Shri Krishna Janmabhoomi in Mathura

मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि के विवादित स्थल का निरीक्षण न्यायोचित

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Shri Krishna Janmabhoomi in Mathura

Shri Krishna Janmabhoomi in Mathura मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि शाही ईदगाह मस्जिद विवाद में अदालत का यह आदेश न्यायोचित है कि विवादित स्थल का निरीक्षण कराया जाए। वर्ष 1618 से चले आ रहे इस विवाद में यह नया मोड़ उन आरोपों को सुलझाने की दिशा में बड़ा कदम है कि मुस्लिम आक्रांताओं ने हिंदू मंदिरों को ध्वस्त कर वहां पर मस्जिद और अन्य मुस्लिम स्थल कायम किए।

काशी में ज्ञानव्यापी मस्जिद Gyanavyape Masjid मामले में भी अभी तक जो तथ्य सामने आ रहे हैं, उनके मुताबिक हिंदुओं के एक पुरातन स्थल को कमतर करने के मकसद से वहां मुस्लिम धार्मिक स्थल निर्मित किया गया। अयोध्या में रामजन्म भूमि स्थल पर बाबरी मस्जिद का निर्माण कैसे हो गया था, इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय अपना फैसला सुना चुका है और करोड़ों हिंदुओं के आराध्य भगवान राम की जन्मभूमि पर एक मस्जिद होने की सच्चाई अब खुलकर सामने आ चुकी है। दरअसल, यह मामले हिंदू और मुस्लिम के बीच के नहीं हैं, अपितु इन्हें किसी आक्रांता और एक धर्म जीवी समाज के बीच के देखा जाना चाहिए। मुस्लिम समाज Muslim Society के लोगों को यह बात समझनी चाहिए कि आखिर हिंदू मंदिरों पर मुस्लिम आक्रमणकारियों का कोप क्यों टूटता था, क्यों हिंदू मंदिरों में देवी-देवताओं का निरादर कर वहां लूट की जाती थी और फिर उस जगह पर एक मस्जिद का निर्माण कर दिया जाता था।

 ऐसे मामलों को नई सिरे से देखे जाने की आवश्यकता है। देश में यह सांस्कृतिक जागरण काल भी है कि अब हिंदू समाज के आराध्य स्थलों के प्रति जहां सरकारों का रवैया बदला है, वहीं अदालतें भी इस बात को समझने लगी हैं कि किसी समाज की धार्मिक भावनाओं को लेकर भेदभरी धर्मनिरपेक्षता नहीं अपनाई जा सकती है। मथुरा में शाही मस्जिद Shahi Masjid के निरीक्षण की रिपोर्ट 20 जनवरी को कोर्ट के सामने रखने का आदेश दिया गया है।

शाही मस्जिद Shahi Masjid मामले में कोर्ट का आदेश इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि इसी प्रकार का आदेश ज्ञानवापी मस्जिद मामले में भी दिया गया था। वाराणसी कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद का कोर्ट कमिश्नर से सर्वे कराने का आदेश जारी किया था। श्रृंगार गौरी मंदिर में दैनिक पूजा मामले में यह आदेश आया था। इसके बाद सर्वे का कार्य पूरा कराया गया। इसके वीडियो और फोटो लीक हुए। मस्जिद में कई प्रकार की हिंदू आकृतियों के पाए जाने का मामला सामने आया। कोर्ट में यह केस अभी चल रहा है। अब कुछ इसी प्रकार का मामला शाही मस्जिद मामले में भी बढऩे की आशंका जताई जा रही है।

गौरतलब है कि हिंदू सेना ने अर्जी लगाई थी कि मुथरा में शाही मस्जिद का निरीक्षण कराया जाए। इसके बाद हिंदू पक्ष की ओर से इसे अपनी बड़ी जीत माना जा रहा है। याचिकाकर्ताओं की दलील है कि यहां से मस्जिद को हटाया जाए। हिंदू सेना का दावा है कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान की 13.37 एकड़ जमीन पर मंदिर तोडक़र औरंगजेब ने ईदगाह तैयार करवाई थी। 1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही ईदगाह कमेटी के बीच हुए समझौते को चुनौती दी गई है। दरअसल, इससे पहले भी आधा दर्जन से अधिक वादी अदालत में भी यही मांग रख चुके हैं, लेकिन अब तक उन याचिकाओं पर कोई फैसला नहीं हो सका है।  

यह केस हिंदू संगठनों की ओर से कटरा केशव देव मंदिर से 17वीं सदी की शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने से संबंधित है, जिसमें दावा किया गया है कि मस्जिद भगवान कृष्ण के जन्मस्थान पर बनाई गई है। शाही ईदगाह मस्जिद कथित तौर पर 1669-70 में मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश पर कृष्ण जन्मभूमि पर बनाई गई थी। मथुरा की दीवानी अदालत ने पहले यह कहते हुए मामले को खारिज कर दिया था कि इसे 1991 के पूजा स्थल अधिनियम के तहत स्वीकार नहीं किया जा सकता है। दरअसल, प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 15 अगस्त 1947 को किसी भी पूजा स्थल की धार्मिक स्थिति को बनाए रखता है।
   

दरअसल, धार्मिक स्थलों से संबंधित ऐसे मामले बहुत पहले से सुलझाए जा सकते थे, लेकिन राजनीति और कानून इसके आड़े आते रहे। साल 1991 में पूजा स्थल अधिनियम को बनाने पर सवाल उठना लाजमी है कि आखिर किसी भी धार्मिक स्थल की प्रकृति में बदलाव क्यों नहीं किया जा सकता। जबकि देशभर में तमाम ऐसे मंदिर हैं, जोकि मस्जिदों के निर्माण की वजह से विवादों में है। क्या तत्कालीन सरकारों ने इस पर विचार नहीं किया कि ऐसा कानून बनाकर उन पक्षों को मजबूत किया जाएगा जोकि ऐसे आरोपों को गलत बताते हैं कि मंदिर तोड़ कर मस्जिद बना दी गई।

आखिर एक स्वतंत्र देश में इस पर बहस क्यों नहीं होकि एक धार्मिक स्थल को जबरन तोडक़र उस पर दूसरा धार्मिक स्थल स्थापित कर दिया गया। उस मानसिकता को पहचाना जाना क्यों नहीं जरूरी है, जिसने घोर सांप्रदायिक होकर काम किया। आज के समय में अगर कोई संगठन, पार्टी, सरकार अगर धर्मनिरपेक्षता के इस झूठे ताने-बाने से बाहर निकल कर एक बहुसंख्यक समाज की भावनाओं को न्याय दिलाने के लिए काम कर रही है तो यह किस प्रकार सांप्रदायिक हो सकता है। ऐसे राजनीतिक हैं जोकि किसी पर नफरत फैलाने का आरोप लगाते हुए मोहब्बत की दुकानें खोलने की बात कर रहे हैं। हालांकि यह गौर फरमाने योग्य है कि आखिर ऐसी छदम धर्मनिरपेक्षता का फायदा कौन उठाता रहा और अब अगर यह सांस्कृतिक जागृति आई है तो कौन परेशान हो गया है। 

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