Morbi Incident

मोरबी हादसा : फिटनेस प्रमाणपत्र के बगैर उद्घाटन, कौन है जिम्मेदार?

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Morbi Incident

गुजरात के मोरबी में मच्छू नदी पर केबल पुल के टूटने से 143 से ज्यादा लोगों के मरने की घटना बेहद हृदयविदारक है। त्योहारों के इस मौसम में जब पूरा देश दिवाली का पर्व मना कर हटा था, तभी गुजरात से आई इस खबर ने सभी का मन झकझोर दिया। यह हादसा उस भरोसे का कत्ल है, जो अंग्रेजों के समय बने उस केबल पुल को दुरुस्त करने के बाद इसका रखरखाव कर रही कंपनी ने यहां घूमने आए लोगों को दिलाया था।

आठ करोड़ की लागत से इस पुल की मरम्मत के बाद अगले 25 वर्षों तक इसका कुछ भी न बिगडऩे की गारंटी दी गई थी। हालांकि क्षमता महज 100 से 125 लोगों की है, लेकिन हादसे के वक्त इस पर 300 से अधिक लोग पहुंच गए थे। जब इस पुल की सैर करने के लिए टिकट लगाई गई है, तो यह कैसे हो गया कि तय संख्या से कहीं ज्यादा लोग इस पर पहुंच गए? गुजरात सरकार पर इस हादसे के बाद भारी दबाव है, लेकिन आनन-फानन में पुल संचालन से जुड़े सिर्फ 9 लोगों पर कार्रवाई दिखाकर सरकार अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती है। यह तब है, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के ही दौरे पर थे। उन्होंने हादसे के बाद एक उच्च स्तरीय बैठक भी की।

अक्सर देखने को मिलता है कि किसी हादसे के बाद ही प्रशासन, सरकार, सुरक्षा एजेंसियां यह समझ पाती हैं कि अगर ऐसा होने से रोक दिया जाता तो संभव है कि हादसा नहीं होता। इस मामले में भी यही हो रहा है। सामने आ रहा है कि जिस कंपनी ने पुल की मरम्मत करवाई, वही उस पर टिकट लगाकर उससे कमाई कर रही थी। यानी उसने अपनी कमाई का जरिया तलाश लिया था, लेकिन उसने वहां आने वाले लोगों की सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं किए थे। हादसे वाले दिन कंपनी की ओर से 600 टिकट बेचे गए। अब इसे चैक करने के लिए प्रशासन की ओर से वहां कौन था? प्रशासन के अधिकारी क्या इसकी जांच कर रहे थे कि इस ऐतिहासिक पुल जिसका निर्माण 1879 में हुआ, के हालात कैसे हैं। ऐसी भी रिपोर्ट है कि जिस कंपनी ने इसकी मरम्मत कराई, उसके मालिक ने प्रशासन की ओर से जरूरी मंजूरी और फिटनेस प्रमाणपत्र के बगैर ही अपने परिवार की एक बालिका से मरम्मत के बाद पुल का उद्घाटन करा दिया।

कारोबारी ने अपने कारोबार के लिए पुल की मरम्मत करा ली, राजनीतिक प्रभाव में प्रशासन की ओर से दी जाने वाली मंजूरी का भी उन्होंने इंतजार नहीं किया। अगर पुल पर सब कुछ सही रहता तो किसी को इस कोताही की खबर नहीं होनी थी, लेकिन हादसे के बाद सैकड़ों लोगों के वजन से केबल पुल टूट गया और लोग नदी के पानी में डूब गए। क्या सरकार कंपनी के कर्मचारियों पर ही कार्रवाई करेगी या फिर कंपनी के मालिकों पर भी हाथ डालने का साहस करेगी?

गौरतलब है कि इस पुल के आसपास भीड़ और अव्यवस्था को नियंत्रित करने के लिए पुलिस या फिर सुरक्षा कर्मियों का भी बंदोबस्त नहीं था। कंपनी ने यहां संभावित आपदा के वक्त प्रबंधन और बचाव कार्य के लिए कोई सुरक्षा उपकरण नहीं लगाए थे। इसके अलावा यह भी चिंताजनक है कि इतनी गहरी नदी के ऊपर बना होने के बावजूद इसकी सैर के लिए आने वालों को जीवन रक्षक जैकेट आदि नहीं पहनाई जाती थी। यानी कंपनी प्रबंधन ने हर स्तर पर ऐसी कोताही का इंतजाम किया हुआ था, कि पुल से गिर कर एकमात्र मौत ही निश्चित है। यह केबल पुल महज पैदल आवागमन के लिए निर्मित किया गया था। यह सोचना खुद को और यहां आने वाले लोगों को धोखे में रखना था कि मरम्मत के बाद यह मजबूत हो गया है। उन क्षणों का अंदाजा अब कौन लगा सकता है, जब अनेक जोड़े या फिर परिवार के लोग रविवार की छुट्टी का आनंद लेने के लिए यहां पहुंचे होंगे। वे केवल भीड़ का अंदाजा ही लगा सके होंगे, किसी को भी यह मालूम नहीं होगा कि तय संख्या से कहीं ज्यादा लोग केबल पुल पर हैं। इस मामले में यह भी सामने आ रहा है कि 7 महीने तक रेनोवेशन के दौरान उन एंकर पिन पर ध्यान ही नहीं दिया गया जिनके सहारे पुल टिका हुआ था। यानी लापरवाही पर लापरवाही बरती गई।

इस हादसे के गुनहगारों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी जरूरी है। इस मामले में निजी और सरकारी अधिकारी, कर्मचारियों की भूमिका है। गुजरात में यह समय चुनाव का है, राजनीतिक दल इस पर भरपूर राजनीति करेंगे, लेकिन जो लोग लौट कर घर नहीं आ पाए, उनके परिजनों को कौन सांत्वना देगा। मुआवजा और सहानुभूति देकर बेशक इसे दबाने की कोशिश हो लेकिन लापरवाह लोगों के चलते ऐसे हादसे होते रहेंगे। भविष्य में ऐसा न हो, इसके लिए सरकार और प्रशासन को जिम्मेदार होना होगा।