“आप जैसा कोई” फिल्म में दिखेगा आर माधवन और फातिमा का प्यार, जाने कैसी रही फ़िल्म?

“आप जैसा कोई” फिल्म में दिखेगा आर माधवन और फातिमा का प्यार, जाने कैसी रही फ़िल्म?

 आर माधवन और फ़ातिमा सना शेख अभिनीत

 

aap jaisa koi: आर माधवन और फ़ातिमा सना शेख अभिनीत "आप जैसा कोई" एक बहु-सांस्कृतिक प्रेम कथा प्रस्तुत करने की कोशिश करती है, लेकिन यह कोशिश अधूरी ही रह जाती है। फिल्म की शुरुआत, ट्रेलर और संगीत उम्मीदें तो जगाते हैं, लेकिन फिल्म इन उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती। यह कहानी दो ऐसे लोगों की है जो उम्र के एक खास पड़ाव पर आकर प्रेम में पड़ते हैं, लेकिन उनका रिश्ता सामाजिक अपेक्षाओं, स्वीकृति और आपसी असुरक्षाओं के बोझ तले दम तोड़ देता है।

क्या है फिल्म की कहानी?

फिल्म की कहानी श्रीरेणु त्रिपाठी (आर. माधवन) और मधु बोस (फ़ातिमा सना शेख) के इर्द-गिर्द घूमती है। श्रीरेणु, एक 42 वर्षीय संस्कृत शिक्षक हैं, जो जमशेदपुर में रहते हैं और अपने अकेलेपन से जूझ रहे हैं। वो जीवन में एक साथी की तलाश कर रहे हैं और उनके छात्र भी उनके अकेलेपन से वाकिफ हैं। वहीं दूसरी ओर, मधु बोस एक 35 वर्षीय बंगाली महिला हैं जो कोलकाता से आई हैं और फ्रेंच पढ़ाती हैं। उनका ताल्लुक एक संयुक्त परिवार से है और उन्हें 'अच्छे घर की लड़की' माना जाता है। जब ये दोनों मिलते हैं, तो शुरुआती दिलचस्पी के बाद उनका रिश्ता तेजी से विकसित होता है मिलना, प्रेम में पड़ना, असुरक्षाओं को पार करना, और अंततः सगाई तक पहुँच जाना।हालांकि, यहीं से फिल्म की गिरावट शुरू होती है। दोनों किरदारों के बीच का रिश्ता जटिल नहीं, बल्कि सतही और अपरिपक्व लगता है। एक मामूली तकरार से रिश्ता टूट जाता है और फिर बहुत ही जल्द एक और संक्षिप्त पुनर्मिलन होता है, जो दर्शकों को निराश करता है। इस जल्दबाज़ी और बिखरे हुए इमोशन्स के चलते दर्शक अंत में यही कहते हैं – "यह क्या था?”

कहां रह गई कमी?

फिल्म की कहानी राधिका आनंद ने लिखी है, जबकि पटकथा और संवाद जेहान हांडा के हैं। यहीं पर सबसे बड़ी कमी नजर आती है। विषय चयन अच्छा है — लैंगिक समानता, आत्म-सम्मान और भावनात्मक स्वतंत्रता जैसे मुद्दों को उठाने की मंशा स्पष्ट है। लेकिन लेखन में वह धार और परिपक्वता नहीं है जो इस संवेदनशील विषय को मजबूती दे पाती। संवाद कई बार कृत्रिम और असंगत लगते हैं और किरदारों की भावनाएँ गहराई से उभर नहीं पातीं। निर्देशक विवेक सोनी और छायाकार देबोजीत रे को जरूर कुछ श्रेय दिया जा सकता है। खासतौर पर 'जब तू साजन' गाने के दौरान कुछ दृश्य सुंदर और भावनात्मक रूप से प्रभावी हैं। फिल्म के कुछ दृश्य स्वप्निल और सिनेमैटिक दृष्टि से अच्छे हैं, लेकिन वे कहानी की कमजोरियों को ढकने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।