Editorial: राहुल गांधी का कांग्रेस की भूलों को स्वीकार करना नहीं काफी
- By Habib --
- Monday, 05 May, 2025

Rahul Gandhi acceptance of Congress' mistakes is not enough
Rahul Gandhi acceptance of Congress' mistakes is not enough: नेता विपक्ष एवं कांग्रेस सांसद राहुल गांधी अगर कांग्रेस की भूलों को स्वीकार करने को तैयार हैं तो यह समझा जाना चाहिए कि आखिर पार्टी आज किस दौर से गुजर रही है। सिख विरोधी दंगों समेत दूसरे अनेक मसलों की वजह से कांग्रेस की छवि को जहां नुकसान पहुंचा था, वहीं आज अदालतों के चक्कर लगा रहे कई कांग्रेस नेताओं के चेहरे पर उस दौर में सिख समाज के लिए पैदा की गई मुसीबतों की शिकन तक नजर नहीं आती। वे नेता यह मानने तो तैयार ही नहीं हैं कि कांग्रेसी होने के बूते उन्होंने ऐसे आपराधिक कृत्यों को जन्म दिया। बेशक, राहुल गांधी आज ऐसा स्वीकार कर रहे हैं और उस दौरान हुए घटनाक्रम को भूल बता रहे हैं, लेकिन संभव है, वे बेहद ईमानदारी की राजनीति कर रहे हैं।
क्योंकि हो सकता है उनकी जगह अगर कोई ओर होता तो यह स्वीकार न करता। अभिप्राय यह है कि अगर राजनीतिक दिमागों में इतनी पवित्रता और स्पष्टता आ जाए तो फिर अनेक बुरे घटनाक्रमों को घटने से रोका जा सकता है और यह भी कि उस लांछन से बचा जा सकता है, जोकि किसी पार्टी या फिर उसके नेता पर लगते हैं। कांग्रेस को यह देश कभी भुला नहीं सकता और न ही इसकी अनदेखी कर सकता है। लेकिन मामला यही है कि समय के साथ कांग्रेस ने अपने आप को सुधारने और बेहतर बनाने की बहुत कम कोशिश की है और अब राहुल गांधी विदेश में बैठकर अपनी पार्टी के नेताओं के द्वारा किए गए कारनामों के लिए अगर क्षमाप्रार्थी हो रहे हैं, तो इसका बहुत बड़ा कुछ फायदा देश में कांग्रेस को मिल जाएगा, ऐसा नहीं है। जरूरत इसकी है कि कांग्रेस इस तरह की ईमानदारी अपने प्रयासों में भी लेकर आए। अब यह आरोप नहीं हो सकता है कि अगर देश में भ्रष्टाचार का बीज कभी बोया गया है तो वह कांग्रेस सरकारों के वक्त ही बोया गया है। आज अगर उस बीज से उत्पन्न फसल को नष्ट करने की कोशिश की जा रही है तो क्या यह संभव है कि यह काम इतना जल्दी हो जाएगा।
गौरतलब है कि सांसद राहुल गांधी ने इससे पहले भी अनेक बातों को स्वीकार किया है। लेकिन कांग्रेस नेता की समस्या यह भी है कि वे शब्दों का सावधानी पूर्वक चयन नहीं कर पा रहे हैं और इससे उनके विरोधियों को मौका मिल जाता है। अब नया विवाद उनके द्वारा भगवान राम को काल्पनिक पात्र मानने से भी जुड़ गया है। कांग्रेस नेता आखिर कहां-कहां ठीक करते चलेंगे। हो सकता है, एक समय बीतने के बाद भगवान राम के संबंध में कही गई बातों के लिए भी कांग्रेस माफी मांगे। यह भी तथ्य आधारित है कि राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद के समय में तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने अदालत में हलफनामा दिया था कि भगवान राम का अस्तित्व नहीं है और रामसेतु को तोड़ने का भी समर्थन किया था। निश्चित रूप से भगवान राम के अस्तित्व को नकार कर कांग्रेस अपने लिए मुसीबत खड़ी की थी, मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए विख्यात कांग्रेस नेताओं ने भगवान राम के अयोध्या में मंदिर बनने पर खुलकर खुशी नहीं जताई। यही वजह है कि उनके कई कांग्रेस नेता जिनमें आचार्य प्रमोद भी शामिल हैं, पार्टी से बाहर आ गए। क्या विदेश के लोग वास्तव में यह समझते हैं कि भगवान राम कौन थे? बेशक, अध्यात्म प्रेमी इसमें दिलचस्पी रखें लेकिन राहुल गांधी जिस प्रकार से हिंदू देवी-देवताओं और अन्य संत-महात्माओं की व्याख्या करते हैं, वह विवादित हो जाता है।
मालूम हो, राहुल गांधी ने यह भी स्वीकार किया था कि अगर कांग्रेस ने दलितों-पिछड़ों की सहायता करने के साथ उनका भरोसा कायम रखा होता तो आज हालात कुछ और होते। उनका तर्क है कि ऐसा हुआ होता तो भाजपा आज सत्ता में नहीं होती। दरअसल, इसके व्यापक सबूत हैं कि कांग्रेस ने उन सरोकारों को समय के साथ पीछे छोड़ दिया, जिनके लिए वह जानी जाती थी। पार्टी ने एक नहीं अपितु अनेक ऐसी ऐतिहासिक त्रुटियां की हैं, जिनकी बदौलत अनेक राजनीतिक दलों को बढ़त मिली। कांग्रेस क्या इससे इनकार करेगी कि आम आदमी पार्टी का जन्म और उसका विकास कांग्रेस के घटते कद की वजह से हुआ। बेशक, दूसरे राजनीतिक दलों ने भी कांग्रेस की कमियों को अपना हथियार बनाया और खुद को विकसित करते गई। आज कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी इस बात को स्वीकार कर रहे हैं तो समझा जाना चाहिए कि पार्टी अपने खो चुके आधार को वापस लाने के लिए कुछ जत्न करेगी। राहुल गांधी ने यह भी कहा है कि एकबार कांग्रेस पार्टी का मूल आधार वापस आया तो सत्ताधारी राजनीतिक दल को जाते देर नहीं लगेगी। हालांकि सवाल यही है कि आखिर कांग्रेस यह सब कैसे करेगी, बीते वर्षों में उसके अनेक नेता दिशाहीनता की वजह से पार्टी से दूर जा चुके हैं। वहीं राज्यों में बैठे दलित नेताओं का भी पार्टी सम्मान नहीं रख पा रही। क्या इस तरह की बातें करने भर से कांग्रेस का मूल आधार सच में वापस मिल सकता है।
ये भी पढ़ें ...
Editorial: किसान संगठनों को दूर करने होंगे मतभेद, नहीं तो राह होगी मुश्किल
Editorial: पंजाब में पुलिस अधिकारियों को नशे के खिलाफ डेडलाइन
Editorial: अपनी करतूत से पाकिस्तान पस्त, सच आने लगा सामने
Editorial: रंगला योजना से खुलेंगी पंजाब के विकास की नई दिशाएं