पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने नाबालिग बलात्कार पीड़िता की 33 सप्ताह की टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी की अनुमति देने से इनकार किया

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने नाबालिग बलात्कार पीड़िता की 33 सप्ताह की टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी की अनुमति देने से इनकार किया

Punjab and Haryana High Court

Punjab and Haryana High Court

चंडीगढ़। Punjab and Haryana High Court: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने दुष्कर्म पीड़िता के गर्भपात की मांग को खारिज करते हुए 33 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने का निर्देश देने से इंकार कर दिया है। हाई कोर्ट ने कहा कि अगर इस अवस्था में आदेश जारी किए जाते है तो न केवल नाबालिग पीड़िता की जान को खतरा होगा, बल्कि समय से पहले बच्चे का जन्म भी हो सकता है।

जस्टिस विनोद एस भारद्वाज ने कहा कि याचिका दायर करने की तारीख पर गर्भ पहले ही 33 सप्ताह से अधिक हो चुका था। नाबालिग द्वारा अपनी दादी के माध्यम हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। कोर्ट को बताया गया था कि करनाल में पिछले महीने पॉक्सो एक्ट के तहत इस मामले में एफआईआर दर्ज की गई थी। याचिका में कहा गया कि नाबालिग के साथ दुष्कर्म के अपराध के परिणामस्वरूप वह ऐसे बच्चे को जन्म देने का इरादा नहीं रखती है जो उस पर किए गए अत्याचारों की लगातार याद दिलाता है।

बिना किसी शुल्क के दी जाएं चिकित्सा सुविधाएं: हाई कोर्ट

याचिकाकर्ता ने कहा कि यह नाबालिग पीड़िता के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के साथ-साथ सामाजिक कल्याण के लिए भी अच्छा नहीं है। हाईकोर्ट ने रेवाड़ी के एक मामले में जारी किए गए दिशा निर्देश का पालन करते हुए नाबालिग पीड़िता का इलाज और प्रसव कल्पना चावला राजकीय मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में कराने के आदेश दिए।

हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार, याचिकाकर्ता को बिना किसी शुल्क, चार्ज या खर्च के सभी आवश्यक चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराई जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि प्रसव सुरक्षित तरीके से हो। हाई कोर्ट द्वारा जारी दिशा निर्देश के अनुसार, जन्म पर बच्चे को बाल कल्याण समिति को सौंपा जा सकता है। संबंधित जिले की बाल कल्याण समिति महिला के बच्चे को जन्म देने के बाद अधिकारियों को सौंपने के संबंध में सभी आवश्यक दस्तावेज और औपचारिकताएं पूरी करेगी।

सरकार ले बच्चे की कस्टडी

हाई कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि सभी चरणों में मां की गोपनीयता बरकरार रखी जाएगी और अस्पताल में भर्ती होने और इलाज के दौरान याचिकाकर्ता की पहचान उजागर नहीं की जाएगी। हाई कोर्ट ने कहा कि कानून उसे यह हक देता है कि वह गर्भधारण चाहती है या नहीं।

मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर इस चरण में गर्भ को समाप्त करने का कोई भी प्रयास, समय से पहले प्रसव का कारण बन सकता है और मां को खतरे में डालने के अलावा अजन्मे बच्चे के विकास को प्रभावित कर सकता है, जो कि सही नहीं है। कोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए सरकार को कहा कि वह पैदा होने पर बच्चे की कस्टडी ले और मां और बच्चे को उचित चिकित्सा देखभाल प्रदान करे।

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