Haryana government should follow Rajdharma in returning the case

केस वापसी में हरियाणा सरकार निभाए राजधर्म

Editorial

Haryana government should follow Rajdharma in returning the case

Jat reservation movement in Haryana in the year 2016 हरियाणा में साल 2016 में जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान तीन दिनों के अंदर जो तबाही मची थी, उसके अब बेशक भर चुके हैं, लेकिन उनके निशान अभी बाकी हैं। उन जख्मों का दर्द भी अब तक वैसा ही है। शहर city, कस्बों में एक समाज विशेष की दुकानें, घर, कारोबार को जिस प्रकार से तबाह किया गया, वह गीता उपदेश की इस स्थली के लिए महापाप था। हालांकि अब राजनीतिक मजबूरी political compulsion में प्रदेश की गठबंधन सरकार coalition government अगर इस तबाही के आरोपियों पर दर्ज मामले वापस लेने की तैयारी में है तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है।

यह न्यायसंगत नजर नहीं आता doesn't seem fair कि दोषी इतने बड़े कांड करके बच जाएं। उस समय हिंसक आंदोलन की आड़ में सोनीपत Sonipat के मुरथल में हाईवे से गाडिय़ों में गुजर रही महिलाओं के साथ रेप की भी अपुष्ट खबरें आई थी, लेकिन पुलिस police ने किसी के द्वारा अपनी आबरू बचाने की आड़ लेकर उन मामलों की जांच ही खत्म करवा दी। ऐसा भी सामने आया था कि शोरूमों से नए बाइक और स्कूटरों को भरकर ट्रैक्टर-ट्रॉलियां tractor-trolleys गांवों की तरफ दौड़ गई थी। गाडिय़ों के शोरूम showroom फूंक दिए थे, मंत्री का घर जला डाला था, गरीब का ढाबा नहीं छोड़ा था, बस अड्डों में सरकारी बसें government buses धू-धू कर जल रही थीं, और सडक़ों पर मौत उपद्रवियों के रूप में अट्टहास करती घूम रही थी, लेकिन अब छह वर्ष बाद सब शांत हो गया, क्यों?

किसान आंदोलन farmer's movement के दौरान भी गांव-देहात और शहरों में गठबंधन सरकार के मंत्रियों, विधायकों, सांसदों, खुद मुख्यमंत्री Chief Minister और उपमुख्यमंत्री deputy chief minister का भी तीखा विरोध हुआ, अनेक जगह झड़पें हुईं। किसान आंदोलनकारियों ने कहीं भी शांति से सरकार को अपने कार्यक्रम नहीं करने दिए। इस दौरान पुलिस ने जिनके खिलाफ केस दर्ज किए, उन्हें माफ कर दिया गया। सार्वजनिक सम्पत्ति को क्षति पहुंचाई गई। सरकार ने खुद एक सार्वजनिक सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाने की एवज में सख्त कानून बनाया है।

इसके बावजूद जब-तब किसान आंदोलनकारी farmer agitator सडक़ों को रोक कर जनजीवन प्रभावित करते हैं, तो सरकार के साथ उनकी बैठक का एजेंडा यही होता है कि दर्ज केस खारिज किए जाएं। और राजनीतिक political मजबूरी देखिए कि सरकार उन केसों को खारिज कर भी देती है। राज्य सरकार के अनेक शीर्ष पदाधिकारियों ने बीते दिनों स्वीकार किया है कि ऐसे अनेक केस खारिज किए जा चुके हैं और कुछ हाईकोर्ट में सुनवाई की वजह से लंबित हैं, जिन्हें भी जल्द खारिज कराया जाएगा। अब गौरतलब यह है कि अगर राज्य का गरीब और दमित समाज अगर ऐसे किसी आंदोलन में कानून को अपने हाथ में लेता है तो पुलिस, सरकार और कानून law उसे उसकी अंतिम सांस तक सजा दिलाने को उद्धत हो जाता है, लेकिन समाज का उच्च और प्रभावशाली वर्ग अगर कानून की धज्जियां उड़ाता है तो उसके मामलों को रफा-दफा करने में सरकार प्रयत्नशील government is trying हो जाती है।

 बेशक, किसान आंदोलन farmer's movement के उग्र होने की वजह समझ में आती है, लेकिन फिर भी कानून और व्यवस्था का मखौल बनाने की किसी को भी इजाजत नहीं दी जा सकती। वहीं जाट आरक्षण आंदोलन में जो हुआ, वह किसी भी तरह से तुलना के योग्य नहीं है। हरियाणा में ऐसा ही कांड डेरा मुखी को सजा सुनाये जाने के बाद भी सामने आया था। अगर जाट आरक्षण आंदोलन jat reservation movement में उपद्रवियों पर दर्ज केस वापस लिए जाएंगे तो फिर ऐसी ही मांग डेरा मुखी के मामले भी उठाई जा सकती है।

क्या सरकार इसे स्वीकार करेगी? जाट आरक्षण jat reservation का स्याह पक्ष यह है कि इस दौरान प्रदेश में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 32 लोगों की मौत हुई थी, हालांकि वास्तविक आंकड़ा कुछ और भी हो सकता है। उस समय राज्य में ३0 हजार करोड़ 30 thousand crores रुपये की सरकारी, सार्वजनिक और निजी संपत्ति का नुकसान हुआ था। हालांकि यह आकलन औद्योगिक संगठनों की ओर से किया गया था, सरकार का आकलन तो महज 700 करोड़ रुपये Rs 700 crore का ही था। इस उपद्रव जिसे आंदोलन aandolan बताया गया कि सीबीआई से जांच कराई गई, जिसका कोई सार नहीं निकल पाया। साल 2018 में इसी उपद्रव के दौरान एक केस को वापस लेने का मामला जब पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में पहुंचा तो अदालत ने सरकार के फैसले पर स्टे लगा दिया।  इस समय 400 से अधिक ऐसे मामले हैं, जोकि लंबित हैं। अदालत में स्टे लगने के बाद अब तमाम अन्य केस भी लंबित हैं।
 

 वास्तव में राज्य सरकार को इस मामले पर अति गंभीरता से काम लेना होगा। सामान्य अपराध और जघन्य अपराध Crime में अंतर करके देखना होगा। गृहमंत्री अनिल विज Home Minister Anil Vij और पुलिस अधिकारियों के बीच इन मामलों को वापस लेने को हुई बैठक भी बेनतीजा रही है तो इसकी वजह हाईकोर्ट की स्टे होना है। सरकार को चाहिए कि मामूली तोडफ़ोड, रास्ते जाम करने, पुलिस पर पथराव, सरकारी कार्य में बाधा पहुंचाने जैसे मामलों को वापस लिया जाए, लेकिन सम्पत्ति को जलाने, किसी की जान के लिए संकट पैदा करने, हत्या, साजिश रचने जैसे मामलों में आरोपियों को सजा दिलवाए।

यकीनन यह समय सरकार government के लिए बड़े सधे कदमों से चलने का है, राजनीतिक political फायदे के लिए किसी वर्ग को फायदा पहुंचा कर एक बड़े वर्ग की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाई जा सकती। सरकारी फाइलों में इस उपद्रव के लिए जो लिखा गया है, उसके एकदम उलट स्थिति जमीन Land पर नजर आ सकती है। गृह मंत्री विज का पुलिस अधिकारियों को यह निर्देश उपयुक्त है कि सभी मामलों का डाटा जमा करें ताकि उसके हिसाब से निर्णय लिया जा सके। जाट आरक्षण हरियाणा jat reservation haryana की छवि को नष्ट करने वाला उपद्रव था, उसके दोषियों पर कार्रवाई होना न्याय की पुकार है, गठबंधन सरकार को अपने राजधर्म को निभाना ही होगा। 

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