Political statements increasing tension in election season

Editorial: राजनीतिक बयानों से चुनावी मौसम में बढ़ रही तल्खी

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Political statements increasing tension in election season

Political statements increasing tension in election season: लोकसभा चुनाव का दौर जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, बयानों की गर्मी भी बढ़ रही है। राजनीतिक दलों के लिए यह चुनाव किसी महाभारत से कम नहीं है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि इस चुनाव से भविष्य का स्वरूप तय होने वाला है। भाजपा एवं उसके मित्र दल सत्ता बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं तो कांग्रेस और उसके मित्र सत्ता प्राप्ति के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इस चुनाव में भाजपा जहां देश में बीते दस वर्षों के उसके शासनकाल के दौरान हुए विकास का ब्योरा पेश कर रही है तो कांग्रेस देश में बेरोजगारी और महंगाई का मुद्दा उठा रही है। हालांकि ऐसे मुद्दे भी सामने आ रहे हैं, जो कि देश की राष्ट्रीय सुरक्षा एवं राज्यों के अधिकारों से संबद्ध हैं।

गौरतलब है कि बिहार के नवादा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कश्मीर से अनुच्छेद 370 के खात्मे की बात कर रहे हैं। वे यहां के निवासियों से पूछते हैं कि कश्मीर हमारा है कि नहीं। और इसके जवाब में लोग हां का जवाब देते हैं। यानी अनुच्छेद 370 एक राष्ट्रीय मुद्दा बन चुका है। यही वजह है कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े के उस बयान जिसमें वे प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा अनुच्छेद 370 के खात्मे के राजस्थान में दिए बयान की आलोचना करते हैं, पर जवाबी हमला करते हैं कि आखिर अनुच्छेद 370 का मसला पूरे देश से संबंधित है कि नहीं।

गौरतलब है कि आप के राष्ट्रीय संयोजक एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की शराब घोटाले में गिरफ्तारी के विरोध में पार्टी नेता धरना-प्रदर्शन करते हुए उपवास कर रहे हैं। यह मामला भी अब राष्ट्रीय विषय बन चुका है। लोकसभा चुनाव की घोषणा से बहुत पहले इसकी आप की ओर से इसकी आशंका जताई जा रही थी कि केजरीवाल पर कार्रवाई हो सकती है, और अब पार्टी इसी बात को लेकर चुनाव मैदान में है कि उसे प्रचार से रोकने के लिए पार्टी संरक्षक को गिरफ्तार किया गया है। यह मुद्दा जनता किस तरह से देखती है, इसका पता चुनाव के बाद ही लग पाएगा। हालांकि देश में भ्रष्टाचार का मुद्दा पुरजोर है, भाजपा इसी बात को लेकर दावा कर रही है कि आज राजनीति में बैठे नेताओं पर जो कार्रवाई हो रही है, वह उसी के समय में हो रही है। इससे पहले ऐसे प्रयास तक नहीं किए गए।

इस बीच चुनाव आयोग की भूमिका और अहम हो गई है। चुनाव आयोग ने झूठी सूचनाओं और अफवाहों से निपटने के लिए बड़ी पहल की है। इसके तहत अब आयोग किसी भी झूठी सूचना या अफवाह पर चुप नहीं बैठेगा और ऐसी सूचनाओं की सच्चाई सामने लेकर आएगा। आयोग की ओर से यह पहल चुनाव के दौरान चुनावी प्रक्रिया से जुड़ी गतिविधियों को लेकर किए जाने वाले दुष्प्रचार से निपटने के लिए शुरू की है। आयोग ने इसके लिए अपनी वेबसाइट पर मिथ वर्सेस रियलिटी नाम से पोर्टल लांच किया है। इसमें ऐसी प्रत्येक सूचना को प्रदर्शित किया जाएगा और उसकी सच्चाई के बारे में बताया जाएगा।

गौरतलब है कि प्रत्याशियों की ओर से मतदाताओं को लुभाने की प्रत्येक कोशिश को रोकने में जुटे चुनाव आयोग ने फिलहाल रोजा इफ्तार दावतों और धार्मिक भंडारों जैसे आयोजनों पर भी चौकसी बढ़ा दी है। आयोग ने ऐसे आयोजनों को लेकर न सिर्फ सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को सतर्क किया है, बल्कि ऐसे आयोजनों के राजनीतिक जुड़ाव पर उसका खर्च राजनीतिक दलों या प्रत्याशियों के चुनावी खर्च में जोड़ने का निर्देश दिया है। साथ ही जरूरी कार्रवाई भी करने को कहा है। आयोग ने यह कदम तब उठाया है, जब राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों की ओर से चुनाव के दौरान मतदाताओं को लुभाने के लिए ऐसे हथकंडों को अपनाने की शिकायतें मिल रही हैं।

हालांकि आयोग ने स्पष्ट किया है कि रोजा इफ्तार, भंडारे या जन्मदिन पार्टियों जैसे आयोजनों पर किसी तरह की कोई रोक नहीं है। सिर्फ इसकी आड़ में राजनीतिक दलों या प्रत्याशियों की ओर मतदाताओं को लुभाने के लिए किए जाने वाले ऐसे आयोजनों पर नजर रखी जाएगी। चुनाव की निष्पक्षता के लिहाज से इन पर निगाह रखना जरूरी है। आयोग ने इसे लेकर सभी राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारी, जिला निर्वाचन अधिकारी और पर्यवेक्षकों से ऐसी गतिविधियों पर नजर रखने को कहा है। चुनाव आयोग इससे पहले ही चुनाव में मतदाताओं को लुभाने के लिए बांटे जाने वाले उपहारों, पैसों, शराब व ड्रग्स आदि पर पैनी नजर रखता है। साथ ही इसे जब्त करने की कार्रवाई भी करता है। वास्तव में राजनीतिक बयानों पर जहां नियंत्रण रखे जाने की जरूरत है, वहीं अनुचित माध्यमों से मतदाताओं को लुभाने के प्रयास भी रोके जाने जरूरी हैं। 

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