Right water project in chandigarh

Editorial: चंडीगढ़ में वाटर प्रोजेक्ट सही, पर भ्रष्टाचार की लीकेज पर लगे लगाम

Right water project in chandigarh

Right water project in chandigarh

Right water project in chandigarh- सिटी ब्यूटीफुल चंडीगढ़ (City Beautiful Chandigarh) में आबादी बढऩे के साथ ही जलसंकट भी बढ़ रहा है, जिसके निदान के लिए प्रशासन (Administration) की ओर से दिखाई जा रही संजीदगी सराहनीय है। समय रहते अगर योजनाएं बनें और उन पर काम पूरा हो जाए तो यही नागरिक सेवाओं में श्रेष्ठता का प्रतीक होता है। देश के स्वच्छता सर्वेक्षण में चंडीगढ़ की स्थिति सुधरी है जोकि संतोष की बात है, इसी तरह अब पानी की उपलब्धता 24 घंटे प्रदान करने के लिए प्रशासन ने फ्रांस के साथ जो समझौता किया है, वह भविष्य की चुनौतियों के मद्देनजर सही फैसला है।

इस प्रोजेक्ट पर चंडीगढ़ के प्रशासक बनवारी लाल पुरोहित (Chandigarh Administrator Banwarilal Purohit) की मौजूदगी में हस्ताक्षर किए गए हैं, जोकि अधिकारियों के लिए भी निगरानी का सबसे बड़ा संकेत है। उन्होंने प्रशासन (Administration) के अधिकारियों को कहा है कि इस प्रोजेक्ट का वैश्विक टेंडर लगाया जाना चाहिए, ताकि विदेशी कंपनियों को मौका मिले और कंपटीशन और मजबूत हो। इस तरह से पारदर्शिता बढ़ेगी। अगर वैश्विक टेंडर नहीं लगाया गया तो वे यहीं हैं और गड़बड़ी नहीं होने देंगे। वास्तव में योजनाओं को समय पर पूरा करने के लिए जहां अनुशासन जरूरी है वहीं भ्रष्टाचार रहित प्रणाली भी आवश्यक है।

चंडीगढ़ में गर्मियों के मौसम (Summer Session) में पानी की किल्लत आम बात होती है, इसमें भी ऊपर की मंजिलों पर पानी नहीं चढ़ पाता। लोगों को पानी के टैंकर मंगवाने पड़ते हैं। अब उम्मीद की जानी चाहिए कि 510 करोड़ के इस प्रोजेक्ट (Project) के जरिए ऐसे हालात पूरी तरह से बदल जाएंगे। यह भी  सही है कि अब शहर में 24 घंटे पानी उपलब्ध रहेगा, यानी पानी की सप्लाई का इंतजार करने जैसी बात अब नहीं रहेगी। इस समय देश के शहरों में कुछ ही ऐसे इलाके हैं, जहां पर 24 घंटे पानी की आपूर्ति होती है, बाकी समय इंतजार ही करना पड़ता है। चंडीगढ़ में नियमित पानी सप्लाई का यह प्रोजेक्ट फ्रांस के सहयोग से लगाया जा रहा है।

यह संयोग ही है कि फ्रांस के जिन आर्किटेक्ट ली कार्बूजिए (Architect Le corbusier) ने चंडीगढ़ की रचना की, उसी देश की ओर से अब यहां पानी सप्लाई का प्रोजेक्ट लगाया जा रहा है। फ्रांस और भारत विशेषकर चंडीगढ़ (Chandigarh) के बीच गहरा नाता है जोकि अब नया आकार ले चुका है। जिस शहर को बसाने में उसने सहयोग किया, अब वही उसमें नागरिक सुविधाओं में इजाफा करने जा रहा है। इस समय चंडीगढ़ में पानी सप्लाई का नेटवर्क 65 साल पुराना है, पूरे शहर में यह नेटवर्क 270 किलोमीटर का है। इतने वर्षों में नेटवर्क के अंदर तमाम व्यवधान खड़े होते आए हैं। कजौली वाटर वक्र्स से सप्लाई लाइन अनेक बार टूटी है, वाटर लाइन के पाइप की दीवारें खराब हुई हैं, जिनसे लीकेज आदि होती रही है। अब नए प्रोजेक्ट के तहत पूरे शहर की वाटर सप्लाई लाइनों का नक्शा बनेगा, इसके जरिए लाइन लीकेज जल्द पकड़ में आ जाएगी और उसका समाधान हो सकेगा।

इस प्रोजेक्ट के जरिए रोजगार (Employee) की उपलब्धता भी बढ़ेगी, परियोजना में 20 से 50 प्रतिशत नौकरियां महिलाओं को कैटेगरी अनुसार मिलेंगी।  इसके अलावा सकाडा से हर उपभोक्ता को उसके मोबाइल फोन पर बिल आएगा, इसके बाद मीटर रीडर रखने की जरूरत नहीं रहेगी। वास्तव में ऐसे प्रोजेक्ट भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर तैयार किए जाने चाहिएं। आजकल शहर में मेट्रो, मोनो रेल जैसे परिवहन साधनों को चलाए जाने पर भी विचार हो रहा है। बरसों से ये प्रोजेक्ट शहर और इसके प्रशासन के लिए दुविधा बने हुए हैं।

रह-रहकर इनके संबंध में चर्चा शुरू होती है, प्रोजेक्ट (Project) की जरूरत बताई जाती है फिर उसका विरोध होने लगता है। अधिकारी फाइल लेकर बैठे रहते हैं, बजट बनता है। मेट्रो या मोनो रेल जैसे प्रोजेक्ट देश में दूसरे शहरों में लागू किए जा रहे हैं, लेकिन चंडीगढ़ जैसे सीमित शहर जिसे बसाया ही गया था 10 लाख लोगों के लिए, वहां ऐसे प्रोजेक्ट इस शहर को पूरी तरह से परिवर्तित कर देंगे। न हरियाली रहेगी और न ही खुलापन। हालांकि शहर में वाहनों की बढ़ती भीड़ को कम करने के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट को और ज्यादा प्रभावी किए जाने की जरूरत है।

प्रशासक बनवारी लाल पुरोहित (Chandigarh Administrator Banwarilal Purohit) ने वाटर प्रोजेक्ट (Water Project) पर हस्ताक्षर के अवसर पर अपना एक किस्सा सुनाया है, जब सांसद रहते हुए उन्होंने नागपुर में ऑटोमेटिक वाटर मीटर लगवाया था। हालांकि उस समय इस प्रोजेक्ट के तहत घर में पानी का बिल बहुत ज्यादा आया। बाद में जब इसे चेक करवाया तो सप्लाई लाइन में लीकेज मिली। इस लीकेज को दुरुस्त करवाया तो बिल ठीक आने लगा। प्रशासनिक सिस्टम में भी ऐसा ही हो रहा है, भ्रष्टाचार की लीकेज सेवाओं का लाभ न जाने कहां पहुंचा देती है और वास्तविक हकदार के हाथ खाली ही रहते हैं। यह समय की मांग है कि सरकार की प्रत्येक योजना लीकेज प्रूफ बने और संसाधनों का अपव्यय होने से रोका जाए। इस प्रोजेक्ट में भी भ्रष्टाचार की रोकथाम न हो, इसकी निगरानी होनी चाहिए। इस परियोजना का भी विरोध हो रहा है, लेकिन यह रवायत जैसा हो गया है, परियोजना के जब फायदे मिलने लगते हैं तो विरोध खुद खत्म हो जाता है। विकास की चाह एक अभियान की तरह होती है, इसके रास्ते में अड़चन आती हैं लेकिन उसकी सफलता सभी को लाभान्वित कर देती है।  

 

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