Questions are being raised on the loyalty of leaders changing parties.

Editorial: दल बदल रहे नेताओं की निष्ठा पर खड़ा हो रहा सवाल

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Questions are being raised on the loyalty of leaders changing parties.

Questions are being raised on the loyalty of leaders changing parties.:  लोकसभा चुनाव में 400 पार सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर उतरी भाजपा में जिस प्रकार दूसरे दलों विशेषकर कांग्रेस के नेता शामिल हो रहे हैं, वह कांग्रेस और उसके इंडिया गठबंधन के लिए बड़ा संकट है। लगभग रोजाना ऐसी रपट सामने आ रही हैं, जिसमें कोई न कोई बड़ा नाम या चेहरा भाजपा में शामिल हो रहा है। अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाज और कांग्रेस नेता रहे विजेंदर सिंह अब भाजपा के पाले में आ गए हैं। उन्होंने इसे घर वापसी बताया है। इसी प्रकार कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रहे प्रोफेसर गौरव वल्लभ ने भी भाजपा की सदस्यता ले ली है। वल्लभ बीते दिनों में भाजपा के खिलाफ पूरी तरह से सक्रिय रहे थे और केंद्र सरकार के खिलाफ उनके बयानों में बेहद धार होती थी। वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार पर हमलावर रहते थे, लेकिन अब उन्होंने भी भाजपा में आकर यह जता दिया है कि वे भविष्य की योजना पर काम कर रहे हैं। उनका बयान है कि कांग्रेस अब दिशाहीन हो चुकी है और इसलिए उन्होंने पार्टी से किनारा किया है।

बेशक, प्रत्येक राजनीतिक के पास दूसरी पार्टी में जाने के बाद अपनी मूल पार्टी के संबंध में कहने को काफी कुछ होता है, लेकिन गौरव वल्लभ, विजेंदर सिंह आदि कमोबेश युवा नेता अगर कांग्रेस के संबंध में ऐसी बात कर रहे हैं तो यह निश्चित रूप से कांग्रेस के लिए चिंताजनक है। गौरतलब है कि बीते दिनों लुधियाना से कांग्रेस सांसद रहे रवनीत बिट्टू ने भाजपा की सदस्यता ले ली थी, उन्होंने भी इसी प्रकार के आरोप लगाए थे। इस बीच जालंधर से आप के सांसद रहे सुशील रिंकू भी भाजपा में शामिल हो गए और उन्होंने भी प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व पर भरोसा जताया।

वास्तव में कांग्रेस के लिए यह चिंताजनक है कि उसके युवा नेता दूसरी पार्टियों में जा रहे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बीते दिनों ही अपनी न्याय यात्रा को समाप्त किया है। इस यात्रा की शुरुआत से पहले यह समझा जा रहा था कि देश में युवाओं की बड़ी तादाद कांग्रेस के समर्थन में आएगी, लेकिन अब पार्टी के अंदर ही युवा नेता अगर असंतोष महसूस कर रहे हैं, तो यह केंद्रीय नेतृत्व को समझना चाहिए। मालूम हो, महाराष्ट्र में पार्टी के वरिष्ठ नेता संजय निरुपम भी अब उससे दूरी बना चुके हैं। निरुपम इस बात से नाराज थे कि उनकी जगह किसी अन्य को टिकट दे दिया। खैर, टिकट किसको दिया जाना है, यह पार्टी नेतृत्व का फैसला हो सकता है, लेकिन किसी स्थापित नेता को अगर इस प्रकार अस्थिर किया जाता है तो इससे पार्टी में संदेश सही नहीं जाता।

इससे पहले एक दर्जन के करीब नेता कांग्रेस से भाजपा और दूसरे दलों में आ चुके हैं। इनमें से ज्यादातर अब स्थापित नेता हैं और उनका भविष्य है। गौरव वल्लभ का यह कहना अपने आप में एक प्रश्न है कि कांग्रेस अब दिशाहीन हो चुकी है। ऐसा तब है, जब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर चुनाव की मांग को लेकर वरिष्ठ नेताओं ने पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी पर चुनाव कराने का दबाव बनाया था। उस समय इन नेताओं पर गांधी परिवार से गद्दारी करने के आरोप तक लगे थे। मामला बस यह था कि इन नेताओं ने पार्टी की बिगड़ती हालत को लेकर प्रश्न उठाते हुए सबल नेतृत्व की मांग की थी, लेकिन उनकी इस मांग की अनदेखी की गई।

इस बीच भाजपा ने अपने काडर नेताओं की अनदेखी करके जिस प्रकार कांग्रेस से आए नेताओं को टिकट दी हैं, वह भी चकित करने वाली घटना है। भाजपा को अनुशासित पार्टी की पदवी हासिल है, यही वजह है कि उसके अंदर कहीं भी बगावत जैसी बात नजर नहीं आती। हालांकि यह समझना जरूरी है कि पार्टी दूसरे दलों से आए नेताओं को इस प्रकार टिकट देकर चुनाव में उतार रही है, फिर वह अपने काडर नेताओं को इसका मौका कब देगी। बीते दिनों हरियाणा में कुरुक्षेत्र से कांग्रेस के सांसद रहे नवीन जिंदल को भाजपा ने पार्टी में शामिल करके उन्हें टिकट दी है।

सिरसा सीट पर भी इसी प्रकार कांग्रेस और फिर आप में शामिल होकर भाजपा में आए अशोक तंवर को चुनाव लड़ाया जा रहा है। हरियाणा में वरिष्ठ नेता रणजीत चौटाला को भी भाजपा में शामिल करवा कर उन्हें टिकट दी गई है। वास्तव में राजनीतिक हवा कब किस दिशा में बहने लगे, इसका अंदाजा लगाना सहज नहीं होता। आम चुनाव वह समय होता है, जब नेताओं के इधर से उधर होने का सिलसिला चलता है। इस मामले में प्रश्न राजनीतिक निष्ठा का आता है, क्योंकि यह पूछना गुनाह जैसा है कि आखिर फलां नेता की अब किस दल के प्रति निष्ठा है। मामला अपने राजनीतिक स्वार्थ का ज्यादा हो गया है।

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