ तो सभी रेस्टोरेंट व क्लब मालिक क्रमवार भूख हड़ताल शुरू करेंगे।

उन्होंने बताया नीड बेस्ड चेंज को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सांसद किरण खेर की अगुवाई में जो कमेटी गठित कर रखी है उसने अपने सुझाव रेस्टोरेंट व क्लब मालिकों की फेवर में दिये हैं। किरण खेर ने बताया कि रेस्टोरेंट व क्लब मालिकों के अनुकूल सुप्रीम कोर्ट को लिख दिया है। भाजपा, चंडीगढ़ के पूर्व प्रधान संजय टंडन भी हमारे मसले को निपटाने के लिए भरसक प्रयास कर रहे हैं। केंद्रीय मंत्री अमित शाह से भी मिलने की योजना है। राजीव धवन के मुताबिक देखते हैं कि नतीजा क्या रहता है। उन्होंने बताया कि प्रशासन ने एक कंपाउडेबल फीस बना रखी है। एक डिजाइन तैयार किया है जिस के अनुसार ये रेस्टोरेंट व क्लब मालिक बैकयार्ड में कवर कर सकते हैं। इसकी कंपाउडेबल फीस 2 करोड़ 70 लाख रुपये तय कर रखी है।

फायर विभाग को आपत्ति नहीं

प्रशासन इन रेस्टोरेंट व क्लब मालिकों से सबसे पहले तो चाहता है कि फायर व पर्यावरण विभाग से एनओसी हो। फायर विभाग ने एनओसी देने को लेकर उनकी फेवर में लिख दिया है क्योंकि कई यूनिटों ने ईडीपी प्लांट लगा दिया है। एक शर्त प्रशासन की है कि पीछे से इन यूनिटों का ब्रिक लुक नजर आना चाहिए। यानि जो बैकयार्ड कवर किया है, उसकी न तो दीवारें उठाई जाएं और न ही उस अस्थाई स्ट्रक्चर के ऊपर छत हो। रेस्टोरेंट व क्लब एसोसिएशन के प्रधान राजीव धवन के मुताबिक बारिश, धूप व मच्छर इत्यादि से बचने के लिए यह छत बनानी निहायत जरूरी है जिस पर एस्टेट ऑफिस को आपत्ति है। ओपन एरिया वैसे भी फ्लोर एरिया रेशो में काउंट नहीं होता। दोनों इंडस्ट्रियल एरिया सहित एस्टेट ऑफिस ने इस तरह की राहत रेस्टोरेंट व क्लब मालिकों को दे रखी है तो सेक्टर 26 व 7 में ऐसी राहत क्यों नहीं?

ये है मसला

सेक्टर 26 में इस वक्त करीब 38 क्लब व रेस्टोरेंट चल रहे हैं। यहां बैक साइड पर इन क्लब व रेस्टोरेंट मालिकों ने कोर्टयार्ड कवर कर लिया। एक-दो ओनर को छोडक़र अन्य ने जो एरिया कवर किया है वह स्थाई अतिक्रमण नहीं है। बावजूद इसके चंडीगढ़ एस्टेट ऑफिस को इस पर ऐतराज है। एस्टेट ऑफिस ने कई रेस्टोरेंट व क्लब मालिकों को यहां नियमों के मुताबिक किया अतिक्रमण हटाने का नोटिस भी दिया है। बीते दिनों कुकूना क्लब पर तो इसी अतिक्रमण को लेकर कार्रवाई भी कर दी गई जिसको लेकर क्लब हाईकोर्ट चला गया था। चूंकि एस्टेट ऑफिस की कार्रवाई के बाद क्लब मालिक ने एस्टेट ऑफिस से संबंधित फाइनेंस सेक्रेट्री के पास इस कार्रवाई को लेकर अपील की थी लेकिन वहां से कोई राहत न मिली तो हाईकोर्ट का रुख कर लिया। नियमों के तहत एडवाइजर की कोर्ट में भी एस्टेट आफिस की इस कार्रवाई को लेकर अपील की जा सकती थी जिसे कुकूना क्लब के मालिक ने फॉलो नहीं किया। यही वजह रही कि हाईकोर्ट ने एक तय प्रक्रिया के अनुसार क्लब मालिक को एडवाइजर के दरबार में अपील करने को कहा और अगले तीन वर्किंग डे में प्रशासन को निपटारे की हिदायत दी। आगामी सोमवार को तीसरा दिन बीत जाएगा। संभावना है कि इस मसले पर प्रशासन कोई फैसला ले।

यूटी के कुल जीएसटी व वैट का 30 प्रतिशत यहीं से

राजीव धवन के मुताबिक 25 हजार लोगों का ये क्लब व रेस्टोरेंट पेट भरते हैं। पांच हजार से ज्यादा इंप्लाइज सीधे सीधे यहां काम कर रहे हैं। इतना ही नहीं चंडीगढ़ प्रशासन को भी कुल यूटी के जीएसटी व वैट का करीब 30 प्रतिशत यहीं से हासिल होता है। रेस्टोरेंट में 18-18 प्रतिशत का जीएसटी रेवेन्यू सरकार के पास जाता है तो दूसरा 18 प्रतिशत ही वैट शराब के जरिये प्रशासन के पास पहुंचता है।