The role of the Election Commission became more intense

Editorial: प्रचार में आई तेजी तो चुनाव आयोग की भूमिका हुई और प्रखर

Edit

The role of the Election Commission became more intense

As the campaign gained momentum, the role of the Election Commission became more intense. लोकसभा चुनाव में जैसे-जैसे तपिश बढ़ रही है, वैसे-वैसे चुनाव आयोग की भूमिका भी प्रखर होती जा रही है। आम चुनाव के समय में देश में चुनाव आयोग ही कार्यपालिका होता है। इसका अर्थ यही है कि तमाम प्रशासनिक दायित्व वही निभाता है। चूंकि ऐसा चुनाव में निष्पक्षता के लिए होता है, लेकिन बदलते परिदृश्य में राजनीतिक दलों का आरोप होता है कि आयोग अपनी भूमिका को सही से पूरा नहीं कर रहा है। यह आजकल हर चुनाव के बाद की कहानी होती है, जब हारने वाले उम्मीदवार ईवीएम के जरिए चुनाव मेंं धांधली के आरोप लगाते हैं। विपक्ष के अनेक राजनीतिक दल तो बेहद बेबाकी के साथ इस आरोप को लगाते हैं, हालांकि आयोग की ओर से बार-बार इसकी चुनौती दी जाती है कि ईवीएम में गड़बड़ी के सबूत विपक्ष सामने लेकर आए। बेशक, ऐसे राजनीतिक आरोपों की जवाबदेही तय होनी जरूरी है, क्योंकि झूठे आरोपों से आयोग की छवि को नुकसान पहुंचता है।

हालांकि यह उचित ही है कि चुनाव आयोग ने झूठी सूचनाओं और अफवाहों से निपटने के लिए बड़ी पहल की है। इसके तहत अब आयोग किसी भी झूठी सूचना या अफवाह पर चुप नहीं बैठेगा और ऐसी सूचनाओं की सच्चाई सामने लेकर आएगा। आयोग की ओर से यह पहल चुनाव के दौरान चुनावी प्रक्रिया से जुड़ी गतिविधियों को लेकर किए जाने वाले दुष्प्रचार से निपटने के लिए शुरू की है। आयोग ने इसके लिए अपनी वेबसाइट पर मिथ वर्सेस रियलिटी नाम से पोर्टल लांच किया है। इसमें ऐसी प्रत्येक सूचना को प्रदर्शित किया जाएगा और उसकी सच्चाई के बारे में बताया जाएगा। गौरतलब है कि प्रत्याशियों की ओर से मतदाताओं को लुभाने की प्रत्येक कोशिश को रोकने में जुटे चुनाव आयोग ने फिलहाल रोजा इफ्तार दावतों और धार्मिक भंडारों जैसे आयोजनों पर भी चौकसी बढ़ा दी है। आयोग ने ऐसे आयोजनों को लेकर न सिर्फ सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को सतर्क किया है, बल्कि ऐसे आयोजनों के राजनीतिक जुड़ाव पर उसका खर्च राजनीतिक दलों या प्रत्याशियों के चुनावी खर्च में जोड़ने का निर्देश दिया है। साथ ही जरूरी कार्रवाई भी करने को कहा है। आयोग ने यह कदम तब उठाया है, जब राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों की ओर से चुनाव के दौरान मतदाताओं को लुभाने के लिए ऐसे हथकंडों को अपनाने की शिकायतें मिल रही हैं।

हालांकि आयोग ने स्पष्ट किया है कि रोजा इफ्तार, भंडारे या जन्मदिन पार्टियों जैसे आयोजनों पर किसी तरह की कोई रोक नहीं है। सिर्फ इसकी आड़ में राजनीतिक दलों या प्रत्याशियों की ओर मतदाताओं को लुभाने के लिए किए जाने वाले ऐसे आयोजनों पर नजर रखी जाएगी। चुनाव की निष्पक्षता के लिहाज से इन पर निगाह रखना जरूरी है। आयोग ने इसे लेकर सभी राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारी, जिला निर्वाचन अधिकारी और पर्यवेक्षकों से ऐसी गतिविधियों पर नजर रखने को कहा है। चुनाव आयोग इससे पहले ही चुनाव में मतदाताओं को लुभाने के लिए बांटे जाने वाले उपहारों, पैसों, शराब व ड्रग्स आदि पर पैनी नजर रखता है। साथ ही इसे जब्त करने की कार्रवाई भी करता है।

गौरतलब है कि 2019 के चुनाव में 3449 करोड़ से अधिक कीमत के उपहार, नकदी व शराब आदि जब्त हुई थी। चुनाव आयोग ने इफ्तार पार्टी और भंडारे जैसे आयोजनों के दौरान रास्ता रोकने पर भी सख्ती दिखाई है। साथ ही जिला निर्वाचन अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वह सुनिश्चित करें कि कहीं भी रास्ता रोककर ऐसे आयोजन न किए जाए, जिससे लोगों को परेशानी हो। गौरतलब है कि आयोग ने यह निर्देश कर्नाटक के मंगलुरू से मिली शिकायत के बाद दिए हैं, जिसमें सडक़ के बीचों-बीच इफ्तार पार्टी का आयोजन किया गया था। आयोग ने इस मामले में जिला निर्वाचन अधिकारी को नोटिस जारी कर जवाब भी मांगा है। आयोग ने साफ कहा है कि रास्ता रोककर किसी भी तरह के आयोजन करना गैर-कानूनी है।

इस बीच चुनाव आयोग की टीम ने चंडीगढ़, पंजाब, हरियाणा के अधिकारियों के साथ बैठक की है। वास्तव में चुनाव आयोग की सक्रियता ही लोकतंत्र में निष्पक्ष चुनाव की गारंटी है। जरूरत इस बात की है कि नेताओं के अनाप-शनाप बयानों पर रोक लगे और खर्च सीमा में रहकर ही किया जाए। चुनाव लोकतंत्र का आधार है और इसे संपूर्ण आस्था के साथ आयोजित किया जाना चाहिए।

यह भी पढ़ें:

Editorial: अरुणाचल प्रदेश में नाम बदलकर चीन क्या हासिल कर लेगा

Editorial: भारत के मामलों में दूसरे देशों की दिलचस्पी चिंताजनक

Editorial: पीलीभीत से वरुण गांधी का टिकट कटना है बागियों को संदेश