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रंभा तीज व्रत से प्राप्त होता है सौभाग्य, देखें क्या है खास

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हिंदू धर्म में प्रत्येक तीज-त्योहार की विशेष महत्ता होती है। रंभा तीज का व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बेहद खास माना जाता है। यह व्रत हर साल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रखा जाता है। इस दिन अप्सरा रंभा की पूजा की जाती है, जो सौंदर्य, सौभाग्य और युवावस्था की प्रतीक है। पंडितों के अनुसार इस व्रत को रखने से वैवाहिक जीवन में खुशहाली आती है। रंभा तीज की पूजा-अर्चना करने से बीमारियों से छुटकारा मिलता है। यही नहीं इस व्रत से आप आकर्षक नजर आते हैं। इस दिन विधिपूर्वक पूजा करने से संतान, सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन विभिन्न अप्सराओं की पूजा करने से सौभाग्य, समृद्धि और वैवाहिक सुख की प्राप्ति होती है। विवाहित महिलाएं इस दिन सोलह श्रृंगार कर व्रत रखती हैं और भगवान शिव तथा माता पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं। यह व्रत खास तौर पर पति की दीर्घायु और सुखद वैवाहिक जीवन की कामना के लिए रखा जाता है। अविवाहित लड़कियां भी अच्छे वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत करती हैं।

इस वर्ष रंभा तीज का पर्व 29 मई 2025, गुरुवार को मनाया जाएगा। इस दिन श्रद्धा और भक्ति से देवी रंभा, लक्ष्मी माता, पार्वती और भगवान शिव की पूजा करने से विशेष फल प्राप्त होता है।

रंभा तीज की पौराणिक कथा 
पंडितों के अनुसार रंभा तीज का पर्व एक अत्यंत दिव्य और अलौकिक कथा से जुड़ा हुआ है, जिसका संबंध सीधे समुद्र मंथन की घटना से है। पुराणों के अनुसार जब समुद्र मंथन आरंभ हुआ तो उसमें से क्रमश: 14 बहुमूल्य रत्न उत्पन्न हुए। इन्हीं अद्भुत रत्नों में से एक थीं, रंभा, जो एक अप्सरा थीं। वे अप्सराओं की रानी मानी जाती थीं और अद्वितीय सौंदर्य, मधुर वाणी, नृत्य-कला और मोहक स्वभाव की प्रतीक थीं। 

उनकी उपस्थिति मात्र से ही चारों दिशाओं में सौंदर्य और आकर्षण की लहर दौड़ जाती थी। रंभा जब समुद्र से प्रकट हुईं, तो देवताओं और असुरों दोनों के मन में उन्हें पाने की लालसा जाग उठी। देवता उन्हें स्वर्ग की शोभा मानते हुए अपने साथ रखना चाहते थे, वहीं असुर भी उनके अप्रतिम सौंदर्य से मोहित होकर उन्हें अपने पक्ष में करने के इच्छुक थे। परंतु रंभा ने न तो देवताओं को चुना, न ही असुरों को।

उन्होंने स्पष्ट कहा कि वे किसी की संपत्ति नहीं हैं और वे केवल उस पथ पर चलेंगी जो धर्म, सत्य और आत्मसम्मान से जुड़ा होगा। उनका यह निर्णय तीनों लोकों में उनके चरित्र और नारी-स्वाभिमान की मिसाल बन गया। उनकी यही भावना उन्हें अन्य अप्सराओं से अलग बनाती है। रंभा तीज का पर्व नारी-सम्मान, वैवाहिक सौभाग्य और आत्मबल की प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। 

रंभा तीज व्रत पर ऐसे करें पूजा  
पंडितों के अनुसार रंभा तीज के दिन सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठें और अपने नित्य कर्मों से निवृत्त होकर गंगाजल मिले पानी से स्नान करें। इसके बाद लाल, गुलाबी या हरे रंग के साफ-सुथरे वस्त्र पहनें। इस दिन सोलह श्रृंगार करना बहुत शुभ माना जाता है। अब पूजा स्थान पर बैठकर हाथ में जल लेकर अपने व्रत का संकल्प लें। पूजा के लिए एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर रंभा देवी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। ध्यान रहें कि आपका मुख पूर्व दिशा की ओर हो। अब एक चौकी या पटरे पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं। भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। साथ ही, अप्सरा रंभा की मूर्ति या चित्र भी रखें। इसके बाद भगवान गणेश का ध्यान करें और देवी के समक्ष घी का दीपक जलाएं। पूजा में मौसमी फल, लाल पुष्प, काली चूडिय़ां, पायल, आलता, इत्र आदि अर्पित करें। सोलह श्रृंगार करके श्रद्धा से व्रत का संकल्प लें।

इसके बाद गाय के शुद्ध घी का दीपक जलाएं। भगवान शिव और माता पार्वती को फूल, फल, धूप, दीप, अक्षत (चावल), रोली, चंदन, भांग, धतूरा, दूध, दही और पंचामृत अर्पित करें। अप्सरा रंभा को सौंदर्य से जुड़ी चीजें जैसे सिंदूर, मेहंदी, चूडिय़ां, बिंदी और अन्य सुहाग की सामग्री अर्पित करें। इसके बाद, पूजा के दौरान देवी रंभा को गेहूं, अनाज और लाल फूल भी चढ़ाएं। पूजा के दौरान ‘ऊ रं रं रंभा रं रं देवी’ मंत्र का 108 बार जाप रुद्राक्ष या स्फटिक की माला से करें। रंभा तीज व्रत की कथा पढ़ें या सुनें, फिर पूजा के बाद देवी रंभा की आरती करें और घर के सदस्यों को प्रसाद बांटे।

रंभा तीज मंत्र 
रं रं. रंभा रं रं देवी. इस मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए।

रंभा तीज का महत्व 
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रंभा तीज की पूजा-अर्चना करने से बीमारियों से छुटकारा मिलता है। इससे आप आकर्षक नजर आते हैं। इस दिन विधि-विधान के साथ पूजा करने से संतान प्राप्ति, सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। यह व्रत करने से महिलाओं को आत्मविश्वास और सकारात्मक ऊर्जा भी प्रदान मिलती है।

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