Kabir Das Jayanti 2023 Know About His Life History and Famous Verses
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Kabir Das Jayanti 2023 : कबीर दास जयंती पर जानते है उनके जीवन के बारे में और उनके अनमोल विचार, जिससे अनजान है आज की पीढ़ी 

Kabir Das Jayanti 2023

Kabir Das Jayanti 2023 Know About His Life History and Famous Verses

Kabir Das Jayanti 2023 :  संत कबीर दास जयंती या संत कबीर दास की जयंती ज्येष्ठ पूर्णिमा को हिंदू वैदिक कैलेंडर के अनुसार पंचांग के रूप में मनाई जाती है। इस वर्ष कबीर जयंती, 4 जून 2023 को मनाई जाएगी। संत कबीर दास एक लोकप्रिय समाज सुधारक और कवि थे। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि उनके काम का एक बड़ा हिस्सा पांचवें सिख गुरु, गुरु अर्जन देव द्वारा एकत्र किया गया था। भक्ति आंदोलन पर भी उनके लेखन का काफी प्रभाव पड़ा। कबीर जयंती पर उनके कई अनुयायी उन्हें याद करते हैं और उनकी कविताओं का पाठ करते हैं। उनकी शिक्षाओं ने बहुत से लोगों को प्रेरित किया है इसलिए यह दिन सभी के लिए महत्वपूर्ण है। 

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जन्म को लेकर हैं कई मत
संत कबीर दास के जन्म और उनकी जाति को लेकर अलग अलग मत हैं। कहा जाता है कि इनका जन्म रामानंद गुरु की आशीर्वाद से एक विधवा ब्रह्माणी के गर्भ से हुआ था। लेकिन लोक लाज के भय से उन्होंने नन्हें कबीर को काशी के पास लहरतारा नामक ताल के पास छोड़ दिया था। इसके बाद एक जुलाहे ने इन्हें पाला। वहीं कुछ लोगों का मत है कि कबीर दास का जन्म से मुस्लिम थे, लेकिन उन्हें रामानंद से राम नाम का ज्ञान मिला था।  

Kabir Das Jayanti 2023 Know About His Life History and Famous Verses 

निरक्षर थे कबीर
कबीरदास जी के लिए कहा जाता है कि उन्होंने कभी कोई आधिकारिक शिक्षा हासिल नहीं की वे निरक्षर थे। उन्होंने जितने भी दोहों की रचना की, वे केवल इनके मुख से बोले गए हैं। लेकिन कबीर रामानंद को अपना गुरु मानते थे और जीवनभर गुरु परंपरा का निर्वाह करते रहे। 

Significance of Sant Kabir Das Jayanti 2023 - GaneshaSpeaks

इस तरह कबीर बने रामानंद के शिष्य
कहा जाता है कि रामानंद ने इन्हें अपना निकटतम शिष्य बनाने से इंकार कर दिया था। लेकिन एक दिन जब रामानंद तालाब के किनारे स्नान कर रहे थे, तो उन्होंने संत कबीर दास को दो जगह पर एक साथ भजन गाते देखा। इसके बाद वो समझ गए कि कबीर दास असाधारण हैं। इसके बाद उन्होंने कबीर दास को अपना शिष्य बना लिया।

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अंधविश्वास के खिलाफ
कबीर दास अंधविश्वास के खिलाफ थे। कहा जाता है कबीर दास के समय में समाज में एक अंधविश्वास था कि जिसकी मृत्यु काशी में होगी वो स्वर्ग जाएगा और मगहर में होगी वो नर्क। इस भ्रम को तोड़ने के लिए कबीर ने अपना जीवन काशी में गुजारा, जबकि प्राण मगहर में त्यागे थे।

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